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साधना के सफल पचास वर्ष । फकीरचन्द मेहता, सौ० पारसरानी मेहता
जब साधना की डगर पर साधक अपने चरण बढ़ा देता है, दढ़ संकल्प, असीम प्रास्था और तपश्चर्या रूपी उत्सर्ग के प्रति गहन निष्ठा से वैराग्य की ओर उन्मुख होता है। उस दीक्षा को वरण करता है, जिसे सिद्ध पुरुषों ने, तीर्थंकरों ने, त्यागियों ने अपनाया। उसी दिन क्या ! उसी क्षण से ही वह व्यक्ति, वह मानस चाहे वह महिला हो, चाहे पुरुष, जन-२ के लिए प्रेरणास्रोत बन जाता है और संसार के लिए वंदनीय, पूज्यनीय एवं अभिनन्दनीय हो जाता है।
इस प्रकार महासती श्री उमरावकंवरजी की साधना के सुदीर्घ पचास वर्ष की सार्थकता को शब्दों में बाँधना संभव नहीं है।
मध्यात्मयोगिनी महासती उमरावकंवरजी 'अर्चना' परम विदुषी तो हैं ही, अनेक ग्रन्थों की रचना करके, अपने सारगभित व्याख्यानों द्वारा लोगों के मानस में सद्विचार और सदगुणों के दीप भी जलाये हैं। अभी-२ अपने उज्जैन वर्षावास के दौरान लगभग दोसौ बाल उपयोगी निबन्ध व कहानियां लिखी हैं। जो छोटे हों या बड़े, सबके लिये समान रूप से उपयोगी हैं।
परन्तु उनकी सबसे अधिक विशेषता जिसने प्रभावित किया है, वह यह कि उनकी सौम्यता और शालीनता कभी खंडित होते नहीं देखी। वे स्वयं उच्च कोटि की साधिका तो हैं ही परन्तु अन्य साधकगण चाहे वे किसी भी धर्म या सम्प्रदाय विशेष के हों, वे सम्पूर्ण आदरभाव से उनसे चर्चा के लिए तत्पर रहती हैं। उनकी यह जिज्ञासु और सत्यशोधक वृत्ति उनके हृदय की उदारता और विशालता का दिग्दर्शन कराती है। जो भी उनके सान्निध्य में, सत्संग में निकट पाता है, उनकी छाप गहरी होती जाती है ।
जिस प्रकार ब्राह्मी और सुन्दरी दो नाम साथ-साथ ही जिह्वा पर पाते हैं, वैसे ही घोर तपस्विनी, शांतस्वभावो महासती श्री उम्मेदकुंवरजी आपकी ऐसी प्रतिछाया हैं कि 'अर्चनाजी' के स्मरण के साथ उनका स्मरण अवश्य ही आता है। श्री उमरावकंवरजी म. का वात्सल्यपूर्ण प्रभामण्डल अपनी शिष्या परिवार को आच्छादित किये रहता है और उस आभा से प्रकाश पाकर साध्वी सुप्रभाजी व अन्य सतीमंडल अपनी शिक्षा और साधना में उत्तरोत्तर प्रगति कर रहा है।
महासतीजी के अपरोक्ष प्रभाव का एक चित्रण है, कि इन्दौर नगर में आपका चातुर्मास तय हुआ।
इन्दौर नगर के अब तक के इतिहास में 'महावीर भवन' में ठहरकर किसी भी साध्वी समुदाय का चातुर्मास नहीं हुआ था। परन्तु इसे एक अद्भुत योग कहेंगे कि वह दुविधापूर्ण
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
प्रथम खण्ड | ३५
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