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सामायिक समाधि
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गया जहां उसे कोई भी उपाय विचलित नहीं कर सकता। पूर्णसिद्धि तीन घंटे से प्राप्त होती है । तीन घंटे तक इस प्रकार की सामायिक करें और उस समभाव में एकाग्र हो जाएं उस क्रिया से समता की सिद्धि होगी। यह बहुत कठिन प्रक्रिया है । यदि बड़े लक्ष्य को प्राप्त करना है तो उसकी प्राप्ति का साधन छोटा नहीं हो सकता।।
दूसरी बात है-मंत्र के द्वारा सिद्धि । मंत्र की सिद्धि के लिए भी वही बात है । मन्त्र का जप भी तीन घण्टे तक पहुंच जाए तो सिद्धि हो सकती है।
तीसरी बात है-औषधि के द्वारा सिद्धि । यह सरल है । वनस्पति जगत् का भी बड़ा चमत्कार है । इसके द्वारा भी सिद्धि होती है । अभी तक वनस्पति का उतना मर्म हमें ज्ञात नहीं है । हमें ही क्या, विश्व के बहुत लोगों को भी यह ज्ञात नहीं है कि किस प्रकार की वनस्पतियों के द्वारा उन सिद्धियों को प्राप्त किया जा सकता है। ग्रंथों में अनेक प्रकार के वर्णन मिलते हैं पर जब तक उनका ठीक प्रयोग न हो जाए, परीक्षण न कर लिया जाए, तब तक यही मानना पड़ेगा कि ग्रन्थों में अतिशयोक्तियां बहुत हैं, प्रयोग और परीक्षण के बाद ही निष्कर्ष सामने आ सकता है।
ये तीन साधन हैं । वनस्पति के विषय में हमारी जानकारी अल्प है, इसलिए इसे छोड़ दें तो दो ही साधन रह जाते हैं-एक क्रिया का और दूसरा मंत्र का । इन दोनों साधनों के द्वारा समभाव का अभ्यास किया जा सकता है। मैं यह नहीं कहता कि आप एक साथ तीन घंटे का अभ्यास या एक घंटे का अभ्यास कर लें। प्रारम्भ में आप मन को निर्विकल्प करने के संकल्प से बैठे। आधा या एक मिनट तक मन में कोई विकल्प न आए-ऐसा अभ्यास प्रारम्भ करें। उस अभ्यास-दशा में भी आप स्वयं अनुभव करेंगे कि उस समय आपके मन में सुख-दुःख का कोई भाव नहीं है । बाहर की घटना का कोई प्रभाव नहीं है। यदि पांच मिनट तक मन खाली रह सकता हो, कोई विकल्प न आता हो तो बाहर में कुछ भी घटित क्यों न हो, आप पर उसका असर नहीं होगा। यह स्थिति होगी निरोध की कि इधर से किवाड़ बन्द कर दिया, उधर क्या हो रहा है कुछ भी पता नहीं चलेगा।
कुंभक में यह स्थिति घटित होती है । आप कुंभक के द्वारा या बिना कुंभक किए ही, अभ्यास के द्वारा मन को खाली कर दें, सुना कर दें। चलते हुए भी ऐसा कर सकते हैं । मन को खाली कर आप कहीं भी जाएं, वहां क्या