________________
228
जिन सूत्र भाग: 2
दुकान चलाते, तो उनकी कुछ बातें याद रह गयीं। एक बात वह ग्राहकों से कहा करते थे कि तरबूजा चाहे छुरी पर गिरे, चाहे छुरी तरबूजे पर गिरे, हर हालत में तरबूजा कटेगा। वे ठीक कहते थे । क्या फर्क पड़ता है! छुरी को नीचे रखकर ऊपर से तरबूजा पटको, कि तरबूजे को नीचे रखकर ऊपर से छुरी पटको, हर हालत में तरबूजा कटेगा । छुरी कैसे कट सकती है ? छुरी काटती है।
जैसी तुम्हारी मर्जी हो। लेकिन कटोगे तुम ही । तुम्हें अगर आड़ से कटने में सुख आता है, चलो यही सही। मुझे उसमें कुछ अड़चन नहीं है। क्योंकि महावीर ने वही कहा है, जो मैं कह रहा हूं। बुद्ध ने वही कहा है, जो मैं कह रहा हूं। सिर्फ सदियों का फर्क है, भाषा का फर्क है। अन्यथा कहने का उपाय नहीं । क्योंकि जैसे ही तुम शांत हुए, डूबे अपने में, उस जगह पहुंचे जो शाश्वत है, सनातन है।
तीसरा प्रश्न : जैन- कुटुंब में जन्म हुआ। तीन वर्षों से आपको पढ़ता हूं। संन्यास भी लिया है। फिर भी पारे की तरह बिखरा जा रहा हूं। जिन-सूत्र पर प्रवचन अच्छा लगता है । पर भोग में रस बहुत है । फिर परंपरा और संस्कार पांव पर बेड़ी की तरह पड़े हैं । बहुचित्त और विक्षिप्त होता जा रहा हूं, टूटता जा रहा हूं; कृपया मार्ग दर्शन दें।
क्यों टूट रहे हो, इसे थोड़ा ठीक से समझ लो, वहीं से मार्ग मिल जाएगा। टूटने के कारण प्रश्न में ही साफ हैं
'जैन- कुटुंब में जन्म हुआ।' किसी न किसी कुटुंब में जन्म तो होगा ही । और जब जन्म होगा किसी कुटुंब में, तो उस कुटुंब का सदियों पुराना ढांचा, संस्कार, आदतें, धारणाएं, विश्वास तुम पर थोपे जाएंगे। अब तक कोई मां-बाप इतने जागरूक नहीं हैं कि बच्चे को स्वतंत्र छोड़ें, कि उसे कहें कि तू बड़ा हो, होशपूर्ण हो, अपना चुनाव करना। जो धर्म तुझे प्रीतिकर लगे, वह चुन लेना। अगर मस्जिद में तुझे रस आये, मस्जिद जाना। गुरुद्वारा प्रीतिकर लगे, गुरुद्वारा जाना। मंदिर में तुझे ध्यान लगे, मंदिर चले जाना। अगर नास्तिकता से ही तुझे सत्य की अनुभूति होती हो, तो वही सही है। लेकिन तू चुनना। हम कुछ तेरे ऊपर थोपेंगे नहीं। अभी ऐसे मां-बाप पृथ्वी पर नहीं हैं। अभी पृथ्वी पर जागे
Jain Education International 2010_03
हुए लोग इतने कम हैं कि मां-बाप ऐसे हों भी कैसे!
तो हर मां-बाप अपने बच्चे पर वही थोप देता है, जो उस पर थोपा गया था उसके मां-बाप के द्वारा । ऐसे सदियों का कचरा मस्तिष्क पर हावी हो जाता है। वही बिखराव का कारण है। उसके कारण तुम कभी स्वतंत्र नहीं हो पाते। उसके कारण तुम सदा बंधे बंधे हो - जंजीरों में बंधे हो। तड़फते हो उस पार जाने को, लेकिन नाव जंजीरों से इसी किनारे से बंधी है। और जंजीरें बड़ी बहुमूल्य मालूम होती हैं। क्योंकि बचपन से ही तुमने उन्हें जाना। तुम समझते हो कि शायद जंजीरें नाव का अनिवार्य हिस्सा हैं। या तुम शायद सोचते हो कि जंजीरें नाव का आभूषण हैं, सजावट हैं, शृंगार हैं। या कि तुम सोचते हो कि जंजीरों को अगर तोड़ दिया, तो कहीं ऐसा न हो कि दूसरा किनारा तो मिले ही न, और यह किनारा छूट जाए ! तो बंधे हो, तड़फते हो, पताकाएं खोलते हो, पाल खोलते हो, पतवारें चलाते हो, और जंजीरें खोलते नहीं! जंजीरें तोड़ते नहीं । नाव वहीं की वहीं तड़फ तड़फकर रह जाती है। इसी से घबड़ाहट पैदा होती है। जैन - कुटुंब में पैदा हुए हो तो पहला तो काम है- जैन धारणाओं से मुक्त हो जाना। नहीं कि वे गलत हैं। बल्कि दूसरे के द्वारा दी गयी हैं, यही अड़चन है। जिस दिन तुम जागोगे, जिस दिन तुम पाओगे, उन्हें ठीक ही पाओगे। लेकिन अभी उधार हैं। अभी स्व-अर्जित नहीं हैं। और सत्य उधार नहीं मिलता। अगर हिंदू-घर में पैदा हुए हो, तो पहला कृत्य हिंदू-संस्कार से मुक्त हो जाना है। अगर मुसलमान घर में पैदा हुए हो, तो पहला काम स्वतंत्रता का – इस्लाम से छुटकारा ले लेना । खाली करो अतीत से अपने को। अपनी खोज पर निकलो। हिम्मत करो। साहस करो । दुस्साहस चाहिए। कायर की तरह किनारों से मत बंधे रहो।
'जैन - कुटुंब में जन्म हुआ।' वहीं पागलपन के बीज हैं। किसी कुटुंब में तो होगा ही । जैन में हो, सिक्ख में हो, मुसलमान में हो, हिंदू में हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जहां भी जन्म होगा, वहीं तुम पर संस्कार थोप दिये जाएंगे। पहला कृत्य धार्मिक खोजी का उन संस्कारों के जालों को काटकर अपने को मुक्त कर लेना है। जैसे मां के पेट में बच्चा पैदा होता है, तो जुड़ा होता है मां से। जैसे ही गर्भ के बाहर आता है, डाक्टर का पहला काम है उस जोड़ को तोड़ देना। अगर नाभि बच्चे की मां से जुड़ी
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org