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संख्या १]
तलाक़
चीन में पति अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है, पर पर जिन बालक-बालिकाओं का विवाह बालकों के माताउसे वहाँ की कानूनी पुस्तक में दिये हुए व्यभिचार आदि पिता दुलार के मारे कर देते हैं उनको तो विवाह दुखान्त दोपों को साबित करना ज़रूरी है। चीनी स्त्रियाँ किसी भी होने पर अपने पूज्यवरों की अक्लमन्दी पर सारा जीवन दशा में पुरुषों को तलाक़ नहीं दे सकतीं। जापान में भी रोना पड़ता है और भाग्य के सिर इसका दोष मढ़कर यही नियम था। पर १८१३ में कानून में संशोधन हुश्रा अपने जी को किसी प्रकार शान्त करना पड़ता है। समाज
और वहाँ के न्यायालय ने स्त्री और पुरुष के समान की इसी अव्यवस्था को बदलने के लिए तलाक की आवअधिकार की माँग को स्वीकार करके स्त्रियों को भी तलाक श्यकता है। देने का अधिकार दे दिया। इसका फल यह हुआ कि उदाहरण के लिए मैं योरप के दो देशों ग्रीस और तलाकों की संख्या उस देश में बहुत कम हो गई। रोम को लेता हूँ। हिन्दुओं के समान इन देशों के निवायहूदियों के समान मुसलमानों में स्त्रियाँ अपने पति को सियों में भी विवाह एक स्थायी सम्बन्ध माना जाता था। कभी तलाक़ नहीं दे सकतीं।
ग्रीस में पहले तलाक का कोई नाम भी नहीं जानता था । हिन्दुनों की दुनिया तो काशी के समान सबसे न्यारी पर धीरे धीरे सामाजिक माँग की अवहेलना नहीं की जा ही है। उनकी विवाह-पद्धति के अनुसार एक दफ़ा सात सकी और तलाक ग्रीस में रोज़मर्रा की मामली-सी बात हो बार चक्कर कर लेने पर आजीवन कालेपानी की सज़ा गई । पुरुष जब चाहे अपनी स्त्री को बिना किसी प्रकार मिल जाती है। शादी वैसे तो लाटरी के समान एक का दोष लगाये छोड़ सकता था। हाँ, उसे ऐसा करने के जोखिम-सी है, पर हिन्दुओं के विवाह में तो जुआरी को पूर्व अपनी स्त्री को उसके पिता के घर से पाये हुए दहेज़ के इतना भी मौका नहीं दिया जाता कि वह हारने पर इस साथ लौटाल देना पड़ता था। पत्नी को तलाक के लिए बला से तोबा कर सके । एक स्त्री व्यभिचार की इल्लत में अदालत में कारण-राहित प्रार्थनापत्र देना पड़ता था। दोषी ठहराई जाने पर जाति से और घर से निकाली जाने पर रोम में भी विवाह एक प्रकार से स्थायी ही था। पति को भी पति से मुक्ति नहीं पा सकती। धर्म और जाति का परिवर्तन कुछ ऐसे अधिकार प्राप्त थे जिनके द्वारा वह अपनी पत्नी भी हिन्दुओं की स्थायी वैवाहिक शृङ्खला से छुटकारा नहीं को छोड़ सकता था, पर उसके इन अधिकारों पर जनता दिला सकते । एक ओर तो बिना देखे-सुने दो प्राणी- का नियंत्रण रहता था। यही कारण था कि रोम में पाँच स्त्री-पुरुष समाज के कठोर नियम में सदा के लिए जकड़ सौ वर्ष तक जनता की सम्मति की अवहेलना करके किसी दिये जाते हैं और दूसरी ओर उन्हें कभी यह स्वतंत्रता भी को तलाक देने का साहस नहीं हुआ। पर बाद को सभ्यनहीं दी जाती कि वे अपने माता-पिता की ग़लतियों के समाज में तलाक का प्रचार हो गया और इतना अधिक शिकार बनने से अपने को रोक सकें। जब तक दोनों- हो गया कि उस समय की सभ्य स्त्रियाँ बीते हुए वर्षों की स्त्री-पुरुषों के लिए कानून तलाक की व्यवस्था नहीं कर गिनती अपने छोड़े हुए पतियों से करने लगीं। देता तब तक यदि कोई माता-पिता अपने प्रिय सन्तानों को तलाक के विरोधी जो दलीलें पेश करते हैं उनमें इस लाटरी में फँसाने का उद्योग करते हैं तो मैं तो उनसे कोई तथ्य नहीं है। उदाहरण के लिए वे बच्चों के हित यही कहूँगा कि वे अपने बच्चों के शुभैषी नहीं, उनके की आड़ लेकर इस प्रश्न को निस्सार साबित करना चाहते शत्रु हैं। जो बालक-बालिकायें अपना विवाह अपने हैं । तलाक देने से बालकों के हित पर कोई विशेष आघात इच्छानुसार करते हैं उनके लिए तो मुझे कुछ नहीं कहना पहुँचता है, इसे मैं स्वीकार करने को तैयार नहीं हूँ। मैं है। वे समझबूझकर यदि इस प्रकार का जुआ खेलते हैं तो उस गंदे वातावरण में जहाँ माता-पिता के नित्य तो ठीक है। सुख या दुख जो भी हाथ लगे उसमें उन्हें झगड़े होते हैं, बालकों के नवीन मस्तिष्क खराब हो जाने सन्तोष ही करना चाहिए, क्योंकि उसके वे ज़िम्मेदार हैं। की अधिक संभावना पाता हूँ और मेरा तो विश्वास है कि
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