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जिन सत्र भागः2
न रोयेंगे-दुख में रोनेवाले लोग भी विदा हो रहे हैं। आनंद में ही है तो आनंद में रोना। और जो आदमी आनंद में रोना सीख रोनेवाले लोग तो बहुत समय पहले विदा हो गये। अब तो दुख लेता है, उसके जीवन में दुख के आंसू विदा हो जाते हैं। तुमने में रोनेवाले लोग भी विदा हो रहे हैं। अब तो उस आदमी को हम आंसुओं को राह दे दी। अब दुख में रोने की कोई जरूरत ही न कहते हैं बलशाली, जो दुख में भी रोता नहीं।
रही। अब तो आंसू उस ऊंचाई पर उड़ने लगे, अब जमीन पर पत्नी मर गयी है और वह नहीं रोता। हम कहते हैं, यह है सरकने की कोई जरूरत न रही। जिसको पंख लग गये, वह विवेकशील। हम कहते हैं, यह है संयमी। नियंत्रण इसे कहते जमीन पर थोड़े ही घसिटता है। दूसरे हैं कि तुम्हारी जमीन पर हैं! यह है आदमी बुद्धिमान। अब तो हम कहते हैं कि जो रोये, घसीटने की क्षमता भी छीन लेना चाहते हैं। मैं हूं कि तुम्हें वह नामर्द! अब तो हम रोनेवाले को कहते हैं, क्या स्त्रियों की आकाश में उड़ने की क्षमता देना चाहता हूं। तरह रो रहे हो! मर्द बनो! हिम्मत जुटाओ! रोने से क्या होगा! तुम आनंद में रोओ। आंसुओं से आनंद को जोड़ो। यह तो ऐसा तो होता ही है। आदमी मरता ही है। रोओ मत, आंसू मत कीमिया है जीवन की। तब दुख भी आनंदरूप हो जाएगा। तब गमाओ। अब तो लोग दुख में भी रोना बंद कर रहे हैं। पीड़ा भी प्रेमरूप हो जाएगी। तब उदासी में भी तुम पाओगे,
जिस दिन लोग दख में भी रोना बंद कर देंगे, उस दिन आदमी उसका ही सरगम बजता है। विषाद में भी उसी की गुनगुनाहट पाषाण हो जाएगा। पत्थर हो जाएगा। उस दिन आदमी के भीतर तुम्हारे हृदय में गूंजेगी। मृत्यु के क्षण में भी तुम पाओगे, जीवन फिर कोई भी रोमांच न उठेगा। फिर आदमी के भीतर कोई लहर शाश्वत है। मृत्यु के क्षण में भी तुम जीवन के आह्लाद से ही न आयेगी। फिर कोई गीत न जन्मेगा। फिर आदमी बिलकुल नाचोगे। लेकिन एक बार आंसुओं को आनंद की कला सीख पत्थर होगा। ऐसे बहुत लोग हैं जो पत्थर हो गये हैं। वे दुख में लेने दो। एक बार आंसुओं को आनंद से जुड़ जाने दो। भी नहीं रो सकते।
जानता हूं, भय उठता होगा मन में कि यहां तो आंसू इतना श्रेष्ठतम आदमी तो आनंद में भी रोता है। निकृष्टतम आदमी हलका कर जाते हैं, इतना हृदय भर जाता है, घर जाकर क्या दुख में भी नहीं रोता। दुख में भी जो न रोये वह बिलकुल पत्थर होगा? तुम तो तुम ही रहोगे। मैं तुम्हें रुला रहा हूं, ऐसा मत हो गया। सुख में भी जो रोये, वह बह गया, बिलकुल तरल हो | सोचना। तुम ही रो रहे हो। क्योंकि यहां और भी हैं, जो नहीं रो गया। और एक बार तुम सुख का रोना सीख लो, एक बार तुम्हें रहे। अगर मैं रुला रहा होता, तो और भी रोते। अगर मेरे हाथ में | रोने का आनंद अनभव में आ जाए. रोने की पवित्रता, रोने की होता रुलाना, तो और भी रोते। तुम रो रहे हो, तो तुम ही रो रहे प्रार्थना की तुम्हें झलक मिल जाए, तो तुम्हारे हाथ में एक महान हो, मैं नहीं रुला रहा। मेरे बहाने तुम थोड़ा अपने को दमन से, कुंजी आ गयी।
| नियंत्रण से ढीला कर लिये हो। मैं सिर्फ बहाना हूं, निमित्त हूं। । फिर तुम जहां भी मौका होगा—कभी किसी खिले फूल को अगर यह तुम्हारी समझ में आ जाए कि तुम ही रो रहे हो, मैं देखकर भी आंखें आंसुओं से भर जाएंगी। इतना अपूर्व सौंदर्य है। सिर्फ निमित्त हूं, तब तुम्हें हर जगह निमित्त मिल जाएंगे। फूल इस जगत में। कभी आकाश के तारों को देखकर भी आंखें को देखकर रो लेना। बच्चे को नाचते, खशी से भरा हआ डबडबा आएंगी। इतना रहस्यपूर्ण है यह जगत! तब तुम देखकर रो लेना। पक्षी का गीत सुनकर रो लेना। झरने की पाओगे कि तुम्हारे भीतर एक सिहरन जन्मी। एक नये तरह का आवाज सुनकर रो लेना। वृक्षों के हरे पत्ते, आकाश में घिरे मेघ आवेग, एक नया आवेश, एक नयी प्रफुल्लता।
और रो लेना। कितना है चारों तरफ रहस्य! किसी को भी मैं भी कहता है कि दुख में रोने की कोई जरूरत नहीं। क्योंकि | निमित्त बना लेना। मैं कहता हूं, रोने को तो सुख बनाया जा सकता है। मेरे कहने में, | एक बार तुम्हें यह समझ में आ जाए कि रोने की क्षमता तुम्हारी
औरों के कहने में फर्क है। वे कहते हैं, दुख में भी मत रोना, | है, तो फिर कोई भी निमित्त काम कर देगा। ऐसे ही समझो कि क्योंकि रोने से कमजोरी प्रगट होती है। मैं तमसे कहता है, रोने आये, अपना कोट टांगना है, तो खंटी पर टांगते हैं: कोई भी को तो आनंद बनाया जा सकता है। दुख में मत रोना, जब रोना खूटी काम दे देगी। खूटी नहीं मिलेगी तो तीली पर टांग देंगे,
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