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हला प्रश्नः यहां आते ही बुद्धि हृदय में और शब्द मौन में रूपांतरित हो गये। आपको सुनते समय मेरा हृदय कभी-कभी आंसू बनकर बहने लगता है। संदेह है कि यहां से घर लौटने पर भी यह अवस्था बनी रहेगी अथवा नहीं। कृपापूर्वक समझाएं कि किस तरह यह अवस्था स्थिर हो ?
पहली बात, आंसुओं से ज्यादा पवित्र मनुष्य के पास और कुछ भी नहीं है। आंसुओं से बड़ी कोई प्रार्थना नहीं है। आंसुओं का केवल एक रूप ही लोगों ने जाना है। वह रूप है— दुख - रूप आंसुओं का एक और रूप है - आंनद रूप। उसे बहुत कम लोग जान पाये। बहुत कम लोग जान पाते हैं।
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तुम
• किसी को तुम रोते देखते हो, तो सोचते हो दुखी होगा। किसी को रोते देखते हो, तो सोचते हो कुछ पीड़ा होगी। कुछ चुभन होगी, जलन होगी । जरूरी नहीं। आंसू तो तभी बहते हैं जब कोई भी भावदशा इतनी ज्यादा हो जाती है कि तुम संभाल नहीं पाते। कोई भी भावदशा । दुख बहुत हो जाए तो आंसुओं से बहता है। सुख बहुत हो जाए तो भी आंसुओं से बहता है। पीड़ा बहुत हो, तो आंसुओं से बहकर हल्का हो जाता है मन आनंद बहुत हो, तो आंसुओं से बह जाता है।
तो पहली तो बात, आंसुओं के साथ दुख का अनिवार्य संबंध मत जोड़ना । गहरे में हमारे मन में यह बात बनी ही है कि आंसू दुख के कारण आते हैं। तो हम आंसुओं को छिपाते भी हैं। आंसू आते हों तो रोकते भी हैं। आंसू आ न जाएं, इसका हम
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बहुत उपाय करते हैं । इस उपाय को छोड़ो। यही उपाय घर जाकर रोकने का कारण बन जाएगा।
यहां मेरे पास हो, यहां एक और तरह की हवा है। यहां सब स्वीकार है। यहां तुम रोओगे, तो कोई तुम्हें दुखी न मानेगा। तुम रोओगे, तो शायद दूसरे तुम से ईर्ष्या करें। सोचें कि तुम धन्यभागी हो कि रो पाते हो, पीड़ित हों अपने मन में कि हम नहीं रो पाते। तुम्हारे आंसू यहां संपदा की तरह स्वीकार किये जाएंगे। घर लौटकर नहीं। दूसरी ही हवा होगी। दूसरा संयोग होगा आंसुओं के साथ ।
तो अगर चाहते हो कि यह परम आंसू सदा बहते रहें, तो भीतर कुछ स्मरण करने का है। और वह स्मरण यह है कि आंसुओं का दुख से कुछ लेना-देना नहीं है। अन्यथा तुम खुद ही रोक लोगे, कोई और नहीं रोकेगा। कौन रोकता है! कोई किसी को रोक नहीं सकता ! लेकिन तुम्हीं रोक लोगे। तुम्हीं सकुचा जाओगे। तुम्हीं सोचोगे, कोई क्या कहेगा ! घर में बच्चे होंगे तुम्हारे, पत्नी होगी, पिता-मां होंगे, क्या कहेंगे ! दुकान पर बैठे रोने लगोगे, ग्राहक क्या कहेंगे! दफ्तर में बैठे रोने लगोगे, दफ्तर के लोग क्या कहेंगे ! रास्ते पर रोने लगोगे, राह चलते लोग क्या कहेंगे !
तो हम
आंसुओं के साथ दुख जुड़ा है। क्योंकि हमने एक ही तरह के आंसू अब तक जाने हैं, वे दुख के आंसू हैं। कोई मरा, रोये । कोई जीवन में विषाद आया, तो हम रोये । हम कभी आनंद से रोये नहीं। हम कभी उत्फुल्लता से रोये नहीं। हमारे आंसू कभी नृत्य नहीं बने। इसलिए एक गलत संयोग आंसुओं से जुड़ गया है। अब तो ऐसे भी लोग हैं पृथ्वी पर, जो दुख में भी
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