________________
जीवन तैयारी है, मृत्यु परीक्षा है
पास बैठकर शून्य होने का अनुभव ले लेना। शुरू-शुरू में हाथ से हाथ भी छू जाएगा, तो छुरी लगेगी। हाथ में हाथ पकड़ जरूरत है सहारे की। अकेले तो तुम बहुत घबड़ाओगे। इधर मैं | आ जाएगा, तो आत्यंतिक मृत्यु भी घटेगी। अब तुम जिनको भी हूं, तो तुम्हें भरोसा है कि आदमी मिट भी जाए तो भी होता है, | ऐसा हो रहा हो— उन्हें जानना चाहिए कि सौभाग्यशाली हैं, घबड़ाने की कोई बात नहीं। वस्तुतः जितना मिट जाए, उतना ही कुंजी हाथ में आने लगी। देर न लगेगी ताले खोल लेने में। प्रगाढ़ता से होता है। जब कोई आदमी बिलकुल शून्य हो जाता छोटी-सी कुंजी होती है, बड़े से बड़े विराट महलों के ताले खुल है, तो पूर्ण हो जाता है। इस आश्वासन में बंधे तुम मेरे करीब आ जाते हैं। छोटी-सी कुंजी होती है, बड़े-बड़े द्वार खुल जाते हैं। सकते हो। बिना इस आश्वासन के तुम बहुत डरोगे। तुम नाव यह जो अभी छोटी-सी छुरी की तरह छिदती मालूम पड़ती है, को किनारे से छोड़ोगे नहीं। तुम किनारे को जकड़े रहोगे। यह कुंजी है। इसी राह चले चले, तो महामृत्यु घटेगी। भागना
ठीक हो रहा है। छुरी चुभती है, चभने दें। और आकांक्षा भी | भर मत। घबड़ाना भर मत। ठीक है। वह आकांक्षा सूचक है कि छुरी को चुभने दिया है। साधक अपनी मृत्यु खोज रहा है। परमात्मा का तो हमें पता पूछा है, आत्यंतिक-मृत्यु कब घटित होगी? घबड़ाओ मत, वह नहीं। इतना ही पता है कि हम जो हैं, गलत हैं। इस गलत को भी होगी। चले चलो। राह पर हो।
मिटाने के लिए साधक आकांक्षा कर रहा है। इस आशा में कि सत्संग का जिसे सुख आ गया, उसकी भावदशा ऐसी हो जाती | जब गलत मिटेगा, तो जो शेष रहेगा, ठीक होगा। प्रकाश का
हमें कुछ पता नहीं, यह अंधेरा हमें खूब भटका लिया है, इतना कुछ न हुआ, न हो
हमें पता है। यह अंधेरा न रहेगा, तो जो बचेगा वह प्रकाश होगा, मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल
यही हम सोच सकते हैं, यही हम कामना कर सकते हैं। पास तुम रहो।
साधक ने जीवन तो देखा-तुम सब ने जीवन देखा—चारों मेरे नभ के बादल यदि न कटे
तरफ जीवन का सपना तुम्हारे फैला है, पाया क्या? सब पा चंद्र रह गया ढंका,
लिया हो तो भी कुछ नहीं मिलता। जो कुछ नहीं पा पाते वे तो तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे
नंगे रह ही जाते हैं, खाली रह ही जाते हैं, जो सब पा लेते हैं वे भी लेश गगन भास का,
खाली रह जाते हैं। इस जीवन की जैसे ही समझ साफ होती, वैसे रहेंगे अधर हंसते, पथ पर, तुम
ही आदमी सोचता है कि यह जीवन तो देख लिया, अब मृत्यु को हाथ यदि गहो।
भी देख लें। शायद जो यहां नहीं, वहां हो। इधर खोजा, इस राह कुछ न हुआ, न हो
पर खोजा, नहीं मिला, विपरीत राह पर खोज लें। अपने से दूर रहेंगे अधर हंसते, पथ पर, तुम
जाकर देख लिया, अब अपने पास आकर देख लें। बाहर जाकर हाथ यदि गहो।
देख लिया, अब भीतर आकर देख लें। विचार करके, बह रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा
चिंतन-मनन करके देख लिया, अब ध्यान करके देख लें। होने मंद सबों ने कहा,
की प्रगाढ़ आकांक्षा करके देख ली, अब न होने की कामना करके मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा
देख लें। वह न होने की कामना ही प्रार्थना है। ज्ञान, जहां का तहां रहा,
जैसे-जैसे मृत्यु इंच-इंच तुममें प्रवेश करेगी, तुम पाओगे मृत्यु रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम
के बहाने परमात्मा तुम्हारे भीतर आने लगा। वह सदा मृत्यु के कथा यदि कहो।
बहाने ही आता है। वह केवल उनके पास ही आता है, जो मरने अगर, तुमने फैलाया अपने प्राणों का सेतु मेरी तरफ, तुमने को तत्पर हैं। जो कहते हैं तेरे बिना जीना, इसके लिए हम राजी अगर हाथ मेरी तरफ बढ़ाया-मेरा हाथ बढ़ा ही है-मैं तुम्हारे नहीं। तेरे साथ मरने को राजी हैं, तेरे बिना जीने को राजी नहीं। हाथ गहने को तैयार हूं। प्रतीक्षा है बस तुम्हारे हाथ के बढ़ने की। जो ऐसा दांव लगाता है, वही उसे पाता है।
265
___Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org