Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-मैषज्य रत्नाकर
और दालचीनी, इलायची, तेजपात और नागकेशर, दन्ताश्च शीर्णाः पुनरुद्भवन्ति, २॥-२॥ तोला डाल कर भले प्रकार मिलावे। केशाश्च शुक्ला पुनरेव दिव्या। इसके यथोचित भवन से रक्तपित्त, क्षत, क्षय, नीलाञ्जनालिप्रतिभा भवन्ति, . तृष्णा, अरुचि, श्राम, खांसी, वमन, हिचकी, मूत्र | त्वचा विवर्णाः पुनरेय दिव्याः ॥ कृष्ट तथा ज्वर का नाश होता और बल तथा विशीर्ण कर्णाङ्गलि नासिकोऽपिकामशक्ति बढ़ती है।
कुम्यदितो भिन्नपलोऽपि कुष्ठी। [१४५] अमृतभल्लातक्यवलेहः सोऽपिक्रमादङ्कुरिताग्रशाख(वृ. नि. र., भै. र. कुष्टा.)
__ स्तरुयथा भाति नभोऽम्बुसिक्तः ।।
उष्ट्रान् मयूराजयति स्वरेणभल्लातकानां पवनोद्धृतानां,
बलेन नागस्तुरगो जवेन । वृन्तच्युतानां च यदाढकं स्यात् ।
रसायनस्यास्य नरः प्रसादाद् तच्चेष्टकाचूर्णकणैर्विघृष्य,
बृहस्पतेरप्यधिको हि बुद्धथा। प्रक्षालयित्वा विसृजेत्प्रवाते ॥
प्रन्थान् विशालान् पुनरुकिदोषान् शुष्कं पुनस्तद्विदली कृतञ्च,
गृह्णाति शीघ्रं न च नश्यते तु। ततः पचेदप्मु चतुर्गुणासु । कुर्वनिमंकल्पमनल्पबुद्धितत्पादशेष परिपूतशीतं,
जीवेन्नरो वर्षशतानि पञ्च । क्षीरेण तुल्येन पुनः पचेत्तु ॥ राजाह्ययं सर्व रसायनानां तत्पादशेषं पुनरेव शीतं,
चकार योगं भगवानगस्त्यः ॥ घृतेन तुल्येन पुनः पचेत्तु । ___पवनसे टूटे हुवे और डंठलों से पृथक हुवे तदर्धया शर्करया विमिश्रं,
भिलावे ४ सेर लेकर ईंट के चूर्ण के कणों में मसल ततः खजेनोन्मथितं विधाय॥ कर पानी से धोकर वायु में फैलादे सूखने पर बीचसे तत्सप्त रात्रादुपजातवीर्य,
१.-१ के दोदो दल करके चौगने पानी में पकावे । सुधारसादप्यधिकत्वमेति । चौथाई भाग रहने पर छानकर ठंडा करके बराबर प्रातर्विशुद्धः कृतदेव कार्यो, ! दूध डालकर फिर पकावे, चौथा भाग रहने पर
मात्राञ्च खादेत स्वशरीरयोग्याम ॥ टण्डा करके समान भाग धृत डालकर घृतावशेष न चान्नपागे परिहार्यमस्ति,
एकावे, पश्चात् धीसे आधी खांड मिलाकर कौंचेसे न चातपे चाध्वनि मैथुने च । मन्थन करे और सातदिन तक रक्खा रहने दे, यथेष्टचेष्टो विहितोपयोगाद्,
सात दिन पश्चात् वह पूर्ण वीर्ययुक्त और अमृत के भवेन्नरः काञ्चनराशिगौरः॥ रससे अधिक गुण वाला हो जाता है फिर प्रातःकाल अनन्यमेधा नरसिंहतेजो,
शुद्ध होकर देवार्चन करके यथोचित यथाबल हृष्टेन्द्रियोऽव्याहतबुद्धिसत्वः। मात्रानुसार खावे । इसको सेवन करते हुए अन्न
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