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जिन सूत्र भाग : 2
मत भटको यहां-वहां, बुझ जाएगा। इसे तो संभालकर रखो।। | कांटे से लड़ो मत। कहीं भीतर लड़ाई चल रही होगी। कहीं अब यह सूरज बन सकता है।
भी लग रहा होगा कि यह कहां उलझ गये। यह कांटा तो पीड़ा दे
रहा है! पीड़ा तो होगी। सभी निखार पीड़ा से संभव होते हैं। यह तीसरा प्रश्न : तने आटा लगाया और हमें फंसाया। अब हम प्रसव-पीड़ा है। अनेक बार गर्भवती स्त्री को मन में खयाल कष्ट पा रहे हैं और अकेले-अकेले तड़फ रहे हैं, इसका आता है, कहां उलझ गये! बोझ बढ़ता जाता है पेट में, वमन जिम्मेवार कौन?
होने लगता है, भोजन पचता नहीं, रात नींद नहीं आती, एक लंबी
यातना हो जाती है। कितनी बार नहीं गर्भवती स्त्री सोचती होगी आटे का लोभ। आटे के लोभ ने फंसा दिया। न करते लोभ, कि अच्छा होता कि प्रेम में पड़े ही न होते! लेकिन इस पीड़ा को न फंसते। अब जब फंस ही गये हो, तो पीड़ा कांटे के कारण नहीं झेल लेती है, तो मां बन जाती है। और मां बने बिना कोई स्त्री हो रही है। अभी भी कांटे से संघर्ष चल रहा होगा, इसीलिए हो पूर्ण नहीं होती। रही है।
पुरुष तो बाप बनने से कुछ बहुत नहीं पाता-थोड़ी बहुत अब कांटे के साथ ही हो लो। अब कांटे से राजी हो जाओ। | झंझटें पाता होगा क्योंकि बाप होना पुरुष का कोई निसर्ग नहीं जिससे हम राजी हो जाते हैं, उसी से पीड़ा होनी बंद हो जाती है। है, सामाजिक व्यवस्था है। प्रकृति में आदमी को छोड़कर और पीड़ा से भी राजी हो जाओ, तो पीड़ा समाप्त हो जाती है। | तो बाप कहीं होता नहीं। मां तो सभी जगह होती है। पशु में, इसे समझना।
| पक्षी में, सब जगह मां होती है। मां नैसर्गिक व्यवस्था है। बाप जब तक हम लड़ते रहते हैं किसी चीज से, तभी तक पीड़ा सामाजिक व्यवस्था है। इसी कारण मार्क्स जैसे विचारकों ने तो होती है। जब स्वीकार कर लिया, कहा कि चलो, सौभाग्य कि यह भी कहा कि जब समाजवाद पूरी तरह व्यवस्थित हो जाएगा, इस योग्य समझे गये कि फंसाये गये, कि इस योग्य समझे गये तो बाप की संस्था खो जाएगी। क्या जरूरत रह जाएगी? राज्य कि कांटा हमारे लिए डाला गया। जीसस ने कहा है, परमात्मा | काम कर देगा बाप का। वैसे कर ही रहा है धीरे-धीरे। शिक्षा अपना जाल फेंकता है मछुवे की भांति। उसमें बहुत-सी मुफ्त, अस्पताल मुफ्त, तो बाप का काम छिनता जा रहा है। एक मछलियां फंस जाती हैं, लेकिन सभी चुनी नहीं जाती। जिनको | न एक दिन कम्युनिज्म जब पूरी तरह फैल जाएगा-ऐसा मार्क्स व्यर्थ पाता है, उन्हें वापस सागर में छोड़ देता है। जिन्हें सार्थक का खयाल-बाप समाप्त हो जाएगा। मां समाप्त नहीं होगी। पाता है, उन्हें घर ले जाता है।
मां को समाप्त करने का कोई उपाय नहीं है। अगर फंस गये होओ मेरे जाल में, कांटा छिद गया, तो बाप को तो थोड़ी झंझट-सी ही होती है बाप बनकर, लेकिन सौभाग्यशाली हो। परमात्मा का लोभ रहा होगा। आटे का लोभ मां बड़ी सौभाग्य से भर जाती है। मां बने बिना स्त्री ऐसी ही होती उसी को मैं कह रहा हूं। आत्मा को पाने का लोभ रहा है जैसे कि कोई वृक्ष जिस पर फूल नहीं आया, फल नहीं होगा-आटे का लोभ! वह लोभ भी सौभाग्य है! धन के | लगे-बांझ। प्रसाद नहीं होता। मां बनते ही स्त्री के भीतर से लोभी तो बहुत हैं, धर्म के लोभी कहां? पदार्थ के लोभी तो बहुत | एक आभा फूटती है। जीवनदात्री ! लेकिन वह जीवनदात्री बनने हैं, परमात्मा के लोभी कहां? कंकड़-पत्थर बीननेवाले तो बहुत के लिए पीड़ा सहनी पड़ती है। हैं, करोड़ों हैं, हीरों के पारखी कहां? उसी को आटे का लोभ | और इसलिए ठीक भी है कि बाप को तो कोई पीड़ा सहनी नहीं कह रहा हूं। नहीं तो मेरे पास आ नहीं सकते थे। मेरे पास आने पड़ती। इसलिए बच्चा पैदा हो जाता है, इससे बाप को तो कोई में बाधाएं तो बहत हैं, सविधाएं कहां हैं? जो सब तरह की पीड़ा सहनी नहीं पड़ती। बाप तो करीब-करीब बाहर खडा रह बाधाओं को तोड़कर आ सकता है, वही आ सकता है। जाता है। बाप का कोई बहुत बड़ा सहयोग नहीं है। जो बाप
यह कांटा जो तुम्हें छिद गया है, यह तुम्हारे जन्मों-जन्मों का | करता है वह एक इंजेक्शन भी कर सकता है। इससे कोई, बाप
पुण्य ही हो सकता है, अन्यथा छिद नहीं सकता था। अब इस | का कोई ऐसा आत्यंतिक साथ नहीं है। झेलना तो मां को पड़ता 272 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only
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