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पधारे और सम्वत १९६७क चातुर्मास वहां किया । वहां भगवानदास पंडितके पास कर्मग्रन्थकी टीका आदिका अभ्यास किया, पश्चात् गुरुमहाराजके पास विशनगरमें जाकर जगदीश्वर पंडितके पास न्यायका अभ्यास किया । फिर गुरुमहाराजके साथ वीरमगाम पधारे । थोडे समय बाद गुरुमहाराजकी आज्ञासे अहमदावाद पधारे तथा
आत्मप्रबोध ग्रन्थपर उपदेश देना प्रारंभ कर सम्बत् १९६८का चातुर्मास वहां किया । दीक्षादान
__ चातुर्मासकी समाप्तिपर सम्वत् १९६९के कार्तिक कृष्णा ४ के दिन रतलामनिवासी मीश्रीमल चेनाजी पोरवालको अहमदाबादराजपुरमै भागवती दीक्षा प्रदान कर अपने शिष्यरूपसे शोभित किया
और दीक्षितका नाम मुनिश्री मानविनयमी रक्खा । तत्पश्चात् वहाँसे विहार कर वे वीरमगाम पधारे । कुछ काल तक वहां बिराज कर बादमें राधनपुरनिवासी कानजी भूरदासको भागवती दीक्षा देने निमित्त अहमदावादको विहार किया और वहांसे थलथर जाकर कानजी मूरदासको महा वदि १० के दिन अपने नामकी दीक्षा प्रदान कर दीक्षितका नाम मुनिश्री कल्याणविजयजी रक्खा । तत्पश्चात् वहांसे विहार कर उन्होंने संखेश्वर पार्श्वनाथकी यात्रा करते हुए राधनपुरमें पदार्पण किया । गणिपद और पंन्यासपद__सम्वत् १९६९ के चातुर्मासमें सुयगडांग, स्थानांग, समवायांग, तथा भगवती सूत्रके योगवहनकी क्रिया की और नैयायिक पंडितके पास तर्कसंग्रहकी नीलकंठ टीकाका अभ्यास किया । तत्पश्चात् पूज्य पंन्यासजी महाराजश्री भावविजयजी गणिवर तथा पूज्य पावास