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जिन सूत्र भागः 2
MEROLA
लेकिन यह याद बड़ी मूल्यवान नहीं है। अगर तुम फिर ठीक सकता, जैन नहीं हो सकता। धार्मिक होना काफी है। काफी से हो गये, तो फिर तुम उसी अकड़ से चलने लगोगे।
ज्यादा है। यह विशेषण बिलकुल व्यर्थ है। बुद्धि से आदमी नास्तिक हो, तो किसी मतलब का नहीं। 'अतः हे भव्य '....अंतिम सूत्र... 'तू इस ज्ञान में सदा लीन बुद्धि से अगर आस्तिक हो, तो किसी मतलब का नहीं। क्योंकि रह, इसी में सदा संतुष्ट रह, इसी में तृप्त हो, इसी से तुझे उत्तम बुद्धि तो सिर्फ यंत्र है, तुम्हारी आत्मा नहीं। जब तक आत्मा न सुख प्राप्त होगा।' डूब जाए, तन्मय न हो जाए; जब तक आत्मा का पोर-पोर न | ‘एदम्हि रदो णिच्चं। हे भव्य, तू इस ज्ञान में डूब।' भीग जाए, तब तक कछ सार नहीं। बद्धि में सिद्धांतों का होना 'संतट्ठो होहि णिच्चमेदम्हि। इसी में संतुष्ट हो।' ऐसे ही है, जैसे किसी को भूख लगी हो, वह पाकशास्त्र पढ़ रहा | ‘एदेण होहि तित्तो। इसी में तृप्त हो।' है। खूब सुंदर भोजन, स्वादिष्ट भोजनों का वर्णन है। कैसे | 'होहिदि तुह उत्तम सोक्खं। और उत्तम सुख तुझे निश्चित बनाना. यह भी लिखा है। एक से एक व्यंजन, सब ब्यौरे से मिलेगा। त उत्तम सख हो जाएगा।' लिखे हैं। भूख लगी आदमी को, वह पाकशास्त्र पढ़ रहा है। तू महासुख स्वयं हो जाएगा। इससे क्या भूख मिटेगी? इससे शायद भूख थोड़ी बढ़ जाए, यह जिसे हम संसार समझ रहे हैं और जहां हम सुख खोज रहे हैं, हो सकता है, लेकिन मिट तो नहीं सकती। और जिसने वहां मिलता किसी को कभी सुख? वहां सिर्फ आभास है, पाकशास्त्र को ही भोजन समझ लिया, उस अभागे आदमी को मगमरीचिका है, खिलौने हैं। वही व्यक्ति प्रौढ़ है, जिसे यह हम क्या कहें, वह पागल है। वेद तो पाकशास्त्र है। दिखायी पड़ गया कि संसार में सिर्फ खिलौने हैं। छोटा बच्चा
॥ के रसायन में पगना होगा, रंगना होगा। भोजन खेल रहा है। गड़ा-गड़ी का विवाह रचाता है। और उसी तरह पकाना होगा अपनी ही आत्मा में। उस गहनतम प्रयोगशाला में उत्तेजित होता है जैसे कि तुम असली विवाह में उत्तेजित होते हो। उतरना होगा। महावीर कहते हैं, तुमने अगर स्वयं को जाना, तो उसको तो तुम कहते हो बच्चा है, खिलवाड़ में लगा है। लेकिन तुम गवाही हो जाओगे सभी शास्त्रों के। तुम कह सकोगे कि हां, | तुम जो विवाह रचाते हो, वह खिलवाड़ से कहीं ज्यादा है? वह वे सभी ठीक हैं। और यह भी खयाल रख लेना, जिस व्यक्ति ने भी खिलवाड़ है। थोड़े बड़े पैमाने पर है। छोटे बच्चे बारात स्वयं को जाना, वह कहेगा सभी ठीक हैं। वह यह न कहेगा, निकालते हैं अपने गुड्डे की, तुम राम की बारात निकालते हो। करान ठीक है, बाइबिल गलत है। वह यह न कहेगा, वेद सही हैं | रामलीला करते हो। उसमें सम्मिलित होते हो। लेकिन सब खेल और बुद्ध गलत हैं। उसको तो दिखायी पड़ गया अनुभव। अब है। खेल से कब जागोगे? शब्दों के भेद होंगे, रूप-रेखा अलग होगी, रंग-ढंग अलग मताए-सोजो-साजे-जिंदगी पैमाना-ओ-बरबत होंगे, लेकिन भीतर का प्राण तो उसे समझ में आ गया। उसे मैं खुद को इन खिलौनों से भी अब बहला नहीं सकता मूलसूत्र तो पकड़ में आ गया। अब सभी ठीक हैं। इसलिए | कब वह वक्त आएगा, जब तुम कहोगे—जीवन के महावीर ने एक सिद्धांत को जन्म दिया, जिसको अनेकांतवाद सुख-दुख, शराब और संगीत...। कहते हैं।
मताए-सोजो-साजे-जिंदगी पैमाना-ओ-बरबत अनेकांतवाद का अर्थ होता है, सभी दृष्टियां ठीक हैं। कोई मैं खुद को इन खिलौनों से भी अब बहला नहीं सकता दृष्टि गलत नहीं। महावीर ने दर्शन का बड़ा अनूठा अर्थ किया कब वह वक्त आएगा जब तुम कहोगे कि अब इन खिलौनों से है। दर्शन का अर्थ है, ऐसी दृष्टि जहां सभी दृष्टियां ठीक हैं। | भी बहलाने का वक्त जा चुका। अब मैं इन खिलौनों से भी दर्शन का अर्थ है, सभी दृष्टियों को ठीक मानकर सभी दृष्टियों अपने को बहला नहीं सकता। उसी दिन तुम प्रौढ़ बनोगे। उसी के ऊपर उठ जाना। कोई दृष्टि में बंधा न रह जाए व्यक्ति। तो | दिन तुम्हारे भीतर बोध का जन्म हुआ। उसी दिन वस्तुतः तुम धर्म का अर्थ तो हुआ, जब व्यक्ति किसी धर्म में बंधा न रह जन्मे। उसके पहले तक तो एक सपना था। जाए। धार्मिक व्यक्ति हिंदू नहीं हो सकता, मुसलमान नहीं हो रुखसत ऐ हमसफरो! सहरे-निगार आ ही गया
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