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ख की स्वीकृति : महासुख की नींव
हो। जब तुम क्षण को जीते हो, तब परिणाम में नित्यता उपलब्ध | बांधना, अन्यथा टूट जाएंगे, बिखर जाएंगे, अति कोमल हैं, होती है। धीरे-धीरे-धीरे लौ थिर हो जाएगी। समता ऐसी सध | अति सूक्ष्म हैं, नाजुक हैं। इन पर झपट्टा मत मार देना। अन्यथा जाएगी कि तुम्हें पता ही न चलेगा कि समता भी है। जब तक झपट्टे में ही नष्ट हो जाएंगे। इनके लिए तो बड़ी शांत, मौन, पता चले समता का, तब तक जानना अभी विषमता के बीज स्वीकार की भावदशा चाहिए। तुम जब कुछ भी नहीं करते तब मौजूद हैं। जब तक सुख का पता चले, तब तक जानना कि दुख ही यह घटते हैं। जैसे ही तुमने कुछ किया कि गड़बड़ शुरू हुई। अभी संभव है। जब तक शांति का पता चले, तो समझना कि अगर क्षणभर को भी कभी समता का सूत्र बंध जाता है, तो अभी शांति अशांति के विपरीत संघर्ष कर रही है।
भोग लो उसे। बस। पूरी तरह भोग लो। उस क्षण को शाश्वत महावीर से पूछो-तुम अगर उनसे पूछोगे कि क्या आप शांत हो जाने दो। उस क्षण में ऐसे डूबो कि समय ही मिट जाए। उस हैं, तो वह कंधा बिचका देंगे। वे कहेंगे, शांत! बहुत दिन से क्षण में समय की याद न रहे-न बीता, न आगा। न जा चुका अशांत ही नहीं हुए, तो शांति का पता कैसे चले? स्वास्थ्य का | याद रहे, न आनेवाला याद रहे। भूलो सब। खुल गया द्वार प्रभु पता चलता है बीमारी में, बीमारी के कारण। अगर कोई आदमी | का। वहीं कपाट खुलते हैं मंदिर के। सदा ही स्वस्थ रहे, तो उसे स्वास्थ्य का पता चलना बंद हो जाता | धीरे-धीरे तुम पाओगे, जैसे-जैसे साफ होने लगेगी बात, है। पता चलने के लिए विपरीत चाहिए। पता चलता ही विपरीत आंखों का धुंधलका हटेगा, तुम पाओगे द्वार के कपाट सदा ही के कारण है। तो जिस दिन समता पूरी होगी, उस दिन तो समता खुले रहते हैं। तुम्हारे ही विचार के कारण द्वार बंद होता मालूम का पता ही नहीं चलेगा।
| पड़ता है। लेकिन स्थिरता की और थिर होने की मांग मत करो। थिर होना परिणाम है। तुम सिर्फ जीओ। सार बात इतनी कि जब तीसरा प्रश्न : प्रति प्रातः आपको देखने व सुनने आता हूं, समता हो, समता को भोगो; जब लहर आ जाए, ज्योति कंपने परंतु दोनों रस एक-साथ नहीं ले पाता। सुनता हूं तो आंखें बंद लगे, तब कंपने को भोगो। दोनों में कहीं भी तुम्हारा विरोध और हो जाती हैं और देखता हूं तो सुनना कम हो जाता है। कृपया कहीं भी तुम्हारी आसक्ति न हो। समता से आसक्ति मत | बतायें कि दोनों लाभ एक-साथ कैसे ले सकू? बनाओ। यह मत कहो कि अब मिल गयी समता, अब कभी न छोड़ेंगे। यह तो फिर नया बंधन हुआ वासना का। समता प्रेम में अकसर ऐसा होगा। स्वाभाविक है। इसे समस्या मत अपने-आप बढ़ती जाएगी। तुम समता के मालिक मत बनो। बनाओ। दोनों को एक-साथ साधना अभी आसान न होगा। तम उसे तिजोडी में बंद करने की चेष्टा मत करो।
धीरे-धीरे हो जाएगा। कुछ चीजें हैं, जो तिजोड़ी में बंद नहीं की जा सकती हैं। तुमने | अभी तो ऐसा करो, कभी आंख खोलकर देखने का सुख ले बंद की, बंद करते ही मर जाती हैं। सुबह की ताजी हवा को लिया, कभी आंख बंद करके सुनने का सुख ले लिया। अभी तिजोड़ी में बंद कर सकोगे? सुबह सूरज की किरणों को तिजोड़ी दोनों हाथ लड्डू की आकांक्षा मत करो। उसमें दोनों चूक जाएंगे। में बंद कर सकोगे? फूलों को, फूलों की गंध को तिजोड़ी में बंद धीरे-धीरे, जैसे-जैसे रस बढ़ेगा, वैसे-वैसे तुम पाओगे, कर सकोगे? जैसे ही तिजोड़ी बंद की, हवा गंदी होनी शुरू हो | आंख बंद है, तुम सुन भी रहे हो, बंद आंख से देख भी रहे हो। गयी। जैसे ही तिजोड़ी बंद की, सूरज की किरणे बाहर ही छूट | कोई देखने के लिए खुली आंख ही थोड़े ही जरूरी है? अगर गयीं। जैसे ही तिजोड़ी बंद की, फल कम्हलाने लगे, मरने खली आंख से ही देखना संभव होता तो जो भी यहां खली आंख सड़ने लगे। कुछ चीजें हैं जो खुले आकाश की हैं।
करके बैठे हैं वे सभी देख लेते। लेकिन यह सभी के लिए प्रश्न समता, सम्यकत्व, शांति, आनंद, ध्यान, प्रार्थना, प्रेम, तो नहीं है, प्रश्न किसी एक का है। किसी को ऐसा हो रहा है। भूलकर इन्हें तिजोड़ी में बंद मत करना। ये आकाश, खुले कान का खुला होना ही थोड़े ही सुनने के लिए काफी है। आकाश के फूल हैं। इन्हें मुक्त रखना। इन्हें मुट्ठी में भी मत जीसस बार-बार कहते हैं अपने शिष्यों से, आंख हो तो देख
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