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ज का पहला सूत्र – 'अहिंसा सब आश्रमों का हृदय, सब शास्त्रों का रहस्य और सब व्रतों और गुणों का पिंडभूत सार है।'
सव्वेसिमासमाणं, हिदयं गब्भो व सव्वसत्थाणं । सव्वेसिं वदगुणाणं, पिंडो सारो अहिंसा हु।। महावीर की सारी देशना इस सूत्र में संचित है। अहिंसा का अर्थ समझ लें तो सारा जिन- शास्त्र समझ में आ गया। मनुष्य ऊर्जा है, शुद्ध शक्ति है। इस शक्ति के दो आयाम हो सकते हैं। या तो शक्ति विध्वंसक हो जाए - मिटाने लगे, तोड़ने लगे। या शक्ति सृजनात्मक हो जाए – बनाये, बसाये, निर्माण करे। शक्ति तो हमारे पास है। कैसा हम उपयोग करेंगे शक्ति का, हमारे बोध पर, हमारे ध्यान पर, हमारी समझ पर निर्भर है। हाथ
तलवार दे दी है प्रकृति ने। हम मारेंगे या बचायेंगे हम पर | निर्भर है। हाथ में रोशनी दे दी है प्रकृति ने। हम अंधेरे को तोड़ेंगे या घरों को जलायेंगे हम पर निर्भर है।
शक्ति सृजनात्मक हो जाए, तो अमृत हो जाती है। शक्ति विध्वंसात्मक हो जाए तो जहर हो जाती है । भाषाकोश में तो लिखा है कि जहर और अमृत अलग-अलग चीजें हैं। जीवन के | कोश का ऐसा सत्य नहीं । जीवन के कोश में तो लिखा है कि अमृत का ही विकृत रूप जहर है। और जहर का ही सुकृत रूप अमृत है।
हिंदुओं की पुरानी कथा सागर मंथन की। उसमें एक ही मंथन से जहर भी निकला, उसी मंथन से अमृत भी निकला। एक ही स्रोत से जहर भी आया, उसी स्रोत से अमृत भी आया
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स्रोत एक है।
अमृत की कहीं और खोज मत करना। जो तुम्हारे जीवन में आज जहर की तरह है, वहीं से अमृत भी निकलेगा, थोड़ा मंथन चाहिए। ऐसा समझो कि अमृत जहर का ही नवनीत है।
एडोल्फ हिटलर के जीवन में ऐसा उल्लेख है कि वह चित्रकार होना चाहता था। कुछ बनाना चाहता था सुंदर, लेकिन चित्रशाला में उसे प्रवेश न मिला। वह असफल हो गया प्रवेश की परीक्षा में । और उसी दिन से उसके जीवन में जो अमृत हो सकता था वह जहर होने लगा। बनाने की आकांक्षा मिटाने की आकांक्षा में बदल गयी। एडोल्फ हिटलर ने बड़ा विध्वंस किया। अगर महावीर को अहिंसा का शास्त्र पता है, तो एडोल्फ हिटलर को हिंसा का शास्त्र पता है। इससे ज्यादा वीभत्स और विकराल दृश्य किसी मनुष्य ने कभी उपस्थित न किया था। मगर होना चाहता था चित्रकार ।
और भी विचारणीय बात है कि इतने विध्वंस, हिंसा और विनाश के बीच भी उसकी मूल आकांक्षा समाप्त नहीं हो गयी। जब उसे फुर्सत मिलती तो वह कागज पर छोटे-मोटे चित्र बनाता। जीवन के अंतिम क्षण तक कहीं कोई ऊर्जा सृजनात्मक होने की खोज करती रही। जो गीत गाना चाहता था, उससे गालियां निकलीं।
ध्यान रखना, वे ही शब्द, वही ध्वनि गाली बन जाती है; वे ही शब्द, वही ध्वनियां गीत बन जाती हैं। मनुष्य सृजनात्मक ऊर्जा है । अगर सृजन न हो पाये, तो जीवन में विस्फोट होता है का, हिंसा का, विद्वेष का ।
घृणा
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