Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ इसी तरह बादर पृथ्वीकाय के भी दो भेद बताये हैं-श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय और खरबादर पृथ्वीकाय / श्लक्ष्ण पृथ्वीकाय के सात भेद और खरवादर पृथ्वीकाय के अनेक भेद बताये हैं। फिर इनके पर्याप्त और अपर्याप्त भेद करके पूर्वोक्त 23 द्वार घटाये हैं। तदनन्तर अपकाय के सूक्ष्म और बादर तथा पर्याप्तक और अपर्याप्त भेद किये गये हैं और पूर्वोक्त 23 द्वारों से उनका निरूपण किया है। तत्पश्चात् बनस्पतिकाय के सूक्ष्म और बादर पर्याप्तक और अपर्याप्तक भेद करके पूर्वोक्त द्वार घटित किये हैं / तदनन्तर बादर वनस्पति के प्रत्येकशरीर बादर वनस्पति और साधारणशरीर बादर बनस्पति-ये दो भेद करके उनके भेद-प्रभेद बताये हैं। प्रत्येकशरीर बादर वनस्पति के 12 भेद वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, पर्वग, तृण, बलय, हरित, प्रोषधि, जलरुह और कुहण बताये गये हैं। तदनन्तर साधारणशरीर बादर वनस्पति के अनेक प्रकार बताये हैं। इन सब भेदों में उक्त 23 द्वार घटाये गये हैं। स जीवों के तेजस्काय, वायुकाय और उदारत्रस ये तीन भेद किये हैं। तेजस्काय और वायुकाय के सूक्ष्म और बादर फिर बादर के अनेक भेद बताये हैं। उदारत्रस के द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय रूप से चार प्रकार बताये हैं / पंचेन्तिय के नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव-ये चार भेद किये हैं। नारक के रत्नप्रभादि पृथियों के प्राधार से सात भेद, तिथंच के जलचर, स्थलचर और खेचर-ये तीन करके फिर एक-एक के अनेक भेद किये हैं। मनुष्य के संमूछिम और गर्मोत्पन्न भेद किये हैं। देव के भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक के रूप में चार प्रकार बताये हैं / उक्त सब जीव के भेद-प्रभेदों में उपर्युक्त तेवीस द्वार घटित किये गये हैं। उपर्युक्त सब द्वारों की परिभाषा और व्याख्या विद्वान् अनुवादक और विवेचक मुनिश्री ने यथास्थान की है जो जिज्ञासुओं के लिए बहुत उपयोगी है। जिज्ञासु जन वहाँ देखें / यहाँ उनका उल्लेख करमा पुनरावृत्ति रूप ही होगा, अतएव विषय का निर्देश मात्र ही किया गया है। द्वितीय प्रतिपत्ति प्रस्तुत सूत्र की द्वितीय प्रतिपत्ति में समस्त संसारी जीवों को वेद की अपेक्षा से तीन विभागों में विभक्त किया गया है। वे विभाग हैं-स्त्री, पुरुष और नपुसंक / स्त्रियों के तीन प्रकार कहे गये हैं-१. तिर्यगयोनिक स्त्रियाँ, मानुषी स्त्रियाँ और देवस्त्रियां / नारक जीव नपुंसक वेद वाले ही होते हैं अत: उनमें स्त्री या पुरुष वेद नहीं होता। तिर्यगयोनिक स्त्रियों के तीन भेद हैं- जलचरी, स्थलचरी और खेचरो। फिर उनके उत्तर भेदों का कथन किया गया है। मानुषी स्त्रियों के तीन प्रकार कहे गये हैं.--कर्मभूमि में उत्पन्न होने वाली, अकर्मभूमि में उत्पन्न होने वाली और अन्तद्वीपों में उत्पन्न होने वाली / अन्तीपिका स्त्रियों के 28 प्रकार, अकर्मभूमिका स्त्रियों के तीस प्रकार और कर्मभूमिका स्त्रियों के 15 प्रकार कहे गये हैं। देवस्त्रियों के चार प्रकार कहे हैं-भवनवासी देवस्त्रियां, वानव्यन्तर देवस्त्रियां, ज्योतिष्कदेव स्त्रियां और वैमानिक देव स्त्रियां / तदनन्तर इनके उत्तर भेदों का कथन हैं। वैमानिक देव स्त्रियां केवल दो देवलोक-सौधर्म और ईशान में ही हैं / आगे के देवलोकों में स्त्रियां-देवियां नहीं होती हैं। स्त्रियों के भेद निरूपण के पश्चात उनकी स्थिति बताई गई है। पहले सामान्यरूप से जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का कथन है फिर उत्तर भेदों को लेकर प्रत्येक की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति कही गई है। मूलग्नन्थ मौर अनुवाद से स्थिति का प्रमाण जानना चाहिए। [ 26 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org