Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०१ प्रज्ञापनाद्वारनिरूपणम् ४७ स्नातो घातिकर्मलक्षणमलपटक्षालनात् इति स्नातका, घातिकर्मणां क्षाळनात् शुद्धतां गत इत्यर्थः । तत्र पुलाको द्विविधः लब्धि प्रतिसेवनाभेदात् तत्र लब्धिपुलाको लब्धिविशेषवान् यः स्वकीयलब्धिवात् संघकार्याय चक्रवदिकमपि विनाशपति तदुक्तम्-'संघाइयाणकज्जे चुभिज्जा चक्काटिमविजीए. तीए लद्धीए जुओ लद्धि पुलाओ मुणेयवा' 'संघादिकानां कार्ये यथा चक्रवत्तिनमपि चूरयेत् तया लब्ध्या युतो लब्धिपुलाको ज्ञातव्य इति ।
आसेवनापुलाकमाश्रित्याह-'पुलाए णं भंते !' इत्यादि । 'पुलाएणं भंते ! काविहे पन्नत्ते' पुलाकः खल भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्त इति प्रश्नः । भगवानाहजिस निग्नन्ध का चारित्र कुत्सित होता है वह निर्ग्रन्थ कुशील कहा गया है ग्रंथ-चारित्र मोहनीय कर्म से जो रहित होता है वह निर्ग्रन्थ
और जो धातिया कर्मरूप मैल से स्नात हुए व्यक्ति के जैसा शुद्ध होता है वह स्नातक है । अर्थात् घातिया कर्मों के सर्वथा नाश से जो शुद्ध हो गया है ऐसे केवली स्नातक है। इनमें पुलाक दो प्रकार का होता है एक लब्धि पुलाक और दूसरा प्रतिसेवना पुलाक जो लब्धि पुलाक होता है वह लब्धि विशेष वाला होता है। यह अपनी लब्धि के बल से संघ कार्य निमित्त चक्रवर्ती आदि को भी नष्ट कर देता है सो ही कहा है-'संघाइयाणकज्जे चुनिज्जा चक्कटिभविजीए तीए लद्धीए जुओ लद्धि पुलाओ मुणेयवो' आसेवना पुलाक को
आश्रित करके गौतम ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-'पुलाएणं भंते ! कह विहे पन्नत्ते' हे भदन्त ! पुलाक कितने प्रकार का कहा गया है ? इसके નિગ્રંથનું ચારિત્ર કુત્સિત-નિંદિત હોય છે તે નિર્ચથ કુશીલ કહેવાય છે. ૩ શ્રેન્થ–ચારિત્ર મોહનીય કર્મથી જે રહિત હોય છે, તે નિગ્રંથ છે. અને જે ઘાતિયા કમરૂપ મેલથી સનાન કરેલ વ્યક્તિની માફક શુદ્ધ હોય છે, તે સ્નાત કહેવાય છે. અર્થાત્ ઘાતિયા કર્મોના સર્વથા નાશ પામવાથી જે શુદ્ધ થઈ ગયા છે. એવા કેવલી સ્નાતક છે. તેમાં પુલાક બે પ્રકારના હોય છે. એક લબ્ધિ પુલાક અને બીજા પ્રતિસેવના પુલાક, જે લબ્ધિ પુલાક હોય છે તે લખ્યિ વિશેષવાળો હોય છે. તે પોતાની લબ્ધિના બળથી સંઘકાય ને નિમિત્ત ચક્રવર્તિ વિગેરેને પણ નાશ કરી દે છે એજ કહ્યું છે है-संघाइयाणकज्जे चुन्निज्जा चक्कवट्टीमवि जीए० तीए लद्धीए जुओ लद्धि पुलाओ मुणेयव्वो' मासेवना पुसाने श्रय ४ीने गौतमस्वाभीसे प्रभुश्रीन से पूछयु छ है-पुलाए ण भंते कइविहे पन्नत्ते 8 सपन् પુલાકકેટલા પ્રકારના કહ્યા છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી એવું કહે છે કે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬