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जिन सूत्र भाग: 2
की आंख को खुला रखा है। वह आंख देखने योग्य रही होगी, मस्ती से। ध्यानी के लिए प्रेम भी घटता है तो होश से घटता है। यह सच है! वह आंख बड़ी प्यारी थी, यह सच है! उस आंख इसको खयाल रखना। और अपने लिए साफ-साफ कर लेना की उपासना और पूजा का भाव उठा होगा, यह सच है! लेकिन कि तुम्हारे लिए क्या उचित है। अगर तुम्हारे हृदय में प्रेम के भाव यह आदमी की कमजोरी है। महावीर की आंख तो बंद ही रही सहजता से उठते हैं, तो तुम फिकिर छोड़ो होश की। तुम तो होगी जब उन्होंने स्वयं को जाना है। और जब स्वयं को जाना | मांगोतभी तो वे महावीर हुए। उसके पहले तो वह महावीर नहीं। ऐ मुतरबे-बेबाक कोई और भी नग्मा
बंद होगी तुम्हारी आंख भी। कान भी बंद हो जाएंगे। इंद्रियां गाओ कुछ और भी गीत कि मैं और डूब जाऊं। सुनाओ कुछ सब बंद हो जाएंगी। क्योंकि इंद्रियों का अर्थ ही होता है, ऊर्जा के और कि मैं और डूब जाऊं। बाहर जाने के द्वार। जब सारी इंद्रियां बंद हो जाती हैं, सारी ऊर्जा ऐ साकी-ए-फैयाज... भीतर लौटती है। महावीर ने इसको प्रतिक्रमण कहा है, ऊर्जा का ऐ दानशील साकी!...शराब और जियादा। ढालो! भीतर लौटना। जब आंख खोलकर तुम देखते हो, तो प्रेम के मार्ग पर, भक्ति के मार्ग पर नृत्य है, गान है, डूबना है। आक्रमण। जब आंख बंद करके भीतर जाते हो, तो प्रतिक्रमण। तन्मयता है, तल्लीनता है। ध्यान के मार्ग पर सजगता है आक्रमण का अर्थ है, दूसरे पर हमला। प्रतिक्रमण का अर्थ है, | जागरूकता है। अपना मागे ठीक-ठीक चुन लेना, अ अपने घर लौट आना। जैसे सांझ पक्षी लौटने लगे अपने घोंसलों मत कि एक मार्ग पर चले तो दूसरे से तुम वंचित रह जाओगे। को, ऐसा जब तुम्हारे प्राण लौटने लगे भीतर के अंतर्तम में, तब अंत में दोनों मिल जाते हैं। पहाड़ के शिखर पर सभी मार्ग मिल आंख, कान सब बंद हो जाएंगे।
| जाते हैं। जो ध्यान से चलता है, अतंतः प्रेम को भी उपलब्ध हो तो मुझे सुनते अगर आंख बंद हो रही हो तो हो जाने देना। तुम जाता है। जो प्रेम से चलता है, वह अतंतः ध्यान को भी उपलब्ध बीच में बुद्धिमानी मत लगाना। तुम अपना गणित बीच में मत | हो जाता है। लेकिन दोनों के रास्ते बड़े अलग-अलग हैं। लाना। बाधा मत डालना। कान बंद होते हों, हो जाने देना। इशारा तम्हारी बद्धि नहीं समझ पा रही है, तम्हारे आंख और कान | चौथा प्रश्न: मैं क्या प्रश्न करूं और आप क्या जवाब दें। समझ गये। तुम्हारे अस्तित्व ने बात पकड़ ली। तुम इसमें बाधा प्रश्न भी आप हैं और उत्तर भी। प्रेम में प्रश्न हो, या उत्तर हो, और व्यवधान खड़ा मत करना।
या चुप्पी? नहीं, होश की बात ही मत उठाओ। बेहोशी ही ठीक है। प्रश्न है 'आनंद विजय' का। बेहोशी ही ठीक होगी। और शराब पूछे बिना रहा न गया! मांगो, होश मत मांगो। और मस्ती मांगो, समझदारी मत मांगो। पूछने की पूछ ऐसी ही है। एक तरह की खुजलाहट है। खाज ऐ मुतरबे-बेबाक कोई और भी नग्मा
हुई है कभी? बस वैसी खुजलाहट है। नहीं भी खुजलाना ऐ साकी-ए-फैयाज शराब और जियादा
चाहते, फिर भी अनजाने हाथ उठ जाते हैं, खुजलाहट शुरू हो हे मुक्तकंठ गायक! एक गीत और। और हे दानशील | जाती है। मधुबाला! थोड़ी शराब और।
अब जिसने प्रश्न पूछा है, उसने प्रश्न की पहली पंक्ति में यही ऐ मुतरबे-बेबाक कोई और भी नग्मा
सोचकर पूछा है कि नहीं पूछना है। ऐ साकी-ए-फैयाज शराब और जियादा
| 'मैं क्या प्रश्न करूं. और आप क्या जवाब दें।' अभी दुनिया में दो मार्ग हैं, दो द्वार हैं। एक है ध्यान का मार्ग। एक है बुद्धिमानी कायम है। 'प्रश्न भी आप हैं और उत्तर भी।' फिर प्रेम का मार्ग। ध्यान के मार्ग पर होश अनिवार्य चरण है। प्रेम के | चूक हो गयी। खुजला ली खाज। 'प्रेम में प्रश्न हो या उत्तर हो मार्ग पर बेहोशी अनिवार्य चरण है। 'आनंद विजय' के लिए या चुप्पी?' प्रश्न आखिर उठ ही आया! मार्ग प्रेम का है। प्रेम से ही ध्यान घटेगा। बेहोशी से, डूबने से, हम जैसे हैं, उससे भिन्न हम थोड़ी-बहुत देर चेष्टा कर सकते
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