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दुख की स्वीकृति ः महासुख की नींव
गये, तो तुम स्वर्ग न पहुंचोगे। स्वयं चलकर ही तुम पहुंचोगे, तो | तक जो मैं पकड़े हुए हूं, उसको पकड़ने के लिए मैंने कोई जीवन ही स्वर्ग संभव है। यह कुछ ऐसी संपदा नहीं कि कोई दे दे। यह दांव पर लगाया है? कोई ध्यान किया है? कोई प्रेम किया है? कोई हस्तांतरण नहीं हो सकती। तो तुमने जो भी मान रखा हो या सिर्फ संस्कृति ने, समाज ने, सभ्यता ने जो दिया है, उसे पकड़े परंपरा से, दूसरों के द्वारा समझा-बुझाकर तुम्हें राजी कर लिया हुए हूं! दूसरों ने दिया है। उनको भी किन्हीं औरों ने दिया था, गया हो, वह सभी अंधानुकरण है। जो तुम चुनो, वही समर्पण उनको भी किन्हीं औरों ने दिया था। सुनी हुई बात है। अपना है। यह तो भेद है दोनों का।
| दर्शन कुछ भी नहीं। ऐसे कचरे को हटाओ। वह अंधविश्वास और एक अर्थ में भेद नहीं भी है। उस दूसरे अर्थ को भी समझ है। दूसरे को अंधविश्वासी कहने मत जाना। लेना जरूरी है। लोग बड़े शब्दों के उपयोग में चालाक हैं। अगर इसमें एक बात और भी खयाल में ले लेने की है। दूसरा तुम करो तो समर्पण है; अगर दूसरा करे तो अंधविश्वास! अगर | जितना समर्पित होगा, उतना तुम्हें अंधा मालूम होगा। क्योंकि तुम आकर मेरे पास संन्यास ले लो, तो तुम कहोगे, समर्पण। प्रेम में एक तरह का अंधापन है। इसलिए तो हम कहते हैं प्रेमी तुम्हारे पास-पड़ोसवाले, तुम्हारे मित्र कहेंगे, गिरा अंधविश्वास को, अंधा! क्योंकि जो प्रेमी नहीं है, वह समझ ही नहीं पाता कि में! इसे तुमने कभी खयाल किया? राम के भक्त कहते हैं, यह आदमी कर क्या रहा है? मजनू से लोग पूछते थे, तू पागल विभीषण परम भक्त है राम का; रावण के मित्रों से भी तो पूछो! है? इस लैला में कुछ भी रखा नहीं! मजनू कहता, मेरी आंख से दगाबाज है! धोखेबाज ! गद्दार! अगर हिंदू मुसलमान हो जाए, देखो। लैला देखनी है तो मेरी आंख से देखो। लैला को और गद्दार! अगर मुसलमान हिंदू हो जाए, तो हिंदू कहते हैं, कोई देखने का ढंग हो भी नहीं सकता। एक ही ढंग है, वह मजनू समझदार! अकल आ गयी। बड़ा बुद्धिमान है।
की आंख है। एक जैन-मुनि थे, गणेशवर्णी। उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी, अगर किसी के प्रेम को देखना है, तो प्रेमी की आंख से देखो। जैनियों में। क्योंकि वे जन्म से हिंदू थे और जैन हुए। तो जैन अगर तुम मीरा को जैन की आंख से देखोगे, तो गड़बड़ हो गयी। कहते, बड़ा प्रतिभाशाली है। ऐसा संत सदियों में होता है। मीरा को देखना है, तो मीरा की आंख से देखो। मीरा के भाव को हिंदुओं से पूछो? गद्दार! धोखेबाज! यह सदा से होता आया समझना है, तो भक्त के भाव से समझो। जो भक्त नहीं हैं, उनसे है। तुम अपने लिए तो अच्छे शब्दों का उपयोग कर लेते हो, | पूछना मत; वे तो कहेंगे कि यह अंधापन है। दूसरे के लिए गलत शब्दों का उपयोग करते हो। जब तुम करोगे, | कहते हैं, अलबर्ट आइंस्टीन की पत्नी ने विवाह के बाद अपनी तो समर्पण। दूसरा करेगा तो अंधविश्वास।
कछ कविताएं अलबर्ट आइंस्टीन को दिखायीं। वह कछ कविता | इसलिए खयाल रखना, जो तुम अपने लिए मौका देते हो, वह | करती थी। अब आइंस्टीन तो गणितज्ञ, भौतिकशास्त्री! तथ्य | दूसरे को भी देना। तुम्हें कोई हक नहीं है किसी दूसरे के बाबत पर उसका जोर! तथ्य और काव्य का क्या मिलना! निर्णय करने का कि वह अंधविश्वासी है, या समर्पित हुआ | जमीन-आसमान का फर्क! उसने पहली ही कविता देखी, वह व्यक्तित्व है। तुम इसकी चिंता छोड़ो। तुम कर भी नहीं सकते सिर हिलाने लगा। उसकी पत्नी ने पूछा कि क्या मामला है ? निर्णय। तुम दूसरे के हृदय में उतरोगे कैसे? जानोगे कैसे? तुम उसने कहा, यह हो ही नहीं सकता, यह कभी हो ही नहीं सकता, तो अपनी ही सोच लो। इतना ही देखो अपने भीतर कि अब तक बिलकुल गलत है। बात क्या है? तुम अंधविश्वास से जी रहे हो, या समर्पण से जी रहे हो। बस, कविता में पत्नी ने लिखा है—प्रेम की कविता है, प्रेमी के लिए वहीं निर्णय कर लो, दूसरों की फिकिर छोड़ दो। अन्यथा तुम्हारे लिखी है कि मेरे प्रेमी का जो चेहरा है वह चांद-जैसा सुंदर सभी निर्णय गलत होंगे। जीसस ने कहा है, निर्णय करो ही मत; है। आइंस्टीन ने कहा, हो ही नहीं सकता! चांद-जैसा! हो ही दूसरे के संबंध में न्यायाधीश बनो ही मत।।
नहीं सकता। क्योंकि चांद बहुत बड़ा है। कहां आदमी का सिर, तो जिन मित्र ने पूछा है, अगर अपने लिए पूछते हों, तो ठीक। | और कहां चांद! फिर चांद सुंदर भी नहीं है। बड़े खाई-खड्ड हैं। दूसरों की चिंता छोड़ दें। अपने भीतर ही देख लेना है कि अब इससे कोई तुलना बैठती ही नहीं।
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