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कहता है, हम मर जाएंगे, उससे कैसे बचें! बड़ी कठिनाई है । हैं हम किसी को तो ले ही जाएंगे। बिना... खाली हाथ नहीं जा लेकिन कुछ बातें खयाल में लेनी चाहिए। सकते। कोई और जाने को राजी हो तो चलो हम किसी और को ले जाएंगे। इतना मैं उन्हें समझा-बुझा सकता हूं। पिता ने कहा कि मेरा मरना तो मुश्किल है, और भी बेटे हैं। उनकी भी मुझे फिक्र करनी है, कोई यह ही तो एक बेटा नहीं है। मां ने कहा कि मैं मर जाऊंगी तो मेरे पति का क्या होगा ? बुढ़ापे में मैं ही तो इनकी सेवा कर रही हूं। ऐसा एक-एक इनकार करता चला गया। पत्नी जो खूब छाती पीट-पीटकर रो रही थी और कहती थी मैं मर जाऊंगी, जब यह सवाल उठा, तो उसने कहा अब छोड़ो भी, यह तो मर ही गये, हमको छोड़ो। अब यह तो मर गये, हम किसी तरह चला लेंगे।
तो फकीर ने कहा, बेटा! अब उठ, अब क्या कर रहा है? अब पड़ा पड़ा क्या सोच रहा है? वह आदमी उठा और उसने कहा कि ठीक, अब यह तो मर ही गये उसने कहा, और ये लोग तो चला ही लेंगे, मैं आया। आपके पीछे आता हूं।
किसी ने कभी रस्सी ली नहीं। इससे कुछ घबड़ाने की जरूरत नहीं है। इससे कुछ परेशान होने की जरूरत नहीं है। और इस तरह की धमकियों से दब जाना बहुत खतरनाक है। इस तरह की धमकियों से एक बार दब गये कि सदा के लिए दब गये। तो अगर तुम गांधीवादी हो – तुम भी, क्योंकि उन्हीं मां-बाप के बेटे हो – तो रास्ता यह है कि तुम कह दो, हम भी रस्सी ले लेंगे अगर गेरुवा न पहनने दिया। और क्या करोगे! होने दो रस्साकसी! अब और तो मैं सलाह क्या दे सकता हूं! लिख दो पत्र कि फौरन तार से सूचना भेजें संन्यास लेने की आज्ञा, नहीं तो रस्सी ले लूंगा ।
पहली बात, तुम पृथ्वी पर पहली दफे नहीं हो। और तुम्हारे माता-पिता पहले माता-पिता नहीं हैं। अब तक किसी माता-पिता ने पूरे मनुष्य जाति के इतिहास में, किसी के संन्यास लेने पर रस्सी नहीं ली। कहते सभी थे। कहा सभी ने। बुद्ध के पिता ने भी । मगर रस्सी किसी ने नहीं ली। कोई मां-बाप आज तक मरा नहीं इस कारण कि बेटे ने संन्यास ले लिया। थोड़ा सोचो तो, बेटे के मरने पर नहीं मरते मां-बाप, संन्यास लेने पर मर जाएंगे! गांधीवादी धमकी है, घबराने की | कोई जरूरत नहीं । दो कौड़ी की है। इसका कोई भी मूल्य नहीं है। कोई कभी किसके लिए मरता है !
एक युवक एक सूफी फकीर के पास जाता था। रस में डूबने लगा। मस्ती भरने लगी। भाव उठने लगा कि हो जाए वह भी फकीर । पर उसने कहा, मैं हो नहीं सकता हूं, मेरी पत्नी मर | जाएगी ! मेरे बेटों का क्या होगा? मेरे मां-बाप वृद्ध हैं, वे जी न सकेंगे, एक दिन । कई लोगों की हत्या मेरे सिर पड़ जाएगी, आप क्या कहते हैं।
उस फकीर ने कहा, एक काम करो । आठ-दस दिन यह मैं तुम्हें श्वास की साधना देता हूं, उसे कर लो। उसने कहा, इससे क्या होगा? उसने कहा कि फिर दसवें दिन तुम सुबह ही सांस साधकर पड़ जाना। मर गये। फिर मैं आऊंगा, फिर सारा दृश्य अपन समझ लेंगे कि तुम्हारे मरने से कौन-कौन मरता है। उसने - कहा, यह बात तो ठीक है !
दसवें दिन...दस दिन उसने अभ्यास किया सांस को साधने का, फिर दसवें दिन सांस को रोककर पड़ रहा। रात से ही उसने | कह दिया था कि हृदय में बड़ी धड़कन हो रही है, घबड़ाहट हो रही है, ऐसा-वैसा, तो घर के लोग तैयार ही थे, कि मरता है, क्या होता है ! सुबह वह मर ही गया। छाती पीटना, | रोना-चिल्लाना शुरू हो गया। वह फकीर आया । बंधा हुआ सब षड्यंत्र था। उस फकीर ने आकर कहा, क्यों रोते-चिल्लाते हो? उन्होंने कहा, यह बेटा मर गया, आप तो महापुरुष हैं, चमत्कार करें। आप तो कुछ भी कर सकते हैं। आपके आशीष से क्या नहीं हो सकता! उसने कहा मैं करूंगा, लेकिन इसकी जगह मरने को कौन तैयार है? क्योंकि यमदूत खड़े हैं, वे कहते
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करना है संसार, होना है धर्म
अगर तुम संन्यास लेना ही चाहते हो, तो फिर तुम्हें कोई नहीं रोक सकता । तुम न लेना चाहते होओ, तो यह तरकीब काफी है तुम्हें रोकने को। लेकिन ध्यान रखना, मां-बाप ने नहीं रोका तुम्हें, तुम खुद रुके। यह भी तुम खयाल रखना। अगर रुकते हो, तो तुम खुद रुके। तुम बेईमान हो, यह तो मां-बाप का बहाना ले लिया। यह तो तुमने एक तरकीब खोज ली कि क्या करें, मां-बाप मरने को तैयार हैं। इसलिए रुक रहे हैं। लेकिन कल मां-बाप मरेंगे ही। मरने से कौन कब बचा है ! जो होना ही है, वह होगा ही। और अगर तुम्हारे संन्यास से ही मरते हों तो कम से कम एक तो उनके खाते में बात लिखी रहेगी कि धार्मिक
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