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जिन सूत्र भाग : 2
की पत्नी में रूप देखना बहुत कठिन है।
पहले दिन हो सकता है वह थोड़ा-सा चौंककर देखे, दूसरे दिन मुल्ला नसरुद्दीन मिलिट्री में भर्ती किया जा रहा था। और कम देखेगा, तीसरे दिन और कम। महीने भर के बाद तुम जबर्दस्ती। वह बचने के उपाय कर रहा था। सब परीक्षाएं हो खोल दो आंख, अंख खुली रहेगी, वह कुछ भी न देखेगा। गयीं। लेकिन सब तरह से स्वस्थ आदमी था, बचे भी कैसे? | अभ्यास हो गया। आखिर उसने कहा कि मेरी आंखें खराब हैं। तो डाक्टर ने पूछा, दुनिया में आदमी के ऊपर नशे का प्रभाव इसीलिए रहा है कि तुम्हारे पास कोई प्रमाण है तुम्हारी आंखें खराब होने का? उसने नशे से कुछ न कुछ रहस्य की झलक मिलती है। नशे का प्रभाव खीसे से एक तस्वीर निकाली, कहा, यह देखो मेरी पत्नी की अकारण नहीं है। तस्वीर है, इससे साफ जाहिर है कि मेरी आंखें खराब हैं। इस और समस्त दुनिया के धर्मगुरुओं ने नशे से बचने का आग्रह स्त्री से कौन शादी करेगा!
किया है, वह भी बात ठीक है। क्योंकि नशा धोखा देता है। ___ अल्डुअस हक्सले को अपनी पत्नी में विभामय रूप दिखायी सत्य मिलता नहीं, सत्य की झूठी झलक दे देत पड़ा। नशे के उतर जाने के बाद सब खो गया। अल्डुअस यहां अगर मुझे सुनते-सुनते मेरे पास बैठे-बैठे प्रार्थना और हक्सले तो इतना प्रभावित हुआ एल.एस.डी. से कि उसने ध्यानपूर्ण हृदय से कभी तुम्हारी आंखों का पर्दा सरक जाए, तो . अपनी पूरी जिंदगी फिर यही कोशिश की कि वेद में जिस उस समय प्रश्न खड़े मत करना। उस क्षण तो पर्दे को पूरा ही गिर 'सोमरस' की चर्चा है, वह एल.एस.डी. ही है। उसने तो फिर जाने देना। छलांग लेकर उतर जाना। तुम भी बन जाना एक यह भी सिद्ध करने की कोशिश की कि अब भविष्य में महावीर, हिस्से उस इंद्रधनुष के। तुम भी उस विभा में खो जाना। शायद बुद्ध, कबीर, मीरा, क्राइस्ट, इनको जो हुआ, उसके लिए इतने | लौटकर तुम फिर कभी वही न हो सको, जो तुम थे। शायद तुम तीस-तीस साल, बीस-बीस साल साधना करने की कोई जरूरत नये होकर ही लौटो। शायद फिर तुम्हें अपने आसपास भी वैसे नहीं। यह तो बैलगाड़ी जैसे रास्ते थे-बड़े लंबे। अब तो जेट | ही रंगों का फैलाव, वैसे ही रंगों की बाढ़ अनुभव होने लगे। का युग है। एल.एस.डी. भविष्य की साधना है।
| परमात्मा जीवन के समस्त रंगों को देख लेने का नाम है। वह इतना प्रभावित हो गया था कि जिंदगी इतनी रंगीन, इतनी | जीवन के समस्त रूप को देख लेने का नाम है। जीवन का जो प्रज्वल, इतनी संगीतपूर्ण, इतनी विभामयी! तो जरूर | परम आह्लादमय चमत्कारिक रूप है, उसको पूरा का पूरा जी लेने एल.एस.डी. कुछ कर रहा है। एल.एस.डी. कुछ भी नहीं | का नाम है। परमात्मा कोई गंभीर, उदास चेहरों की खोज नहीं; करता। और एल.एस.डी. से कुछ होनेवाला भी नहीं है। नाचते, गाते लोगों की खोज है। एल.एस.डी. तो एक झटके से तुम्हारी आंखों के पर्दे को गिरा देता है। लेकिन फिर पर्दा आ जाएगा। क्योंकि पर्दे के होने का
आज इतना ही। कारण नहीं मिटता एल.एस.डी. से।
यह तो ऐसे ही है जैसे किसी ने जबर्दस्ती किसी सोते आदमी की आंखें उघाड़ दीं। खोल दी खींचकर पलकें। एक क्षण को आंखें खुल गयीं, उसने कुछ देखा, कि फिर आंखें बंद हो गयीं। सोया आदमी सोया आदमी है। और अगर एल.एस.डी. बार-बार लिया तो रोज-रोज रंग कम होते जाएंगे। जैसे औषधि का असर खो जाता है, ऐसे ही नशे का असर खो जाएगा। फिर ज्यादा मात्रा चाहिए। उसी मात्रा में अर्थ न होगा। एक दिन ऐसा आयेगा, एल.एस.डी. से कुछ भी न होगा। अगर किसी आदमी की आंख तुमने रोज आधी रात में जबर्दस्ती खोली, तो
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