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जिन सूत्र भाग: 2
डालती है...।'
करना नहीं चाहता था और हो गया। तह कम्मेधणममियं, खणेण झाणानलो डहइ।।
तुम्हारे बावजूद ? तुम्हारा मतलब क्या? किया तो तुम्हीं ने। ....वैसे ही ध्यान रूपी अग्नि अपरिमित कर्म-ईंधन को हआ तो तुम्हीं से। साथ तुम्हारा था। क्षणभर में भस्म कर डालती है।'
लेकिन तुम कहते हो, सब मैं भूल ही गया। बेहोश था। कुछ 'मोक्षार्थी मुनि सर्वप्रथम धर्म-ध्यान द्वारा अपने चित्त को याद ही न रहा। न नियम याद रहे, न शिष्टाचार याद रहा। और सुभावित करे। बाद में धर्म-ध्यान से उपरत होने पर भी सदा खुद की खायी कसमें भी याद न रहीं। कितनी बार तय किया कि अनित्य, अशरण आदि भावनाओं के चितवन में लीन रहे।' नहीं करूंगा क्रोध, फिर हो गया।
यह भी खयाल में रखना कि महावीर अकेले चिंतक हैं, लेकिन जब क्रोध पकड़ता है तो आदमी एकदम एक जिन्होंने ध्यान को धर्म और अधर्म, दो खंडों में बांटा। अकेले। जाता है। महावीर ने इसको रौद्र ध्यान कहा है-क्रोध में। पूरे मनुष्य-जाति के इतिहास में। पतंजलि ने वैसा नहीं किया, कामवासना में भी आदमी ध्यान से भर जाता है। बुद्ध ने वैसा नहीं किया, कृष्ण ने वैसा नहीं किया। अकेले मैंने सुना है, एक आदमी को पकड़ा गया क्योंकि उसने एक महावीर ने ध्यान को धर्म और अधर्म, दो में बांटा। और इसमें राह के किनारे बैठे दुकानदार की थैली झपट ली; रुपयों की थैली बड़ी वैज्ञानिक सूझ है। यह उनका अनुपम दान है।
झपट ली। वह दुकानदार रुपये गिन रहा था और थैली में डाल मनुष्य-जाति को सभी जाग्रत पुरुषों ने कुछ दिया है, जो रहा था। मजिस्ट्रेट ने पूछा कि तू भी खूब चोर है। चोर हमने विशिष्ट है। कुछ है, जो सामान्य है; जो सभी ने दिया है। कुछ बहुत देखे, भरे बाजार में, भरी दुपहरी में इतने आदमी वहां खड़े है, जो एक-एक ने दिया है और विशिष्ट है। यह महावीर की थे, यह पुलिसवाला भी चौरस्ते पर मौजूद था, यह तेरे को चोरी विशिष्ट देन है ध्यान के शास्त्र और विज्ञान को। महावीर कहते करने का वक्त मिला? हैं, अधर्म ध्यान और धर्म ध्यान।
उसने कहा, उस समय मुझे सिवाय थैली और रुपये के कोई भी थोड़े तुम चौंकोगे। अधर्म ध्यान? ध्यान से तो हम संबंध ही दिखाई नहीं पड़ रहा था। उस समय बस, यह थैली और रुपये धर्म का जोड़ते हैं। लेकिन महावीर की पहुंच गहरी है। महावीर | दिखाई पड़ रहे थे। और सब मेरे ध्यान से उतर गया था। मेरा कहते हैं, कुछ ऐसी घड़ियां हैं, जो अधर्म की होती हैं, लेकिन ध्यान बिलकुल थैली पर लग गया था। न मुझे पुलिसवाला ध्यान बंध जाता है।
दिखाई पड़ा...। जैसे जुआरी जुआ खेल रहा है; जब वह पांसे हाथ में लेकर तुमने देखा, कामातुर आदमी को कुछ दिखाई नहीं पड़ता! चल रहा है तो उसके चित्त में बड़ी एकाग्रता होती है। ऐसा भी हो तुलसीदास की कथा है कि एक मुर्दे की लाश का सहारा लेकर सकता है कि मंदिर में जो माला जप रहा है, उससे ज्यादा नदी पार गए। पत्नी से मिलने जा रहे थे। गहरा कामांध भाव एकाग्रता जुआरी जब पांसे हाथ में लेकर चलता हो, तब हो। रहा होगा। याद भी न आयी कि यह लाश है। समझा कि कोई
कोई हत्यारा किसी को मारने जा रहा है, तब.बड़ा एकाग्र होता लकड़ी का डूंगर बहा जाता है। फिर कहते हैं, पत्नी के घर है। कोई विचार नहीं उठते। इधर-उधर सोच भी नहीं जाता। पहुंचकर, लटके सांप को पकड़कर जीना चढ़ गए-सोचकर तीर की तरह एक ही बात, एक ही भाव, एक हवा, उसे घेरे कि रस्सी है। रखती है।
पत्नी ने जो कहा, निश्चित ही कुछ न कुछ महावीर के धर्म और तुमने भी कभी देखा हो, शायद जुआ न खेला हो, हत्या भी न अधर्म ध्यान का पता तुलसीदास की पत्नी को रहा होगा। क्योंकि की हो, लेकिन कभी क्रोध में थोड़ी-बहुत झलक आयी होगी। पत्नी ने कहा कि इतना ध्यान तुम अगर राम पर लगा देते, जितना हो सकता है क्रोध का मजा भी यही हो कि ध्यान बंध जाता है। तुमने मुझ पर लगाया है, तो परम आनंद और परम मुक्ति तुम्हें क्रोधी आदमी क्रोध के क्षण में सब भूल जाता है। इसीलिए तो उपलब्ध हो जाती। इतना ध्यान, जो तुमने काम पर लगाया,
अक्सर क्रोध के बाद तुम कहते हो, मेरे बावजूद हो गया। मैं अगर राम पर लगा देते...। 374] Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only
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