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जिन सूत्र भाग : 2
अशांति में है।
दवा लेने लगे। और मैं कितने दिन से साथ रही। जन्मों-जन्मों जैसे एक आदमी चोरी कर रहा है, तो मैं तुमसे यह नहीं कह | का, जुग-जुग का संग-साथ-तुम दवा लेने लगे? धोखेबाज सकता कि शांत आदमी चोरी कर सकेगा। कर सके तो कुशलता | कहीं के! दगाबाज कहीं के! दवा लेने लगे? यह तुम क्या कर से करेगा; मगर कर सकता नहीं। क्योंकि चोरी के लिए बड़ा रहे हो? सब खराब हो जाएगा। सोया चित्त चाहिए। बड़ा दीन-दुर्बल चित्त चाहिए। चोरी के लेकिन तुम बीमारी की नहीं सुनते। मन को तुमने अब तक लिए बड़ा अशांत, विक्षिप्त चित्त चाहिए।
बीमारी नहीं जाना। तुम सोचते हो, मन तुम हो। यहीं भूल हो शांत आदमी क्रोध न कर सकेगा। कर सके तो बड़ी कुशलता रही है। तुम मन नहीं हो। तुम मन के पार साक्षी हो। उस साक्षी से करेगा, मगर कर न सकेगा। क्योंकि क्रोध का मूल अशांति में का परम आनंद घटेगा शांति में। शांति में मन चला जाएगा, तुम है। लेकिन जीवन के सहज काम तो और कुशल हो जाएंगे। बचोगे। मन के बहुत-से व्यापार, जो रुग्ण हैं, जिन्होंने सिवाय
शांत आदमी ज्यादा बेहतर पति होगा, ज्यादा बेहतर पत्नी दुख के और कुछ भी नहीं दिया, वे भी चले जाएंगे। लेकिन होगी, ज्यादा बेहतर बेटा होगा, ज्यादा बेहतर बाप होगा, ज्यादा उनका चला जाना हितकर है। बेहतर मित्र होगा। शांत आदमी के जीवन में, जो भी शांति के मन सदा ध्यान में बाधा डालता है। क्योंकि ध्यान मन की मत्य साथ बच सकता है, वह सभी बेहतर, स्वर्णमयी होकर, है। मन समझाता है: सुगंधमयी होकर होगा। उसके सोने में सुगंध आ जाएगी। बहुत खोया, और खोने दो मुझे
तो मैं तुमसे यह नहीं कहता कि तुम्हारी सभी चीजें बचेंगी। और भी गुमराह होने दो मुझे लेकिन मैं यह कहता है, जो बचाने योग्य हैं वे बचेंगी। जो बचाने आज पलकों की छबीली छांह में लग गई है आंख योग्य ही नहीं हैं जिनको तम भी बचाना नहीं चाहते हो. वे ही सोने दो मझे। केवल खो जाएंगी। महंगा सौदा नहीं है।
बहुत खोया, और खोने दो मुझे महंगा सौदा तो तुम अभी कर रहे हो अशांति को चुनकर। आज पलकों की छबीली छांह में लग गई है आंख 'मन जब एकदम शांत रहने लगेगा तब सांसारिक कार्य कैसे सोने दो मझे होंगे?' मन बहाने खोज रहा है। मन कह रहा है, शांत मत हो लेकिन जिसे तुम पलकों की छबीली छांह समझ रहे हो, वहीं जाना। यह क्या कर रहे हो? ध्यान में लगे हो? अपनी जड़ें से तुम्हारे जीवन का सारा ज्वर, सारा उत्ताप पैदा हुआ है। जिसे खोद रहे हो? सब गड़बड़ हो जाएगा।
| तुम सौंदर्य समझ रहे हो उसी ने तुम्हारे जीवन को कुरूप किया मन का तो सब गड़बड़ हो जाएगा, यह सच है। मन ठीक ही है। और जिसे तुम सोचते हो तुम्हारा बल, वही तुम्हारी कह रहा है। क्योंकि मन है तुम्हारा रोग, बीमारी।
नपुंसकता है, वही तुम्हारी निर्बलता है। इसे ठीक से देखो। अगर तुम महत्वाकांक्षी हो तो महत्वाकांक्षा चली जाएगी। और अगर तुम्हें यह चिंता हो कि तुम अगर शांत हो गए तो अगर तुम पागल की तरह स्पर्धा में लगे हो, स्पर्धा चली जाएगी। संसार का क्या होगा. तो यह चिंता तम बिलकल मत करो। अगर तुम व्यर्थ चीजों को जोड़ने-बटोरने में लगे हो तो वह बहुत अशांत लोग हैं। तुम्हारे जाने से यहां कुछ बाधा न पड़ेगी। पागलपन उतर जाएगा।
यहां काफी पागल हैं। तुम इस चिंता में मत पड़ो कि मैं अगर तो मन तो ठीक कह रहा है। मन को संसार की फिक्र नहीं है, ठीक हो गया, तो पागलखाने का क्या होगा? यह चलता ही रहा मन को अपनी फिक्र है। मन यह कह रहा है, कि मेरा क्या है। यह चलता ही रहेगा। होगा? तुम तो शांत होने लगे, कुछ मेरी तो सोचो! कितने दिन ये रंगे-बहारे-आलम है तुम्हारे साथ रहा!
क्यों फिक्र है तुझको ऐ साकी! यह तो ऐसे ही हुआ, कि तुमने दवा लेनी शुरू की, बीमारी महफिल तो तेरी सूनी न हुई, | तुमसे कहे, कि जरा यह भी तो सोचो, मेरा क्या होगा? तुम तो कुछ उठ भी गए कुछ आ भी गए
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