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साम्यता रखते हैं और उसे नई दिशा प्रदान करने में समर्थ भी हैं। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के लेखन में मेरा उद्देश्य न तो शब्दों की बाजीगरी करना रहा है और न ही अपनी बौद्धिक योग्यता का प्रदर्शन। मेरी आन्तरिक अभिलाषा तो मात्र इतनी है कि विविध जीवन-मूल्यों और जीवन-आयामों को सम्यक् दिशा में नियोजित किया जा सके।
गुरुचरणरज
ho tum भद्रावती तीर्थ (महाराष्ट्र) 13 फरवरी, 2013
मुनि मनीषसागर =====4 .> =====
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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