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WANABARAMANANDMewala
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_ किनारा भीतर है
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ARIA
मुझे देखा, तो उस वृक्ष के पास भी ऐसे ही रंगों का सागर लहराने | जान तुझ पर निसार करता हूं लगेगा। लहरा रहा है। तुम्हारे पास आंख नहीं। अस्तित्व पर | मैं नहीं जानता हुआ क्या है कोई घूघट नहीं, सिर्फ तुम अंधे हो। तुम्हें एक छोटे-से फूल के | जानने की जरूरत भी नहीं है। जो हो रहा है, उसे होने दो। पास भी ऐसे ही आभाओं के आयाम खुलते हुए नजर आएंगे। जान-जानकर कौन कब सत्य को जान पाया। जाननेवाले बहुत एक बार तुम्हें यह समझ में आ जाए कि शांत, प्रेम से भरकर पीछे पिछड़ गये। जाननेवाले किताबों में खो गये। जाननेवाले किसी की तरफ देखना सत्य को देखने के लिए अनिवार्य है, तब प्रश्नों में डूब गये और मर गये। नहीं, जान-जानकर कोई भी तुम वह देख पाओगे, जैसा है। अभी तुमने बहुत कम देखा है। नहीं जान पाया। खोओ अपने को, मिटाओ, मिटो, पिघलो।
अभी तुमने ऐसे देखा है जैसे बहुत से पर्दे डाल दिये गये हों, और सत्संग का यही अर्थ है। पर्दो के पीछे दीया छिपा हो, ऐसी फूट-फूटकर छोटी-सी किरणें | जैसे सुबह सूरज की मौजूदगी में बर्फ पिघलने लगती है, ऐसे तुम्हारे पास आ पाती हों। एक-एक पर्दा हटता जाता है, किरणों किसी की मौजूदगी में तुम पिघलने लगो-सत्संग। यहां मैं का जाल बढ़ता जाता है।
मौजूद हूं, अगर तुम जरा भी करीब आने को तैयार हो, तो तुम जब तुम्हें मेरी तरफ देखते-देखते कभी अचानक एक आभा | पिघलोगे। उस पिघलने से ही नयी-नयी घटनाएं घटेंगी। का विस्फोट मालूम होता हो, रंगीन तरंगें चारों तरफ फैल जाती नये-नये ऊर्मियां, नये आवेश उठेंगे। रंग नये, गंध नयी, स्वाद हों, तो इसका अर्थ इतना हुआ कि उस क्षण में तुम्हारी आंख पर नये। तुम पाओगे जैसे तुम फैलने लगे, बड़े होने लगे, विस्तीर्ण पर्दा बहत कम है। अभी तम प्रश्न उठाकर नये पर्दे मत बनाओ। होने लगे। अभी तुम प्रश्नों को कह दो, हटो जी! फुर्सत के समय जब कुछ | जिन लोगों ने रासायनिक-द्रव्यों पर बड़ी खोज की भी न हो रहा होगा, तब तुमसे सिर माथा-पच्ची कर लेंगे। अभी | है-एल.एस.डी., मारिजुआना, और दूसरे द्रव्यों पर-उन तो जाने दो। अभी तो बुलावा आया। अभी तो इस इंद्रधनुष में सबका यह कहना है कि उन द्रव्यों के प्रभाव में भी मनुष्य की प्रवेश कर जाने दो। अभी तो डूबने दो। अभी तो डुबकी लेने आंख पर से पर्दे हट जाते हैं। अल्डुअस हक्सले अमरीका का दो। व्यर्थ के क्षणों में प्रश्न कर लेंगे। अभी सार्थक क्षण को बहुत बड़ा मनीषी, विचारक हुआ। उसने जब पहली दफा प्रश्नों में मत खोओ। क्योंकि तुम्हारे प्रश्न के खड़े होते ही तुम एल.एस.डी. लिया, तो वह चकित हो गया। उसके सामने एक पाओगे, रंग खोने लगे। प्रश्न ने फिर संदेह खड़ा कर दिया। साधारण-सी कुर्सी रखी थी। साधारण-सी कुर्सी। लेकिन प्रश्न का मतलब ही संदेह होता है। प्रश्न उठता ही संदेह से है। जैसे-जैसे उस पर एल.एस.डी. का प्रभाव गहन होने लगा कुर्सी - प्रश्न श्रद्धा से नहीं उठता। श्रद्धा तो चुपचाप स्वीकार कर से रंग फूटने लगे। अदभुत रंग! अनजाने, अपरिचित रंग! ऐसे लेगी। श्रद्धा तो इतनी विराट है कि कुछ भी घटे तो भी श्रद्धा | रंग, जो कभी नहीं देखे थे। और साधारण नहीं, जिनके भीतर से चौंकती नहीं। अनहोना घटे, तो भी स्वीकार कर लेती है। श्रद्धा | बड़ी आभा फूट रही- लूमिनस।' ज्योतिर्मय। साधारण रंग की कोई सीमा नहीं। संदेह बड़ा छोटा है, बड़ा क्षुद्र है, बड़ा नहीं, रंगों के भीतर से आभा की किरणें फूटती हुई।
ओछा है। जरा यहां-वहां कुछ घटा, जो संदेह की सीमा के बाहर वह बहुत हैरान हुआ। उसने आंखें मीड़ीं, अपने को झकझोरा, है कि संदेह बेचैन हो जाता है। परेशान हो जाता है। नहीं, ये ठंडे पानी के छींटे मारे, मगर कुछ भी नहीं, कुर्सी रंगीन होती मौके नहीं हैं संदेह को उठाने के। और अगर तुमने इन मौकों पर चली जाती है। कुर्सी साधारण। उसने आसपास देखा, हर चीज न उठाया, तो तुम्हारा स्वाद ही उत्तर बनेगा।
रंगीन है। किताबें, टेबल, द्वार-दरवाजे। उसकी पत्नी चलती जान तुझ पर निसार करता हूं
हुई भीतर आयी, उसने संस्मरणों में लिखा है, उसके पैरों की मैं नहीं जानता हुआ क्या है
आवाज...ऐसा संगीत मैंने कभी सुना नहीं। पत्नी को देखा, ऐसी श्रद्धा की अवस्था है। जब इंद्रधनुष मेरे पास उठे, जान | ऐसा विभामय रूप कभी देखा नहीं। अब खुद की पत्नी में रूप निछावर करो।
देखना बहुत कठिन है! दूसरे की पत्नी में बहुत सरल है। खुद
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