Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
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(४) स्थापना निक्षेपका लक्षण... करणादिकसें, सिद्ध हुये विनाके शब्दोका, समजना। जैसे कि-डिथ्य, कविथ्थ, गोलमोल, आदि, अपणी इछा पूर्वक रखा गया सो समजना ॥ ३ ॥
। जो यह " तीन" प्रकारसें नाम रखे जाते है, उसको ही जैन सिद्धांतकारोंने, नामनिक्षेपके स्वरूपसें, वर्णन किये है ।। परंतु दूसरा कोइ भिन्न स्वरूपवाला, " नाम निक्षेपका " प्रकार नही है ।
॥ इति प्रथम " नामनिक्षेपका " लक्षणादिक स्वरूप ॥
॥ अब दूसरा " स्थापना निक्षेपका " लक्षणादिक, कहते है ॥ यत्तु तदऽर्थवियुक्तं, तदऽभिप्रायेण यच्च तत्करणि ॥ लेप्पादि कर्म स्थापनेति, क्रियतेऽल्पकालं च ॥२॥
॥अर्थः-जे वस्तुमें जो गुण है, उनके गुणोंसे तो रहित, और उसीके अभिप्रायसें, उनके ही सदृश, जो कराण, ( अर्थात् सद् रूपा जो आकृति ) जैसे-तीर्थकरादिककी मूर्ति, ॥ १॥ " चकारसें" २ अन्यथा प्रकारसमी ( अर्थात् असद् रूपा “ यह दोनो भेदवाली स्थापना, लेप्यादिक दश प्रकारमे करनेकी, सूत्रकार दिखावेंगे, उस विधिसें किई जो " स्थापना" उसका नाम " स्थापना निक्षेप" है, सो " स्थापना" अल्प कालकी, और चकारसें, यह तात्पर्य है कि, यावत् कालतककी भी किई जाती है ॥२॥x
जिस नामवाली वस्तुका, सदृशरूपकी आकृतिसें, अथवा असदृशरूपकी आकृतिसे, ने त्रादिक द्वारा होके, मनमें बोध होजाना, सोई उस वस्तुका, स्थापना निक्षेपका, विषय समजना ॥
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