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ऊपर चली जाए। प्रश्न नीचे रह जाएं, बस गये। तुम्हारी समझ जब प्रश्नों से नीचे होती है, तो प्रश्न होते हैं। तुम्हारी समझ जब प्रश्नों से ऊपर उठ जाती है, पंख खोल देती है आकाश में, प्रश्न जमीन पर पड़े रह जाते हैं। फिर कोई चिंता नहीं रह जाती।
इसे खयाल रखो। असली सवाल प्रश्नों का नहीं है, असली सवाल तुम्हारी चित्त दशा का है। एक खास चित्त दशा में खास तरह के प्रश्न उठते हैं। उसी चित्त दशा को बनाये रखे अगर तुम प्रश्नों को हल करना चाहो, हल नहीं हो सकते। अकसर लोग | यही कर रहे हैं। यह असंभव है । चित्त का तो कुछ रूपांतरण नहीं करते। चित्त तो वही का वही रहता है। प्रश्न पूछते हैं, एक उत्तर मिलता है। तुम्हारा चित्त वही का वही, उस उत्तर में से दस प्रश्न खड़े हो जाते हैं। फिर दस उत्तर ले आओ, हजार प्रश्न खड़े हो जाएंगे।
एक स्कूल में ऐसा हुआ। एक छोटा बच्चा भाग - भागकर सिनेमा पहुंच जाता था । शिक्षक परेशान था । कुछ भी पूछो वह किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा हो जाता था। एक दिन उसने यह सोचकर कि चलो कुछ ऐसा पूछें जिसका यह उत्तर दे सके, तो अंग्रेजी के शब्द पूछे कि इनका अर्थ क्या है? वह खड़ा रह गया हक्का-बक्का ! वह उनके भी उत्तर न दे सका। शिक्षक ने उसकी सहायता के लिए उसके पड़ोसी विद्यार्थी से पूछा - 'ड्रीम' का क्या अर्थ है? उसने कहा, स्वप्न ! दूसरे से पूछा - 'गर्ल' का क्या अर्थ है ? उसने कहा, लड़की। अब तो बात साफ थी । उसने इस लड़के से पूछा - 'ड्रीमगर्ल' का क्या अर्थ है? उस लड़के ने कहा, 'हेमामालिनी ।'
एक तल है । उस तल में से बाहर निकलना बड़ा मुश्किल होता है। सारे उत्तर, सारे प्रश्न आखिर तुम्हारी ही बुद्धि के हिस्से बन जाएंगे। उनसे तुम पार न जा सकोगे। इसलिए वास्तविक सहायता उत्तर देने से नहीं होती, वास्तविक सहायता तुम्हारी बुद्धि को नये आयाम, नये स्तर, नये सोपान देने से होती है। जैसे ही तुम एक बुद्धि स्तर से थोड़े ऊपर गये, तो अचानक तुम पाते हो बात खतम हो गयी। प्रश्न सार्थक ही मालूम नहीं पड़ता, उत्तर की कौन तलाश करता है ! प्रश्न ही गिर जाता है।
सत्पुरुषों के पास प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते, प्रश्न गिर जाते हैं। समस्याओं का समाधान नहीं होता, समस्याएं विसर्जित हो जाती हैं।
Jain Education International 2010_03
किनारा भीतर है।
थोड़ा रुको। जिन्होंने पूछा है, सरल हृदय व्यक्ति होंगे। जिन्होंने पूछा है, निष्ठावान व्यक्ति होंगे। तीन दिन ही उन्होंने मुझे सुना है । और कल डोली की दुल्हन की बात सुनकर उनके सारे प्रश्न गायब हो गये। बड़े सरल हृदय होंगे। उन्हें अपने पंखों का पता नहीं होगा। उड़ सकते हैं आकाश में। जैसे ही जरा-सी ऊंचाई आयी, प्रश्न गये । इस नये प्रश्न को भी मत पूछो। प्रश्न नासमझों के लिए छोड़ दो। समझदार को पूछने को कुछ भी नहीं है। समझदार को तो समझने को है, पूछने को कुछ भी नहीं है। थोड़ा जागो ।
दुल्हन की बात सुनकर जैसे उनके भीतर एक नया द्वार खुल गया। खुलना ही चाहिए, अगर मेरी बात ठीक से सुन रहे हो। ये बातें सिर्फ बातें नहीं हैं। ये बातें बहुत कुछ लेकर तुम्हारे पास आ रही हैं। ये बातें बहुत ही गहन संदेश लेकर तुम्हारे पास आ रही हैं। ये बातें प्रतीक हैं। इन प्रतीकों को अगर तुमने अपने हृदय में उतरने दिया, तो न मालूम कितने बंधनों को खोल जाएंगी, न मालूम कितनी गांठों को सुलझा जाएंगी।
सरल हो चित्त, सुनने की निर्दोषता हो, बंधे हुए पूर्वाग्रह न हों, तो प्रश्न बच नहीं सकते मेरे पास । बच सकते हैं केवल दो तरह के लोगों के। एक तो उनके जो सुनते ही नहीं। जो बैठे हैं जड़, पत्थर की भांति । या उनके, जो मानकर ही बैठे हैं कि उन्हें पता है, इसलिए सुनने की कोई जरूरत नहीं ।
तो या तो सुस्त, अंधेरे में सोये हुए लोगों के प्रश्न नहीं मिटते, या उन लोगों के जिनको पांडित्य का पागलपन सवार गया है। जिनको खयाल है उन्हें पता है।
प्रश्न
दो तरह से उठते हैं। एक तो प्रश्न उठता है जिज्ञासा से। और एक प्रश्न उठता है जानकारी से। जिज्ञासु का प्रश्न तो अगर वह रुका रहे थोड़ी देर तो अपने-आप गिर जाएगा। लेकिन जानकारी से जो प्रश्न उठता है, वह गिरनेवाला नहीं है। वह जानकारी गिरेगी तभी गिरेगा। तुमने खयाल किया ? कुछ प्रश्न तो तुम्हारे जीवन से आते हैं। वे तो सच्चे प्रश्न हैं । कुछ प्रश्न तुम्हारे शास्त्रीय बोध से आते हैं। वे बिलकुल झूठे प्रश्न हैं। जब तक तुम्हारा शास्त्र न गिरेगा तब तक वे प्रश्न न गिर पायेंगे। पर जिन मित्र ने यह पूछा है, उनको मैं कहूंगा, उन्हें पूछने की कोई जरूरत नहीं। धीरज रखें। वे उन लोगों में से नहीं हैं, जो अपने को बचाने आये हों। उन लोगों में से हैं, जो मिटाने आये हैं।
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