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ध्यानाग्नि से कर्म भस्मीभूत
जा है।
और वही घटना तलसीदास के जीवन में क्रांति बनी। वह एक पावलोव ने बड़े प्रयोग किये मनष्य के संस्कारों पर। उसका शब्द चोट कर गया। वह एक शब्द जैसे कुछ छिपे हुए बड़ा जाहिर, प्रसिद्ध प्रयोग है कि एक कुत्ते को रोटी देता है। जब जन्मों-जन्मों की खोज को स्पष्ट कर गया। वह एक शब्द उसके सामने रोटी रखता है तो कुत्ते के मुंह से लार टपकने लगती जीवनभर के लिए क्रांतिकारी सूत्र हो गया। समझ में आ गई बात | है। साथ में वह घंटी बजाता है। ऐसा रोज करता है पंद्रह दिन कि काम के लिए इतना ध्यान लगा रहा हूं, इतना राम पर लग | तक। रोटी देता है, घंटी बजाता है, लार टपकती है। फिर जाए तो सब मिल जाए। काम से मिलेगा भी तो क्या मिलेगा? सोलहवें दिन रोटी नहीं देता, सिर्फ घंटी बजाता है, और लार
महावीर दो भाग करते ध्यान केः अधर्म-ध्यान और टपकती है। अब लार से और घंटी का कोई भी संबंध नहीं है। धर्म-ध्यान। वे कहते हैं ध्यान तो दोनों हैं। अधर्म-ध्यान ऐसा तुम किसी कुत्ते के सामने घंटी बजाओ, वह लार नहीं ध्यान है, जिसमें ध्यान तो होता, मिलता कुछ भी नहीं। ध्यान तो | टपकाएगा; लेकिन पावलोव का कुत्ता टपकाता है। होता है; कष्ट मिलता है, दुख मिलता है, पीड़ा मिलती है। पावलोव ने यह सिद्धांत निकाला इससे, कि रोटी और लार का ध्यान तो है लेकिन गलत दिशा में आरोपित है।
तो संबंध था, दोनों के बीच में घंटी भी समा गई। दोनों के धर्म-ध्यान का अर्थ है: वही ध्यान, जो गलत दिशा में साथ-साथ घंटी भी जुड़ गई। आरोपित था, ठीक दिशा में लगा। काम से मुड़ा, राम की तरफ | इसलिए अक्सर तुम्हें भी हुआ होगा। पावलोव ने न भी किया लगा। धन से हटा, धर्म की तरफ लगा। क्रोध से हटा, करुणा हो प्रयोग, तुम अपने पर कर सकते हो। तुम अगर रोज एक बजे पर बरसा।
भोजन करते हो, एकदम घड़ी में तुमने देखा, एक बजा--भूख 'मोक्षार्थी मुनि सर्वप्रथम धर्म-ध्यान द्वारा अपने चित्त को लगी। अभी एक क्षण पहले तक भूख का पता भी न था। और सुभावित करे...।'
| हो सकता है, घड़ी बिगड़ी हो और एक अभी बजा न हो, अभी पहले अधर्म-ध्यान से हटे और धर्म-ध्यान में लगे। पहले ग्यारह ही बजे हों। लेकिन देखा, एक बज गया, एकदम कौंध उन-उन विषयों से अपने ध्यान को मुक्त करे, जिनसे की तरह भीतर कोई भूख जग आयी...साहचर्य! जन्मों-जन्मों में सिवाय कांटों के और कुछ भी न मिला। फूल तुमने अब तक जहां भी ध्यान किया है-कभी क्रोध पर का आश्वासन रहा, हाथ जब आए, कांटे आए। दरवाजा दूर से किया, कभी काम पर किया, कभी धन पर किया। फिर तुम दिखा, पास जब आए, सिर दीवाल से टकराया। दूर से सब मंदिर गए। तुम कहते हो, ध्यान करने जा रहे हैं। तो तुमने स्वर्णिम मालूम पड़ा, पास आते-आते सब मिट्टी हो गया। जहां-जहां ध्यान किया है, वहां-वहां ध्यान जुड़ गया। घंटी से
इस अनुभव के आधार पर पहले तो ध्यान की ऊर्जा को अधर्म | लार बंध गई। एक बजे से भूख जुड़ गई। अब तुम मंदिर में बैठे, से मुक्त करना है क्योंकि यही ऊर्जा धर्म में लगेगी। अगर यह एक बजने लगा, घंटी बजने लगी। अब तुम मंदिर में बैठे, तुम ऊर्जा अधर्म से मुक्त नहीं है तो तुम्हारे पास धर्म में लगाने को कहते हो, ध्यान करना है। माला फेरने लगे। तुम कहते हो जैसे ऊर्जा न होगी।
ही कि ध्यान करना है, मन में न मालूम कितने कूड़ा-कर्कट उठने इसलिए अक्सर होता है-तुम्हें भी हुआ होगा, मुझे बहुत लगे। क्योंकि तुम्हीं उठा रहे हो उनको। तुम कहते हो, ध्यान लोग आकर कहते हैं कि मंदिर में जाकर बैठते हैं, माला जपते करना है। और ध्यान तुमने जिन-जिन चीजों पर किया है अब हैं, तब न मालूम कहां-कहां के खयाल आते हैं। ये वे ही खयाल तक, उनका अभ्यास प्रबल है। हैं, जिन पर तुमने अब तक ध्यान किया है। ये हर कहीं से नहीं कोई सुंदर स्त्री खड़ी हो गई। तुम झिड़कते हो कि हटो भी! मैं आ रहे हैं, आकाश से नहीं आ रहे हैं। ये तुम्हारे पुराने अभ्यास ध्यान कर रहा हूं। यह मंदिर है, यह कोई वेश्यालय नहीं है। मैं से आ रहे हैं, और इसीलिए आ रहे हैं कि अब तक तुम्हारे चित्त ने | यहां पूजा-पाठ करने आया, ध्यान करने आया, माला फेर रहा जिस चीज को ध्यान जाना, वही तो आएगा, जब तुम ध्यान करने हूं। हटो भी! लेकिन तुम जितना हटाते हो, माला तो याद नहीं बैठोगे। पुराना एसोसिएशन, पुराना साहचर्य, पुराना संबंध। आती, सुंदर स्त्री खड़ी हो-हो जाती है। तुम चकित भी होते हो
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