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जिन सूत्र भाग: 2
नहीं, तो यह बात समझ में आ जाती है, यह भी छोड़ दो। है भी पर इससे क्या फर्क होता। फिर नया जन्म, फिर तुम नया क्या? लेकिन अगर प्रेम को बड़ा करना है, तब तो बड़ा श्रम सपना देखते हो। नींद जारी रहती है। मौत सपना तोड़ सकती है, होगा, बड़ी साधना होगी। यह आगे के सूत्र साफ करेंगे। | नींद नहीं तोड़ सकती है। इसे फिर से कहूं, मौत सपना तोड़ दूसरा सूत्र
सकती है, क्योंकि मौत का बल इससे ज्यादा नहीं है। मौत नींद 'महावीर ने परिग्रह को परिग्रह नहीं कहा है। उन महर्षि ने नहीं तोड़ सकती। नींद तो सिर्फ ध्यान ही तोड़ सकता है। नींद तो मूर्छा को परिग्रह कहा है।'
सिर्फ जागरूक होने की अथक अभीप्सा तोड़ सकती है। नींद तो महावीर ने यह नहीं कहा कि वस्तओं के होने में परिग्रह है। घर तम तोडना चाहो तो तोड सकते हो. कोई और नहीं तोड़ सकता के होने में परिग्रह नहीं है, न धन के होने में परिग्रह है। न पत्नी के | है। अगर तुम सोना चाहते हो, तो कोई उपाय नहीं है। महावीर होने में परिग्रह है।
कहते हैं, सपना छोड़ने की फिक्र छोड़ो, एक सपना छूट भी __ 'उन महर्षि ने मूर्छा को परिग्रह कहा।'
जाएगा तो क्या फर्क होगा। जहां से सपने आते हैं, वहां से और इन वस्तुओं को अपना मान लेने में। इन वस्तुओं के साथ सपने आ जाएंगे। जकड़ जाने में। इन वस्तुओं के साथ आसक्त हो जाने में। इन मुल्ला नसरुद्दीन ने एक नौकरी के लिए दरख्वास्त दी। पानी वस्तुओं और अपने बीच एक तरह का गहरा संबंध बना लेने में, | के जहाज पर कोई जगह खाली थी। जहाज के कप्तान ने उसका कि उस संबंध को छोडना मश्किल हो जाए। उस मर्छा में इंटरव्य लिया और पछा कि अगर तफान आ जाए और जहाज परिग्रह है।
डगमगाने लगे, तो तुम क्या करोगे? मुल्ला ने कहा, लंगर यह सूत्र बड़ा अनूठा है। धर्म-शास्त्रों में सारे जगत के डालेंगे! कप्तान ने कहा कि और बड़ा तूफान आ जाए, फिर क्या धर्म-शास्त्रों में इसके मुकाबले सूत्र खोजना कठिन है। करोगे? उसने कहा एक लंगर और। कप्तान ने कहा और बड़ा न सो परिग्गहो वुत्तो, नायपुत्तेण ताइणा।
तूफान आ जाए, फिर क्या करोगे? उसने कहा, एक लंगर और। मुच्छा परिग्गहो वृत्तो, इइ वुत्तं महेसिणा।।
कप्तान ने कहा, ठहरो, ये लंगर तुम ला कहां से रहे हो? मुल्ला | कहा है: वस्तुओं को छोड़ने से परिग्रह नहीं ने कहा, ये तूफान आप कहां से ला रहे हैं? वहीं से हम लंगर ला छूटता, मूर्छा छूटने से परिग्रह छूट जाता है। मूर्छा; घर नहीं रहे हैं। तुम लाये जाओ तूफान, हम लाये जाएंगे लंगर। छोड़ना, धन नहीं छोड़ना, पत्नी-बेटे नहीं छोड़ना, मूर्छा छोड़नी अगर कल्पना का ही जाल है, तो ठीक। न तूफान है कहीं, न है। सोया-सोयापन छोड़ना है। तुम ऐसे जी रहे हो जैसे नींद में लंगर दिखायी पड़ता है। एक सपना जहाँ से आ रहा है, अगर हो। सपना नहीं छोड़ना है, नींद छोड़नी है।
उसका मूल स्रोत न तोड़ा गया, तो दूसरा सपना चला आयेगा। इस बात को खयाल में लो।
यह सपना कहां से आया? इस पत्नी को तुमने क्यों कहा मेरी? अगर नींद न छूटी, तो एक सपना छूट जाए, दूसरा शुरू हो इस पति को तुमने क्यों कहा मेरा? इस बेटे को तुमने कैसे माना जाएगा। सपनों की फसलें नींद में उगती ही रहेंगी। तो महावीर मेरा? इस मकान को तुमने कैसे कहा मेरा? इस धन को, इस कहते हैं, सपने छोड़ने से क्या होगा? सपने तो बहुत बार देह को, तुमने कैसे दावा किया कि मेरी? यह सपना जहां से अपने-आप भी छूटे हैं। कितनी बार तुम जन्मे! कितनी पत्नियों आया है, उस स्रोत का तुम्हें पता है? अगर उस स्रोत को न को अपना नहीं कहा! कितने बेटों को अपना नहीं कहा! कितने | तोड़ा, इस देह को छोड़ दो, इस पत्नी को छोड़ दो, इस मकान को मित्र बनाये, कितने शत्रु बनाये! कितने घर बसाये! मौत आयी, छोड़ दो, इस दुकान को छोड़ दो, फिर किसी दूसरी दुकान पर वह सब उजाड़ गयी। तो मौत तो सभी को संन्यस्त कर जाती है, कहेगा-मेरा। घर छोड़ दो, जंगल में चले जाओ, गुफा में बैठ
ख चीखो-चिल्लाओ, मौत तो छीन जाओ, तो गुफा को कहेगा-मेरी। क्या फर्क पड़ेगा? ही लेती है सब, जो तुम छोड़ना नहीं चाहते। छोड़ना ही पड़ता हिमालय में जाकर किसी साधु की गुफा में अड्डा जमाओ, पता है। कितनी बार मौत तुम्हारा सपना नहीं तोड़ गयी! चलेगा! धक्का मार बाहर कर देगा–पता है, यह गुफा मेरी है!
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