________________
जागरिका
वान् महावीर ने कहा था सम्यक्दर्शन । सम्यक्दर्शन का पहला क्षण जागरण का पहला क्षण होता है । या यों कहें कि जागरण का पहला क्षण ही सम्यक्दर्शन का पहला क्षण है। तीसरी है वीतरागता की चेतना । जागरण के आदि क्षण से हमारी यात्रा शुरू होती है और वीतरागता के क्षण तक पहुंचकर हमारी यात्रा पूर्ण हो जाती है ।
प्रश्न अवस्थाओं का नहीं है। प्रश्न यह है कि यह जागृति प्राप्त कैसे हो ? जागृति की प्रक्रिया क्या है, यह बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। इस प्रक्रिया पर हमें विचार करना है । व्यवहार की भाषा में कहते हैं कि तत्त्व का हमें बोध हुआ। तत्त्व को हमने जानने का प्रयत्न किया । हमारा जागरण का क्षण शुरू हो जाता है किन्तु साधना के मार्ग में इसका मूल्य नहीं है। बहुत छोटी बात है यह । साधना के मार्ग में जागृति की प्रक्रिया कहां से शुरू होती है, इस पर हमें ध्यान देना होगा। __यह हमारा शरीर है । इस शरीर में अनेक स्थल हैं। शरीर के मुख्यत: तीन भाग होते हैं-ऊर्ध्व, अधो और मध्य । नाभि से ऊपर का जो भाग है, वह ऊर्ध्वलोक कहलाता है । नाभि का क्षेत्र मध्यलोक कहलाता है। नाभि के नीचे का भाग अधोलोक कहलाता है । ये तीन लोक हमारे शरीर में हैं।
(हमारी प्राणशक्ति और श्वासशक्ति अधोलोक से शुरू होती है। हमारे पृष्ठरज्जु का जो पिछला सिरा है, वहां से प्राणशक्ति का प्रवाह होता है । प्राणशक्ति, हमारी चेतना को शक्ति, हमारी ज्ञान की शक्ति और हमारी इड़ा की शक्ति-ये सारी की सारी वहां से शुरू होती हैं। उसका प्रवाह यदि ऊपर की ओर जाता है तो चेतना का विकास होता है। उसका प्रवाह यदि नीचे की ओर जाता है तो चेतना का आच्छादन होता है, आवरण होता है। अब हमें करना क्या है; हमें अपनी प्राणशक्ति को ऊपर की ओर ले जाना है। ऊपर की ओर ले जाने पर ही हमारे सम्यक्त्व का या हमारे जागरण का विकास हो सकता है।)
नाभि से बारह अंगुल ऊपर एक चक्र है। उसका नाम है मनःचक्र । उस मनःचक्र में जब हमारी प्राणशक्ति का प्रवाह हो जाता है तो हमारे जागरण का पहला क्षण प्रकट होता है । मनःचक्र की आठ पंखुड़ियां हैं। उस कणिका पर जब हमारी चेतना की ऊर्मियों का प्रवाह केन्द्रित होता है, तब जागृति अभिव्यक्ति होती है, प्रकट होती है, या सम्यक्त्व प्रकट होता है। उससे पहले सम्यक्त्व प्रकट नहीं होता।