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करना हे संसार होना है धर्म
बिना रोये पाषाण की मूर्ति को देखा, तो पाषाण की मूर्ति ही इसी तरह के धोखेबाज, आत्म-प्रवंचक हैं। एक ही बदलाहट रहेगी। तब तुमने तर्क से देखा, बुद्धि से देखा, विचार से देखा। संभव है और वह तुम्हारी बदलाहट है। और तुम्हारे अतिरिक्त रो कर देखा, आंख को गीली करके देखा, तब तुमने हृदय से वहां कोई भी मालिक नहीं है। तुम्ही मालिक हो। इसी को देखा; आर्द्रता से देखा, भावना से देखा। उस आंसू-भरी आंख महावीर कहते हैं व्यक्ति की परम स्वतंत्रता और परम दायित्व। को पत्थर भी पत्थर नहीं मालूम होता। उसमें प्राणों की प्रतिष्ठा शुभ हैं, तुम्हारे आंसू। संभालना। आंखों ने गीला होना जाना हो जाती है।
है, अब सूखे मरुस्थल मत बनाना आंखों में। अब मरूद्यान उठा आंसू से रहित आंख पथरीली है। आंसू से रहित आंख पाषाण है, जगा है, तो संभालना। है। पाषाण से पाषाण ही दिख सकता है। आंख में जब आंस चांद निकला तो अंधेरा भी मस्कराने लगा होते हैं, तभी आंख जीवंत होती है। जब गीली होती है, तभी हंसा जो फूल तो कांटों पे नशा छाने लगा रसभरी होती है। जब गीली होती है, तभी आंख में काव्य होता वह प्यार का ही था जादू तो यह मिट्टी का सितार है, कविता होती है। जब गीली होती है, तभी आंख के तारों पर न कोई शब्द हुआ और गुनगुनाने लगा कोई संगीत छिड़ता है। उस गीली आंख से संसार को देखो, अगर आंसू उतरे हैं-कांटों पे नशा छाने लगा। अगर इस संसार न दिखायी पड़ेगा। पाषाण भगवान बनता है। संसार | नशे में तुम्हें आनंद आ रहा हो, रस निमग्नता आ रही हो, तुम भगवान बनता है। तुम्हारी आंख की ही बात है। सारी बात | डूब रहे हो, तो इस रस को बचाना, और चाहे कुछ भी छोड़ना आंख की है। आंसू-भरी आंख, आत्मा-भरी आंख है। लेकिन पड़े। क्योंकि अंततः यही रस तुम्हें परमात्मा से जोड़ेगा। इस रस ये आंस आनंद के हों, अहोभाव के हों। ये शिकायत में न गिरें, | के बिना और कोई सेतु नहीं है मनुष्य और परमात्मा के बीच। धन्यवाद के हों; आभार के हों। उसकी अनुकंपा के लिए, गहन यही रस, यही आंसू सेतु बनेंगे। यही आंसू धागा बनेंगे। तुम्हारी कृतज्ञता के हों।
सुई धागा पिरोयी हो जाएगी। हृदयपूर्वक रोना। सब और बात तम्हारे ही हाथ में है। इसे जितनी बार दहराया जाए लोक-लाज छोडकर रोना। सब भय, शंकाएं छोडकर रोना। उतना ही कम है। इस संबंध में अतिशयोक्ति नहीं हो सकती। जब रोओ तो बस आंख ही हो जाना। और आंख से आंसू ही इस संबंध में पुनरुक्ति नहीं हो सकती, कि तुम अपने मालिक नहीं बहें, तुम्हीं बहना। हो। तुम जैसे हो अभी, ऐसा होना तुमने चुना है। फिर दुखी होना चांद निकला तो अंधेरा भी मुस्कुराने लगा व्यर्थ है। तुमने दुख को ही चुना है। तुमने गलत को ही चुना है। और एक बार तुम्हारे भीतर चांद निकल आए, एक बार तुम्हारे -अगर तुम्हारी संवेदना मर गयी है, अगर तुम्हारी भावना मर गयी भीतर अहोभाव की पहली झलक, प्रतीति आ जाए। है, अगर तुम्हारी खोपड़ी में सिर्फ कुछ क्षुद्र विचार ही रह गये हैं। चांद निकला तो अंधेरा भी मुस्कराने लगा और जीवन कहीं भी किसी और तरंग से आंदोलित नहीं होता है, तब तुम पाओगे कि दुख भी सुख में रूपांतरित हो जाता है, तो ऐसा होना ही तुमने चुना है। किसी को दोष मत देना। अंधेरा प्रकाश बन जाता है। मृत्यु जीवन बन जाती है। शत्रु मित्र
मेरे पास अगर तुम आ गये हो, तो इतनी-सी बात भी सीख लो हो जाते हैं। तो बहुत है कि जैसे तुम हो, यह तुम्हारा निर्णय है। अन्यथा होना हंसा जो फूल तो कांटों पे नशा छाने लगा है, बस तुम्हारे निर्णय को ही बदलने की बात है। कुछ और नहीं और एक बार तुम्हारे भीतर का फूल हंसने लगे, तो तुम्हारे बदलना। यह मत सोचना कि सारी दुनिया को बदलेंगे। जो भीतर के कांटों तक पर नशा छाने लगेगा। लोग दुनिया को बदलने निकलते हैं, वे वे ही लोग हैं जो स्वयं को यह बड़ी गहरी कीमिया की बात है। जो व्यक्ति आंसुओं से बदलने से बचना चाहते हैं। चालबाजी है। खद बदलने में भर जाता है-आह्लाद के, आनंद के, उसके भीतर जो घबड़ाते हैं। खुद को बदलने में कठिनाई मालूम होती है, तो कल्प-कांटे थे, वे भी नरम होने लगते हैं। उसका क्रोध नरम हो दुनिया को बदलने के सपने देखते हैं। राजनेता हैं, समाजनेता हैं, जाएगा। रोनेवाला आदमी क्रोध करने में धीरे-धीरे असमर्थ हो
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