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जिन सूत्र भागः 2
बडे वक्ष गिरते क्यों हैं? तफान तो नहीं गिराता। क्योंकि बार-बार लौट-लौटकर मझे सनना पड़ेगा। यह तो बंधन हो तुफान गिराता होता तो छोटे तो कभी के बह गये होते। नहीं, बड़े जाएगा। यह बंधन मैं नहीं चाहता कि तम बनाओ। मैं चाहता हूं वृक्ष तूफान के खिलाफ अकड़कर खड़े रहते हैं, इसलिए गिर तुम परिपूर्ण मुक्त हो जाओ। पर एक ही उपाय है। जैसा, जो जाते हैं। छोटे वृक्ष तूफान के साथ हो लेते हैं, हवा पूरब जाती है। मुझे हुआ, वही तुम्हें हो जाए-हो सकता है। अगर एक बीज तो पूरब झुक जाते हैं, हवा पश्चिम जाती है तो पश्चिम झुक जाते फूटकर वृक्ष बन गया, सभी बीज बन सकते हैं। जरा ठीक से हैं। छोटे वृक्ष कहते हैं, हम तुम्हारे साथ हैं। बड़े वृक्ष कहते हैं, भूमि खोजनी है। और हिम्मत खोजनी है भूमि में बिखर जाने की, हम तुम्हारे विरोध में हैं। उसी विरोध में गिर जाते हैं।
ताकि अंकुरण संभव हो जाए। तुम अगर मेरे साथ हो, तो मैं तुम्हें ताजा कर जाऊंगा। तुम परमात्मा को छिपाये बैठे हो, दबाये बैठे हो। खोलो उसे, अगर पूरी तरह मेरे साथ हो, तो मेरी आंधी तुम पर से गुजर फैलने दो उसे। यहां कोई ऐसा है ही नहीं जो परमात्मा को लिये जाएगी, तुम्हें और हरा कर जाएगी, और नया कर जाएगी। और पैदा न हुआ हो। परमात्मा हमारा प्रथम रूप है, और अंतिम भी। तुम जहां भी जाओगे, मैं तुम्हारे हृदय में धड़कने लगूंगा। लेकिन परमात्मा हमारा बीज है, और हमारा फूल भी। अगर तुम मेरे साथ नहीं हो, अकड़े खड़े हो-अकड़ बहुत तरह की होती हैं, किसी ने शास्त्र पढ़ लिया तो अकड़ा खड़ा है। वह दूसरा प्रश्न : घर से चला था तब मन में अनेकों प्रश्न चक्कर कहता है, यह सब हमें मालूम है; किसी ने थोड़े उपवास कर काट रहे थे। अब तक आपके तीन प्रवचन सुन चुका हूं। और लिये तो अकड़ा खड़ा है। वह कहता है, हम कोई साधारणजन कल डोली की दुल्हन की बात सुनकर अचानक सारे प्रश्न
ब हो गये। और अब प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों और कैसे दिया तो अकड़ा खड़ा है-इस अकड़ को अपने भीतर देखो। हुआ? कृपया समझायें। अगर यह अकड़ भीतर रही, तो तुम गीले न हो पाओगे। तो तुम सखे के सखे लौट जाओगे। हो सकता है, डर है कि तम और भी थोड़ी देर ठहरो, यह भी गायब हो जाएगा। प्रश्न उठ आते हैं टूटकर लौट जाओ। तो तुम मेरे पास आकर नये तो न हो पाओ, जल्दी में। ठहरनेवाले के अपने-आप गायब हो जाते हैं। प्रश्नों और जराजीर्ण हो जाओ।
के कोई उत्तर थोड़े ही हैं। किसी प्रश्न का कोई उत्तर नहीं है। तो जब मेरे पास हो, झुको। भरो अंजुलि, पीओ। कोई तुम्हें तुम्हारी समझ बढ़ जाती है, प्रश्न गायब हो जाते हैं। समझ का रोक नहीं रहा है। तुम्हीं न रोको, तो कोई और बाधा नहीं है। विकास है, प्रश्नों के उत्तर नहीं।
पूछा है कि मैं क्या करूं कि आपको सुनता ही रहूं! एक ही इसे थोड़ा खयाल में लेना। उपाय है. मेरे जैसे हो जाओ। और तो कोई उपाय नहीं है। छोटा बच्चा है। खिलौनों से खेलता है। फिर बडा हो गया। क्योंकि अंततः तो तुम स्वयं को ही सुनोगे। अंततः तो स्वयं को | जब छोटा था, खिलौने छीनते तो झंझट पैदा होती। बिना ही सुनना है। अंततः तो तुम्हारे प्राणों में तुम्हारी ही वीणा का नाद | खिलौनों के सो भी न सकता था। बिना खिलौनों के भोजन भी न गूंजेगा। तुम मेरी वीणा को सुनकर अपनी वीणा को पहचान कर सकता था। खिलौने ही सब कुछ थे—संगी-साथी, सारा लो। तुम मेरी वीणा के तारों को डोलते, कंपते देखकर अपनी | संसार। फिर एक दिन अचानक उन खिलौनों को कोने में वीणा के तारों को भी तरंगित होने दो। तुम मेरे पास वस्तुतः | छोड़कर बच्चा भूल ही जाता है। याद ही नहीं रहती। क्या हो सजग होकर अपनी सोयी हुई संपदा को खोज लो, जगा लो, तो गया? बच्चा बड़ा हो गया। खिलौनों से खेलने का समय जा तुम मुझे सुनते रहोगे। क्योंकि फिर तुम जो बोलोगे, वह ठीक चुका। बुद्धि प्रौढ़ हो गयी थोड़ी। थोड़ी समझ ऊपर उठ गयी। वही होगा जो मैं बोल रहा हूं। तुम जो करोगे, वह ठीक वही होगा जिस समझ से प्रश्न उठते हैं, अगर उसी समझ में तुम रुके रहे, जो मैं कर रहा हूं। और दूसरा कोई उपाय नहीं है।
| तो कोई हल नहीं। उस समझ के थोड़े ऊपर उठे कि प्रश्न गये। अगर तुमने मुझे दूर रखा, अलग रखा, भेद रखा, तो तुम्हें वस्तुतः सत्संग का यही अर्थ है कि तुम्हारी समझ तुम्हारे प्रश्नों से
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