Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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छठा शतक : उद्देशक-३ वर्ष तक वह कर्म, अनुभव (वेदन) में आए बिना आत्मा के साथ अकिंचित्कर रहता है। जैसे—मोहनीय कर्म की ७० कोड़ाकोड़ी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति हैं, उसमें से ७० सौ (७०००) वर्ष तक तो वह कर्म यों ही अकिंचित्कर पड़ा रहता है। यही कर्म का अबाधाकाल है। उसके पश्चात् वह मोहनीयकर्म उदय में आता है, तो ७ हजार वर्ष कम ७० कोड़ाकोड़ी सागरोपम तक अपना फल भुगताता रहता है, उस काल को कर्मनिषेककाल कहते हैं। निष्कर्ष यह है - कर्म की सम्पूर्ण स्थिति में से अबाधाकाल को निकाल देने पर बाकी जितना काल बचता है, वह उसका निषेक (बाधा) काल है।
आयुष्यकर्म के निषेककाल और अबाधाकाल में विशेषता - सिर्फ आयुष्यकर्म का निषेक काल ३३ सागरोपम का और अबाधाकाल पूर्वकोटी का त्रिभागकाल है।
वेदनीयकर्म की स्थिति- जिस वेदनीयकर्म के बंध में कषाय कारण नहीं होता, केवल योग निमित्त है, वह वेदनीयकर्म बंध की अपेक्षा दो समय की स्थिति वाला है। वह प्रथम समय में बंधता है, दूसरे समय में वेदा जाता है; किन्तु सकषाय बंध की स्थिति की अपेक्षा वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति १२ मुहूर्त की होती
पांचवें से उन्नीसवें तक पन्द्रह द्वारों में उक्त विभिन्न विशिष्ट जीवों की अपेक्षा से कर्म-बन्धअबंध का निरूपण -
१२.[१] नाणावरणिजं णं भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधति, पुरिसो बंधति, नपुंसओ बंधति, णोइत्थी-नोपुरिसो-नोनपुंसओ बंधइ ?
गोयमा ! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ, नपुंसओ वि बंधई, नोइत्थी-नोपुरिसो-नोनपुंसओ सिय बंधइ, सिय नो बंधइ।
[१२-१ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बांधती है ? पुरुष बांधता है, अथवा नपुंसक बांधता है ? अथवा नो-स्त्री-नो-पुरुष-नो-नपुंसक (जो स्त्री, पुरुष या नपुंसक न हो, वह) बांधता है।
- [१२-१ उ.] गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म को स्त्री भी बांधती है, पुरुष भी बांधता है और नपुंसक भी बांधता है, परन्तु जो नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक होता है, वह कदाचित् बांधता है, कदाचित् नहीं बांधता है।
[२] एवं आउगवजओ सत्त कम्पप्पगडीओ। [१२-२] इस प्रकार आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सातों कर्मपकृतियों के विषय में समझना चाहिए। १३. आउगं णं भंते ! कम्मं कि इत्थी बंधई, पुरिसो बंधइ, नपुंसओ बंधइ ? पुच्छा०।। गोयमा ! इत्थी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, एवं तिण्णि वि भणियव्वा। नोइत्थी-नोपुरिसो
१. (क) पंचसंग्रह गा. ३१-३२, भा. आ. पृ. १७६
(ख) भगवतीसूत्र (टीकानुवाद टिप्पणयुक्त) खण्ड २, पृ. २७७-२७८