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मनोविज्ञान और चरित्र - विकास
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पंचांग वंदना करेगे और तमिलनाडु की शैव परम्परा में जिसने जन्म लिया है, वह नमस्कार करेगा अपने देवता को तो अष्टांग दण्डवत् करेगा । हर आदमी पर अपनी परम्परा का प्रभाव होता है और मनुष्य उसे सीखता है, उसे ग्रहण करता है ।
चरित्र-निर्माण का एक हेतु है - पर्यावरण । जिस प्रकार का वातावरण हमारे आस-पास निरन्तर बना रहता है, उसका भी असर पड़ता है । आप अपने बच्चे को धूम्रपान करने वाले, निंदा-चुगली करने वाले आदमियों के पास छोड़ दीजिए, वह धूम्रपान करना सीख जाएगा, निन्दा चुगली करना सीख जाएगा । हम लोगों ने दो-ढाई वर्ष के बच्चे से इतनी अभद्र गाली सुनी कि हम कल्पना भी नहीं करते कि वह इतनी गन्दी गाली वह दे सकता है । मन जिज्ञासा हुई । हमने उसके माता-पिता से पूछा कि यह बच्चा ऐसी गाली कैसे दे सकता है ? उन्होंने बताया कि हमारे पास तो यह कम रहता है, नौकरों के पास अधिक रहता है । उन्हीं के पास रहता है, उन्हीं के साथ खेलता है । ज्यादा सम्पर्क उन्हीं का रहता है । तो वे जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग करते हैं, वैसा ही प्रयोग यह करने लग गया । यह सारा वातावरण का प्रभाव है । जैसा वातावरण होता है, उसी के अनुसार मनुष्य अपने को बनाता है ।
चरित्र-निर्माण का एक हेतु है— शरीर रचना | शरीर रचना का भी स्वभाव पर असर पड़ता है । स्वभाव- निर्माण में उसका बहुत बड़ा योग रहता है । जिस व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी सीधी नहीं है, टेढ़ी -बांकी है, जटिल है, उसके बहुत अच्छे स्वभाव की कल्पना नहीं कर सकते । शरीर के और भी ऐसे केन्द्र और स्थल हैं, जिनमें कोई त्रुटि होती है तो स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है, बहुत बड़ा परिवर्तन आ जाता है ।
ये चार बातें हैं । इनके आधार पर मनोविज्ञान ने मनुष्य के चरित्र का विश्लेषण किया है । मैं सोचता हूं कि धार्मिक लोग हैं, धर्म में विश्वास करने वाले हैं, विवेक चेतना की भूमिका पर सोचने और काम करने वाले हैं, फिर भी हम इससे अज्ञात न रहें कि मनुष्य के स्वभाव पर किन-किन बातों का प्रभाव पड़ता है । उन सारी स्थितियों को ठीक समझकर और उनका मूल्यांकन कर यदि हम चरित्र-निर्माण की ओर ध्यान दें तो अधिक लाभान्वित हो सकते. हैं ।