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किनारा भीतर है
अभी इस खुशी की महफिल से तो मत उठाओ मुझे, अभी तो है। वह काम तो पूरा करना होगा। भगोड़ापन मैं नहीं सिखाता आंख भी गीली नहीं हुई।
हूं। भगोड़े मेरे लिए संन्यासी नहीं हैं। भगोड़े में कुछ कमी है। अभी बज्मे-तरब से क्या उठू मैं
भगोड़ा संसार में परमात्मा को न देख पाया, अंधा है। भगोड़ा अभी तो आंख भी पुरनम नहीं है
वहां से भाग गया, जहां जीवन-रूपांतरण होता, जहां क्रांति घट तो तुम्हें लगेगा जैसे बे-समय, असमय तुम्हें उठा दिया गया सकती थी, जहां चुनौती थी। है। ऐसा लगेगा जैसे अभी जाना न था और जाना पड़ा। और नहीं, मैं तो तुम्हें वापिस भेजूंगा। तुम्हारी आंख गीली हुई हो या | अगर ऐसे तुम गये, तो घर और भी उदास हो जाएगा। जितना | न हुई हो, तुम्हें जाना तो होगा। जब जा पहले था, उससे भी ज्यादा। मैं तुम्हारे घर को उदास नहीं करना जाओ। आंख गीली क्या, हृदय को गीला करके जाओ। और चाहता। मैं तुम्हारे घर को मंदिर बनाना चाहता हूं। मैं चाहता हूं तुम्हारे हाथ में है। अगर तुम प्यासे लौटते हो, तो कोई और कि तुम जब घर जाओ, तो तुम्हारे घर का अभिनवरूप प्रगट हो। जिम्मेवार नहीं है। तुम मुझे दोष न दे सकोगे। नदी बह ही रही मैं तुम्हें घर से, संसार से, गृहस्थी से तोड़ नहीं लेना चाहता। | थी, तुम झुके नहीं। तुमने अंजुलि न बनायी। तुमने नदी से पानी वही मेरे संन्यास का अभिनवपन है कि मैं तुम्हें संसार से तोड़ न भरा। तुम शायद प्रतीक्षा करते थे कि नदी अब तुम्हारे कंठ तक नहीं लेना चाहता। मैं तुम्हें संसार से इस भांति जोड़ देना चाहता | भी आये। नदी तुम्हारे पास से बह रही थी, लेकिन झुकने की हूं कि संसार का जोड़ ही परमात्मा से जोड़ बन जाए। संसार | तुमने हिम्मत न दिखायी। केवल हिम्मतवर झुक सकते हैं। तुम्हारे और परमात्मा के बीच बाधा न रहे, साधक हो जाए। समर्पण केवल वे ही कर सकते हैं, जिनके पास महासंकल्प है।
गर तुम मुझे ले जा सको-थोड़ा-सा ही सही, थोड़ा-सा | जो बड़े बलशाली हैं, वे ही केवल झुकने की हिम्मत दिखा पाते वातावरण मेरा, थोड़ी-सी रोशनी मेरी, थोड़ी-सी श्वासें हैं। कमजोर तो डरा रहता है कि झुकने से कहीं कमजोरी का पता मेरी तो घर तम जाओगे, वही घर नहीं जिसे तम छोड़कर आये न चल जाए। अड़ा रहता है, अकड़ा रहता है। थे। पत्नी-बच्चे तब तुम्हें पत्नी-बच्चे ही न रह जाएंगे, उनमें भी मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जितना भीतर आदमी हीनभाव से तुम परमात्मा की झलक देख पाओगे। देख ली जिसने परमात्मा भरा होता है उतना ही अकड़कर खड़ा रहता है कि किसी को पता की जरा-सी झलक, फिर वह सभी जगह उसे देख पाता है। | न चल जाए। झुका, पैरों में झुका, समर्पण किया, कहीं ऐसा न पत्थर में देख पाता है, तो पत्नी में न देख पायेगा। पत्थर मैं देख हो कि लोग कहने लगें, अरे, कहां गया तुम्हारा बल! तो पाता है, तो पति में न देख पायेगा। अब कैसे मजे की घटना है | हीनग्रंथि से भरा हुआ आदमी हमेशा अपने को श्रेष्ठ मानने की कि लोग जीवंत व्यक्तियों को छोड़कर भागते हैं और पत्थरों में | अकड़ रखता है। यह कमजोर का लक्षण है। बलशाली तो झक भगवान को देखते हैं। तुम्हें यहां न दिखा, तुम्हें पत्थर में कैसे | जाता है। क्योंकि झुकने से भी उसका बल मिटता नहीं। झुकने दिखायी पड़ेगा! और जिसको पत्थर में दिख सकता है, वह से बल बढ़ता है। क्योंकि झुकने से वह और भी ताजा हो जाता भागेगा क्यों? क्योंकि उसे सब जगह दिखायी पड़ेगा। है, नया हो जाता है, छोटे बच्चे की भांति हो जाता है। देखा
दृष्टि अगर वस्तुतः जन्मी हो, तो तुम मुझे छोड़कर जाओगे ही तुमने, तूफान आता है, आंधी आती है, बड़े वृक्ष गिर जाते हैं, नहीं। मैं तुम्हारा आकाश हो जाऊंगा। मैं तुम्हें घेरे हुए चलूंगा। छोटे-छोटे घास के पौधे झुक जाते हैं। तूफान चला जाता है,
और तभी तुम मुझसे जुड़े। तभी तुम मेरे संन्यासी हुए। अन्यथा घास के पौधे फिर खड़े हो जाते हैं। तूफान वृक्षों को गिरा देता है, संबंध बुद्धि का रहेगा। और तब बार-बार अड़चन होगी। घास को नहीं उखाड़ पाता। घास के पास कुछ बल है, जिसका जब-जब तुम्हें जाना पड़ेगा-और जाना तो पड़ेगा ही। वृक्षों को पता नहीं। झुकने का बल है। तूफान घास के पौधों को जिम्मेवारियां हैं। जाना तो पड़ेगा ही, दायित्व हैं। जाना तो पड़ेगा सिर्फ ताजा कर जाता है, हल्का कर जाता है, धूल-धवांस झाड़ ही, तुमने बहुत से भरोसे दिये हैं, आश्वासन दिये हैं। जाना तो जाता है। फिर वापिस खड़े हैं! बड़े वृक्ष गिर गये तो फिर लौट | पड़ेगा ही, क्योंकि परमात्मा ने तुम्हें कुछ करने के लिए काम दिया नहीं सकते, खड़े नहीं हो सकते।
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