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जिन सूत्र भाग : 2
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मरना ही विधि है। सूली विधि है। और सूली के कारण तुम हाथ फैलाए हैं परमात्मा की तरफ, लेकिन परमात्मा को नहीं घबड़ाते हो। तुम कहते हो, किस विधि मिलना होय? कोई मांगते। परमात्मा से भी दो कौड़ी की चीजें मांगकर आ जाते हैं; रास्ता बताएं कि सूली से बचकर निकल जाएं, कि इधर-उधर से कि दुकान ठीक चले, कि मुकदमा जीत जाएं, कि किसी स्त्री से निकल जाएं। सूली यहां रही, रही आए, हम जरा पीछे के विवाह हो जाए, कि लड़के को नौकरी लग जाए, कि बीमारी दूर दरवाजे से निकल जाएं।
हो जाए। तुम मांगते क्या हो? । सूली विधि है। अगर तुम मुझसे पूछो, मरना विधि है। तो तुम्हारे आंसू बड़े झूठे थे। अब जो आदमी मांग रहा है कि 'किस विध मिलना होय?'
मुझे बीमारी है, वह दूर हो जाए-वह रो रहा है, लेकिन उसके मरो! मिटो। खो जाने को राजी हो जाओ।
| रोने में परमात्मा की प्रार्थना तो नहीं है। उसके आंसुओं में बीमारी 'प्रीतम आन मिलो'-तुम मिटे कि प्रीतम मिले।
की, असहाय अवस्था की घोषणा तो है, लेकिन जीवन का ऐसे चीखने-पुकारने से कुछ भी न होगा। सूली से डरते रहे धन्यभाव नहीं है, अहोभाव नहीं है। और कहते रहे, 'प्रीतम आन मिलो', तो कुछ भी न होगा। जरा गौर करना, तुम्हारे आंसू तुम्हारे हैं। तुम गलत हो तो 'नैना नीर झरे, हृदय पीर करे
तुम्हारे आंसू भी गलत हैं। और तुम्हारा हृदय तुम्हारा है। तुम प्रीतम आन मिलो।'
गलत हो तो तुम्हारे हृदय की पीर भी गलत है। नहीं, इतना काफी नहीं है। तुम तुम ही हो। और तुम तुम ही जिसे तू इंतहा-ए-दर्दे-दिल कहता है ऐ नादां रहकर आंसू भी गिरा रहे हो। वे आंसू भी तुम्हारे हैं। उन वही शौक-ए-वफा की इब्तदा मालूम होती है
आंसुओं में भी तुम्हारी भाषा है। उन आंसुओं में भी तुम्हारे जिसे तुम समझते हो कि यह दिल के दर्द की चरम सीमा है, संस्कार हैं। उन आंसुओं में भी तुम्हारी दृष्टि है। तुम्हारी आंख | यह केवल प्रेम की शुरुआत है, चरम सीमा नहीं। के आंसू हैं, तुम्हारी दृष्टि से भरे हैं। उन आंसुओं में भी तुम गौर जिसे तू इंतहा-ए-दर्दे-दिल कहता है ऐ नादां । से देखोगे तो सूली ही झलक रही है। जैसी तुम्हारी आंख में ऐ नासमझ! जिसे तू कहता है कि यह दिल के दर्द की आखिरी झलक रही है, तुम्हारे आंसुओं में भी सूली झलक रही है। वे घड़ी आ गई-नैना नीर झरे, हृदय पीर करे—वही तुम्हारी घबड़ाहट के आंसू हैं। वे तुम्हारी बेचैनी के आंसू हैं। शौक-ए-वफा की इब्लदा मालूम होती है। यह केवल शुरुआत
सूली को स्वीकार करो। तब एक अभिनव अनुभव होगा। है। यह प्रेम की यात्रा का पहला कदम है। और परमात्मा से आंसू फिर भी शायद बहें, लेकिन अब आनंद के होंगे। और मिलन तो अंतिम कदम पर होगा, पहले कदम पर नहीं। आंसओं में सिंहासन की झलक होगी। और तब तम्हें कहना न और पहले कदम और अंतिम कदम के बीच यात्रा क्या पड़ेगा, प्रीतम आन मिलो। उस घड़ी में मिलन हो ही जाता है। है?-तुम्हारे मिटने की यात्रा है। तुम धीरे-धीरे अपने को अन्यथा कभी हुआ नहीं, अन्यथा हो नहीं सकता। इधर तुम मिटे | छोड़ते जाओ। छलांग में छोड़ सको तो सौभाग्य। कंजूस हो तो कि मिलन हुआ। तुम ही बाधा थे। और तो कुछ रोक नहीं रहा धीरे-धीरे छोड़ो, क्रमशः छोड़ो। कृपण हो तो इंच-इंच छोड़ो, था। तुम ही रोके हो।
रत्ती-रत्ती त्याग करो। साहसी हो, एक क्षण में छलांग हो सकती _ 'नैना नीर झरे, हृदय पीर करे'-अभी तुम्हारी पीर में भी, है। कह दो एक क्षण में कि अब मैं नहीं। उसी क्षण में तुम | पीड़ा में भी तुम हो। तुम रोते भी हो तो तुम्हारे आंसू कुंआरे नहीं पाओगे, परमात्मा उतर आया। इधर तुमने जगह खाली की, कि हैं। तुम पीर से भी भरते हो तो तुम्हारी पीड़ा में भी शिकायत है। वह आया। तुम्हारी पीड़ा में भी दंश है। तुम्हारी पीड़ा में तुम्हारा सारा संसार | तुम भीतर के सिंहासन पर अकड़कर बैठे हो। वहीं से तुम छिपा है।
पूछताछ कर रहे हो। वहां से जगह खाली नहीं करते, बातें करते मंदिरों में जाकर देखो। लोग प्रार्थनाएं कर रहे हैं, मांगते क्या हो। अच्छी-अच्छी बातें सीख ली हैं—'प्रीतम आन मिलो। हैं? आंसू झर रहे हैं, मांगते क्या हैं? मांगते संसार की चीजें हैं। नैना नीर झरे, हृदय पीर करे।'
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