________________
जिन सूत्र भाग : 2
गयी वह घड़ी, अब झुक परमात्मा को, भूल मुझे। पद तो यहां दर्शनशास्त्री नहीं हूं। मैं तुम्हें कोई शास्त्र नहीं दे रहा हूं। संकेत दे पूरा हो जाता है, फिर किसी ने कभी कबीर को पूछा नहीं कि रहा हूं। और जीवन के काव्य को समझना हो तो बंधी-बंधायी, वस्तुतः तुम लगे किसके पैर? मैं मानता हूं कि कबीर गुरु के ही पिटी-पिटायी धारणाओं को हटाना, ताकि जीवन अपनी सुषमा पैर लगे-'बलिहारी' शब्द में ही बात आ गयी। अब कैसे को, अपने सौंदर्य को प्रगट कर सके। मन को थोड़ा किनारे कर और कुछ किया जा सकता है।
के रखना। गुरु अंततः तुम्हें अपने से भी मुक्त कर देता है— बलिहारी | तुम्हें मैंने आह! संख्यातीत रूपों में किया है याद गुरु आपकी गोविंद दियो बताय।'
सदा प्राणों में कहीं सुनता रहा हूं तुम्हारा संवादतो गुरु तो परमात्मा है। गुरु तो परमातमा का द्वार है। ये जो बिना पूछे, सिद्धि कब? इस इष्ट से होगा कहां साक्षात प्रश्न उठते हैं, ये उठ आते हैं संस्कारों से। संस्कार बाधा हैं। कौन-सी वह प्रात, जिसमें खिल उठेगी क्लिन्न, संस्कारों से मुक्त होना है। और एक ऐसा चित्त पाना है, जहां | सूनी शिशिर-भीगी रात? कोई संस्कार तथ्यों पर धूमिल छाया न डालते हों। जहां तथ्य | चला हूं मैं; मुझे संबल रहा केवल बोधप्रगट होते हों, जैसे हैं वैसे ही। भक्त की कोशिश यही है कि | पग-पग आ रहा हूँ पास; भगवान होना है।
रहा आतप-सा यही विश्वास तुझी से तुझे छीनना चाहता हूं
स्नेह के मृदुघाम से गतिमान रखना निबिड़ ये क्या चाहता हूं, ये क्या चाहता हूं
मेरे सांस और उसांस। भक्त बेचैन भी होता है कि यह भी क्या चाह रहा हूं! लेकिन आह, संख्यातीत रूपों में तुम्हें किया है याद! तुझ ही को तुझ ही से छीनना चाहता हूं, चेष्टा तो यही है कि यहां | तुमने जब भी कुछ चाहा है, मैं कहता हूं, तुमने परमात्मा ही जो प्राणों का दीया जल रहा है, यह भगवत्ता का दीया हो जाए। चाहा है। तुमने धन चाहा, तो धन में भी तुम परमात्मा को ही जब तक भक्त भगवान न हो जाए, तब तक यात्रा पूरी नहीं हुई। खोजते थे। तुमने पद चाहा, तो पद में भी तुम परमपद को ही इंचभर भी दूरी रह गयी, तो कछ पाने को शेष रहेगा। है क्या | खोजते थे। तुमने किसी स्त्री के प्रेम में आंसू बहाये, तो तुम ईश्वर?
प्रार्थना को ही टटोलते थे। तुम किसी मोह से भरे, तुम किसी ईश्वर वह प्रेरणा है
राग में गिरे, तो उन सब खाई-खड्डों में भी तुम प्रभु का ही मार्ग जिसे अब तक शरीर नहीं मिला
खोजते थे। अनंत-अनंत रूपों में अनंत-अनंत ढंगों से आदमी टहनी के भीतर अकुलाता हुआ फूल,
उसी को खोज रहा है। भला तुम्हारी खोज गलत हो, लेकिन जो वृंत पर अब तक नहीं खिला
तुम्हारे प्राणों की अकुलाहट गलत नहीं है। भला तुम रेत से तेल टहनी के भीतर अकुलाता हुआ फूल, जो वृंत पर अब तक | निचोड़ने की चेष्टा कर रहे होओ, लेकिन तेल निचोड़ने की नहीं खिला—बस वही ईश्वर है। ईश्वर भविष्य है, संभावना आकांक्षा थोड़े ही गलत है। तुम वहां खोज रहे हो, जहां न पा है। ईश्वर तुम जो हो सकते हो उसका नाम है। ईश्वर तुम्हें जो सकोगे, विषाद हाथ लगेगा, विफलता हाथ लगेगी, लेकिन होना ही चाहिए उसका नाम है। ईश्वर तुम्हारी बीजरूप संभावना इससे तुम्हारी खोज की ईमानदारी को तो इनकारा नहीं जा है। तुम्हारे बीज में छिपा हुआ सत्य है।
सकता। पत्थर पूजो, प्रेमी को पूजो, अनजाने, तुम्हारी बिना टहनी के भीतर अकुलाता हुआ फूल,
पहचान के परमात्मा की तरफ ही तुम बढ़ रहे हो। जो वंत पर अब तक नहीं खिला
तुम्हें मैंने आह! संख्यातीत रूपों में किया है याद मैं जब ईश्वर की बात कर रहा हूं तो मैं किसी दर्शनशास्त्र की और कोई उपाय भी नहीं है। जिस दिन तुम ऐसा समझोगे, उस बात नहीं कर रहा हूं। मैं तो तुम्हारे जीवन-काव्य की बात कर दिन तुम्हारे जीवन में एक लयबद्धता आ जाएगी। तब तुम रहा हूं। तुम मुझे एक कवि की तरह याद रखना। मैं कोई | देखोगे, सब कदम जो किन्हीं भी रास्तों पर पड़े, सभी
3120
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org