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मक्ति द्वंदातीत है
तो भरोसा बिलकुल आसान है। जब सब गलत जाने लगता है, आखिरी प्रश्नः मन जब एकदम शांत रहने लगेगा तब तब भरोसा कठिन होता है।
सांसारिक कार्य कैसे होंगे? लेकिन उसी कठिनाई की चुनौती को जो मान लेता है उसके जीवन में विकास होता है।
अशांत रहकर भी चल रहे हैं, तो शांत रहकर और भले तरह से तेरा-मेरा संबंध यही, तू मधुमय औ' मैं तृषित हृदय चलेंगे। आखिर शांति किसी काम में बाधा तो नहीं है। अशांत तू अगम सिंधु की रास लिये
रहकर भी कर लेते हो तो शांत रहकर तो और कुशलता से कर मैं मरु असीम की प्यास लिये
सकोगे। यह तो सीधा-सा गणित है। मैं चिर-विचलित संदेहों से
एक आदमी अशांत है और कोई काम कर रहा है, तो अर्थ हुआ तू शांत अटल विश्वास लिये
कि अशांति बड़ी शक्ति ले रही है। मन का तनाव बड़ी शक्ति पी तेरी मुझको आवश्यकता, आवश्यकता तुझको मेरी रहा है। फिर भी काम कर रहा है, किसी तरह खींच रहा है। तब मैं जीवन का उच्छवास लिये
भी कर लेता है। तो थोड़ा सोचो, जब तुम शांत हो जाओगे और तू जीवन का उल्हास लिये
सारी शक्ति काम में ही पड़ेगी क्योंकि मन कोई शक्ति रोकेगा तुझसे मिल पूर्ण चला बनने, बस इतना ही मेरा परिचय नहीं; अशांति नहीं, तनाव नहीं, कोई चिंता नहीं-जब तुम तेरा-मेरा संबंध यही, तू मधुमय औ' मैं तृषित हृदय पूरे-पूरे काम में उंडलोगे तो काम की गति तो बढ़ेगी, कुशलता हम प्यासे हैं। हम भूखे हैं। हम अतृप्त हैं-तृषित हृदय। बढ़ेगी, गुणवत्ता बढ़ेगी। और परमात्मा में छिपी है वह सुधा, वह अमृत, जो हमें तृप्त यह प्रश्न ही क्यों उठता है? यह प्रश्न इसलिए उठता है कि करेगी। परमात्मा और हमारे बीच जो संबंध है, वह प्यासे और तुम्हें अब तक यही समझाया गया है कि जो शांत हो जाते हैं, वे जल के बीच का संबंध है।
| संसार से भाग जाते हैं। इसीलिए संन्यास से एक भय हो गया अभी तुम्हें सरोवर दिखाई पड़ा है, पर दूर से दिखाई पड़ा है। है। शांति से भय हो गया है। यह भय बिलकुल निर्मूल है। अभी बहुत संभावना है कि फिर तुम वृक्षों की ओट में हो मैं तुमसे कहता हूं, अशांत भला भाग जाते हों संसार से, शांत जाओगे। शायद सरोवर की तरफ चलने में ही बहुत बार वृक्ष क्यों भागने लगे? शांत को भागने के लिए जरूरत ही क्या ओट में आ जाएंगे और सरोवर खो जाएगा। चलोगे भी सरोवर रही? शांत को तो आनंद आएगा चारों तरफ की अशांति के की तरफ, तो भी अनेक बार सरोवर दिखाई पड़ेगा, अनेक बार बीच खड़े होने में। क्योंकि यहां कसौटी होगी। खो जाएगा।
। यहां प्रतिपल भरोसा गहरा होगा कि अशांति कितनी ही हो जब खो जाए, तब भूलना मत कि है। क्योंकि जब दिखाई बाहर, अब मेरे भीतर प्रवेश नहीं करती। मैं अभेद्य दुर्ग में पड़ता है तब बिलकुल आसान मानना, कि है। जब खो जाता है विराजमान हो गया हूं। मेरी शांति अटूट है। अब कोई चीज इसे तब बहुत दुर्गम मानना, कि है। तब उदास हो, हताश हो, विशृंखल नहीं करती। मेरी शांति अब कमजोर नहीं है कि टूट थककर बैठ मत जाना।
जाए; कि कोई भी चीज मेरे मन को डांवाडोल करे। अब सब जो इस क्षण में हुआ है, इसे तुम सदा के लिए अपनी एक परीक्षाओं से गुजर रहा हूं और मेरी शांति और गहरी और मजबूत चिर-संचित निधि बना लो। यह जो भरोसा जगा है कि अब कुछ होती चली जाती है। हो सकता है, इसे भलना मत। कछ भी हो, कैसी भी परिस्थिति नहीं, मैं तमसे कहता है. शांत आदमी जो भी करेगा उसमें हो, इसे फिर-फिर जगा लेना। इसे याद रखना। यह तुम्हारी उसकी कुशलता बढ़ जाएगी। स्मृति से उतर न जाए।
लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं कह रहा हूं, शांत आदमी तो जो अभी झलक की तरह मिला है, वह तुम्हारी स्थायी वे सब काम करेगा ही, जो तुम कर रहे हो। क्योंकि कुछ काम हैं, संपदा बन जाता है।
जो केवल अशांत आदमी ही कर सकता है, क्योंकि उनका मूल
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