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जिन सूत्र भागः2
संपदा समझा है।
पाप की घोषणाएं की हैं; वे भी अतिशयोक्तिपूर्ण हैं, झूठी हैं।। महावीर कहते हैं, जैसे कांटा चुभने पर सारे शरीर में वेदना या | पाप को बढ़ा-चढ़ाकर कहा है। पीड़ा होती है। और कांटे के निकल जाने पर शरीर निशल्य, आदमी अदभुत है। या तो पाप को छिपाता है, या सर्वांग-सुखी हो जाता है। एक छोटा-सा कांटा निकलने का बढ़ा-चढ़ाकर कहता है। झूठ की पकड़ ऐसी है कि अगर इस सुख देखा? कांटा निकलते ही सब हलका हो जाता है। एक तरफ से हटे, तो दूसरी अति पर झूठ हो जाती है। भार हटा। एक चित्त से पीड़ा गयी। एक प्रसन्नता उठी। एक गांधी की आत्मकथा में ऐसी ही अतिशयोक्ति है। रूसो की साधारण भौतिक कांटे के निकलने से। थोड़ा सोचो तो, आत्मकथा में इसी तरह की अतिशयोक्ति है। अगस्तीन की आध्यात्मिक कांटों का निकल जाना कैसा निर्भार न कर देगा! आत्मकथा में इसी तरह की अतिशयोक्ति है और टालस्टाय की पंख लग जाएंगे तुम्हें। उड़ने लगोगे आकाश में। वजन न रह आत्मकथा में भी इसी तरह की अतिशयोक्ति है। अब तो इसके जाएगा तुममें। हवा की तरह हो जाओगे—मुक्त। पवित्र हो | बिलकुल प्रबल प्रमाण मिल गये हैं कि टालस्टाय ने ऐसी बातें | जाओगे गंगा की तरह। फिर कुछ तुम्हें अपवित्र न कर पायेगा। कही हैं जो हुई नहीं थीं। लेकिन पाप को बढ़ा-चढ़ाकर बखान तुम जिन कांटों को लगाकर बैठे हो, उन्हीं से नासूर हो गये हैं। किया। अगर यही सदगुण है कि अपने पाप को खोल देना, तो _ 'कांटे के निकल जाने से शरीर निशल्य सर्वांग-सुखी हो जाता छोटे-मोटे पाप क्या खोलो! सोचो तुम्हीं! अगर गये तुम और है। वैसे ही अपने दोषों को प्रगट न करनेवाला मायावी दुखी या स्वीकार ही करना है पाप और तुमने कहा कि किसी के दो पैसे व्याकुल रहता है। और उनको गुरु के समक्ष प्रगट कर देने पर चुरा लिये, तो तुमको भी दीनता लगेगी कि चुराये भी तो दो पैसे सुविशुद्ध होकर सुखी हो जाता है। मन में कोई शल्य नहीं रह चुराये! तो मन करेगा कि जब चोरी स्वीकार ही कर रहे हो, तो जाता।' महावीर भी नहीं कहते कि तुम जाओ और बीच बाजार लाखों की करने में क्या हर्जा है। कहो कि दो लाख चरा लिये। में खड़े होकर अपने पापों की घोषणा करो। वस्तुतः उस तरह की | पापी भी क्या छोटे-मोटे होना! जब पाप की ही स्वीकृति कर रहे घोषणा में खतरा है। एक तो तुम कर न सकोगे। और अगर हो, तो कम से कम और कहीं आगे न हो सके, इसमें तो आगे हो कभी किया तो अतिशयोक्ति कर दोगे। क्योंकि तब तुम बाजार | जाओ। अहंकार वहां भी पकड़ लेगा। वहां भी झूठ हो जाएगा। में घोषणा करके यह सिद्ध करना चाहोगे कि मुझसे बड़ा पाप की | तो न तो ऐसे पाप की स्वीकृति करना जो किया नहीं, न ऐसे पुण्य घोषणा करनेवाला कोई भी नहीं है, देखो। तब तुम अतिशयोक्ति की घोषणा करना जो किया नहीं। कर दोगे। तब तुमने जो पाप नहीं किये हैं, वह भी तुम स्वीकार | महावीर कहते हैं, इसलिए एकांत में, गुरु के सामीप्य में जो कर लोगे।
तुम्हें समझ सकेगा-उससे चुपचाप अपनी बात कह देना। मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन पर एक मुकदमा चला। जब और तुम उसके सामने न तो पाप को छोटा करके बोल पाओगे, सालभर की सजा काटकर वह वापस लौटा, तो मैंने पूछा, | न बड़ा करके बोल पाओगे। क्योंकि उसका सरल वातावरण, नसरुद्दीन, तुम्हारी उम्र नब्बे वर्ष की हो गयी, तुम यह कर कैसे | उसकी शांति, उसका आनंद तुम्हारे अहंकार को मौके न देगा। सके? मुकदमा यह था कि उसने एक युवती के साथ बलात्कार | उसकी विनम्रता तुम्हें विनम्र बनायेगी। उसकी सहजता तुम्हें किया। उसने कहा, मैंने इस युवती को जाना भी नहीं, न सहज बनायेगी। गुरु के दर्पण के सामने बैठकर तुम्हें वही तस्वीर बलात्कार किया है, लेकिन जब अदालत में सुंदर युवती ने कहा, | घोषणा करनी पड़ेगी, जो तुम हो। बस उतनी ही घोषणा कर देनी तो मैं इनकार न कर सका। यह बात ही मुझे प्रसन्नता से भर गयी | है, जो तुम हो। इस घोषणा से ही तुम निर्भार होते हो। तुम्हारे कि नब्बे साल का बूढ़ा और बीस साल की युवती से बलात्कार | चित्त का बोझ हलका हो जाता है। द्वंद्व मिट जाता है, कर सका। में इनकार न कर सका। यह सालभर की सजा काट | | विरोधाभास समाप्त हो जाता है, गांठें खुल जाती हैं। लेने जैसी लगी।
और, जो तुम एक व्यक्ति को कह सके और आनंद पा सके, मनोवैज्ञानिक इसका अध्ययन करते रहे। कुछ लोगों ने अपने तो तुम धीरे-धीरे पाओगे कितना न होगा आनंद अगर मैं सबको
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