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करना है संसार, होना है धर्म
आगे के लिए सोच रहे हो। यह तो दृष्टि की बड़ी गहरी भ्रांति है। हो। तब तुम चाहते हो कोई तुम्हें लूटे। तब तुम लुटने को तरसते इससे जो सामने होता है, वह तो दिखता ही नहीं और जो नहीं हो। तब तुम चाहते हो कोई आये और साझीदार हो जाए। इतना होता है, उसका हम विचार करते रहते हैं।
| तुम्हें मिल रहा है कि अकेले तुम क्या करोगे? तुम उसे किसी को पूछा है, सुख-प्राप्ति, महासुख-प्राप्ति की एक झलक मिल | बांटना चाहते हो। आनंदित क्षण में आदमी फैलता है-पात्र जाए तो आगे क्या होता है? स्वभावतः एक झलक के बाद बड़ा होता है। दुख के क्षण में सिकुड़ता है। दूसरी झलक! बड़ी झलक!! मगर तुम कृपा करो, उसका तो अगर यह क्षण तुमने आनंद में न जीया, तो अगले क्षण तुम विचार मत करो, अन्यथा यही झलक चूक जाएगी। तुम महा और भी सिकुड़ जाओगे। आनंद का अभ्यास जारी रखो। झलक का हिसाब करते रहोगे, तुम महा झलक का सपना देखते आनंद को भोगते रहो, ताकि तुम और आनंद को पाने के योग्य रहोगे, और यहां बही जाती जिंदगी, हाथ से निकला जाता | होते रहो। आनंद को जितना भोगोगे, उतना ही तुम पाओगे और समय। यह झलक चूकी, तो आगे की झलक भी उपलब्ध | ज्यादा आनंद पास आने लगा। होनेवाली नहीं। इस झलक को पी लो, आत्मसात कर लो, पचा | नृत्यकार नाचता रहता है, तो और बड़े नृत्य की संभावना जाओ। फिर और बड़ी झलक होगी।
जनमती रहती है। गीतकार गुनगुनाता रहता है, तो और गीत पैदा तुम जितने योग्य होते जाते हो, उतना ही परमात्मा तुम्हें देता | होते रहते हैं। जीवन तो जीने से बढ़ता है। बैठे-बैठे खोपड़ी में चला जाता है। तुम्हारी योग्यता से ज्यादा तुम्हें कभी नहीं दिया मत खोये रहो। आओ, फैलो। बड़ा जीवन है। बड़ा अवसर जा सकता। तुम्हारी योग्यता से ज्यादा दे दिया जाए, तो तुम झेल | है। यहां एक-एक क्षण को बहुमूल्य बनाया जा सकता है। न सकोगे। तुम्हारे पात्र से ज्यादा सागर तुममें कैसे ढाला जा | एक-एक क्षण हीरा हो सकता है। सकता है! तुम्हारे पात्र की सीमा ही तुम्हारी प्राप्ति की सीमा | लेकिन अधिक लोग सोये हैं। भविष्य की योजना कर रहे हैं। रहेगी। चाहे वर्षा कितनी ही हो, तुम्हारा कटोरा जितना है, उससे | सोच रहे हैं, कल क्या होगा? कल को भूलो, आज काफी है। ज्यादा उसमें कभी न भर सकेगा। कटोरे को बड़ा होने दो। और | आज पर्याप्त है। इतना मैं तुमसे जरूर कहता हूं, यह आश्वासन उसके बड़े होने का एक ही ढंग है, इस क्षण को ऐसे गहन-भाव | देता हूं कि अगर तुमने कल को भूला तो कल आयेगा, आज से से जीओ, इस क्षण को ऐसे प्रीति-भाव से जीओ, इस क्षण को | भी सुंदर फूल लायेगा। आज से भी सुंदर गीत लायेगा। क्योंकि ऐसे नाचते-उत्सव से जीओ कि उस उत्सव में तुम फैल जाओ, | आज तुम्हारे हृदय का पात्र बड़ा हो, तो इसी पात्र में तो कल की तुम्हारा पात्र बड़ा हो जाए।
| वर्षा भरेगी। खयाल किया तुमने, दुख में आदमी सिकुड़ता है। सुख में | 'सभी प्रश्न गिर गये। उत्तर की भूख नहीं, प्यास नहीं, चाह आदमी फैलता है। दुख में आदमी छोटा हो जाता है। आनंद में | नहीं। तो फिर आगे क्या करें?' करने की भी कोई जरूरत है? आदमी फूल जाता है। तुमने खयाल किया, जब तुम दुखी होते, होना काफी नहीं! यह करने का पागलपन क्यों है? । तो तुम चाहते हो न कोई मिले, न कोई बात करे, तुम | इन दो शब्दों को ठीक से समझ लो—करना और होना। द्वार-दरवाजे बंद करके बिस्तर में पड़ जाना चाहते हो। जब तुम क्या करें? क्या होना काफी नहीं है! कमरे में तुम बैठे हो, बहुत दुखी होते हो, तो तुम सोचते हो, अब तो मर ही जाएं। मर | उसी अखबार को फिर पढ़ने लगते हो जिसको सुबह से तीन दफे ही जाएं का मतलब, अब तो कब्र में छिप जाएं।
पढ़ चुके। क्योंकि करें क्या? रेडियो खोल लेते हो, वही खबरें लेकिन जब तुम आनंदित होते हो, तो तुम द्वार-दरवाजे | जो अखबार में पढ़ चुके रेडियो से सुनने लगते हो। करें क्या? खोलकर बाहर आते हो सूरज की किरणों में, हवाओं के संसार | कुछ न कुछ करने में तुम अपने को व्यस्त रखते हो। क्या थोड़ी में। जब तुम आनंदित होते हो, तो तुम किसी मित्र के पास जाते देर के लिए होना' उचित नहीं है? कुछ न करो। अखबार को | हो. किसी प्रियजन के पास बैठते हो, कोई गीत गुनगुनाते हो, | हटा दो, रेडियो बंद कर दो, शांत बैठ जाओ, कुछ देर को बस हो | कोई वीणा बजाते हो। जब तुम आनंदित होते हो, तो तुम बंटते रहो। यही तो ध्यान है।
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