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पहुंच सकोगे। गलत को गलत मान लेना, स्वीकार कर लेना, क्षमा मांग लेना, क्योंकि गलत को गलत की तरह जानते ही फिर उसके दुबारा दोहरने का कारण नहीं रह जाता।
'अपने पूर्वकृत बुरे आचरण की गर्हा करे, सब प्राणियों से क्षमाभाव चाहे।' सब प्राणियों से। महावीर कहते हैं, इसकी फिकर न करे कि किसके साथ मैंने बुरा किया, क्षमा ही मांगनी है। तो इसमें क्या कंजूसी! इसके पीछे बड़ा राज है। क्योंकि महावीर कहते हैं, हम इतने जन्मों से इस पृथ्वी पर हैं कि करीब-करीब हम सभी के साथ बुरा-भला कर चुके होंगे। इतनी लंबी यात्रा है कि हम करीब-करीब सभी से मिल चुके होंगे। असंभव है यह बात कि कोई भी ऐसा पृथ्वी पर हो जिससे किसी जन्म में, किसी मार्ग पर, किसी चौराहे पर मिलना न हुआ हो। तो महावीर कहते हैं, इतना लंबा अतीत है, तुम कहां हिसाब करोगे किससे क्षमा मांगें, किससे न मांगें ! और फिर क्षमा ही मांगनी है, तो इसमें क्या हिसाब-किताब रखना! सभी से क्षमा मांग लेना ।
'सभी प्राणियों से क्षमाभाव चाहे । प्रमाद को दूर करे।' तंद्रा को तोड़े। निद्रा को तोड़े, आलस्य को छोड़े। क्योंकि जितने ही तुम तेजस्वी बनोगे, जागरूक बनोगे, उतनी जल्दी घर करीब आयेगा, उतनी जल्दी मंजिल करीब आयेगी। नींद नींद में थड़ाते - लथड़ाते, किसी तरह चलते-चलते तुम मंजिल तक पहुंच न पाओगे। तुम कहीं बीच में मार्ग पर सो जाओगे ।
'और चित्त को निश्चल करके तब तक ध्यान करे जब तक पूर्वबद्ध कर्म नष्ट न हो जाएं।' संघर्ष है। हजार बाधाएं हैं। मन के पुराने तर्क हैं। पुरानी आदतें हैं। संस्कार हैं। गलत को ठीक करने की चेष्टा अहंकार की चेष्टा है। दूसरा ठीक भी करे, तो हम गलत मानने को तत्पर रहते हैं। खुद गलत भी करें तो ठीक सिद्ध करने का उपाय करते हैं। ये सब उपद्रव हैं। इन सब उपद्रवों को पार कर के ही कोई ध्यान तक पहुंचता है। फजा में मौत के तारीक साये थरथराते हैं
हवा के सर्द झोंके कल्ब पर खंजर चलाते हैं गुजश्ता इसरतों के ख़्वाब आईना दिखाते हैं मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं
फजा में मौत के तारीक साये थरथराते हैं।
Jain Education International 2010_03
त्वरा से जीना ध्यान है।
हवा के सर्द झोंके कल्ब पर खंजर चलाते हैं
और हृदय प्रतिपल क्षीण हो रहा है, जैसे कि हवा का हर झोंका छुरी चला रहा हो । प्रतिपल हम मर रहे हैं। एक घड़ी गयी, एक घड़ी जिंदगी गयी। एक घड़ी गयी, एक घड़ी मौत करीब आयी ।
गुजश्ता इसरतों के ख़्वाब आईना दिखाते हैं
और इंद्रियों की कामवासना है, सुखभोग की आकांक्षाएं हैं, वे नये-नये सपने बुने रही हैं। इधर जीवन हाथ से जा रहा, उधर वासना सपने बुन रही है। इधर मौत पास आ रही है, उधर वासना खींचे चली जाती है। वह कहती है, आज की रात और ! गुजरता इसरतों के ख़्वाब आईना दिखाते हैं
मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं जमीं चीं -बर - जबीं है आसमां तखरीब पर माइल रफीकाने - सफर में कोई बिस्मिल है कोई घायल तआकुब में लुटेरे हैं, चट्टानें राह में हाइल मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं बड़ी चट्टानें हैं। बड़ी बाधाएं हैं। हजार तरह के उपद्रव हैं। कोई हत्यारा है, कोई घायल है, कोई दुखी है, कोई दुखी कर रहा है। इन सबसे, इन सबके बीच से आसमान नाराज मालूम पड़ता है, जमीन क्रुद्ध मालूम पड़ती है, ऐसा लगता है हम अजनबी हैं और हर चीज हमारी दुश्मन है। फिर भी आदमी को बढ़ते ही जाना है।
चिरागे- दैर फानूसे-हरम कंदीले-रहबानी ये सब हैं मुद्दतों से बेनियाजे- नूरे - इर्फानी न नाकूसे बिरहमन है, न आहंगे-हुदी -ख्वानी मगर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता ही जाता हूं और इस सबसे भी ऊपर और एक मुश्किल खड़ी हो गयी है। चिरागे- दैर फानूसे- हरम कंदीले रहबानी
मंदिर का दीपक कभी का बुझ गया। काबे का फानूस मुर्दा है। उसमें कोई ज्योति नहीं ।
चिरागे - दैर फानूसे- हरम कंदीले-रहबानी
गिरजे की मोमबत्ती में कोई रोशनी नहीं रही।
ये सब हैं मुद्दतों से बेनियाजे- नूरे - इर्फानी
न - मालूम कितनी सदियों से इनके साथ परमात्मा का संबंध
हवा में सब तरफ मौत की अंधेरी छाया है। प्रतिक्षण मौत आ छूट गया है। परमात्मा का नूर अब इनमें झलकता नहीं । सकती है, किसी भी क्षण मौत आ सकती है।
न नाकूसे बिरहमन है
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