Book Title: Mahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Author(s): Mahapragya Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 297
________________ २८४ महावीर की साधना का रहस्य यदि परिभाषा-भेद को मिटा दें तो तत्त्वतः दोनों एक हो जाएंगे इस दृष्टिकोण से उन्होंने पतंजलि के शब्दों के साथ तुलना करने के लिए नए शब्दों को गढ़ा और दोनों में सामंजस्य प्रदर्शित किया । . विशुद्धिमग्ग एवं अन्य योग सम्बन्धी बौद्ध सूत्रों तथा पतंजलि के योगदर्शन के सूत्रों में अद्भुत साम्य देखकर आश्चर्य होता है । यह पर्याप्त अनुसंधान के बाद ही कहा जा सकता है कि बौद्ध ने पतंजलि का अनुसरण किया या पतंजलि ने बौद्ध का ? किन्तु दोनों में से किसी ने एक का अनुसरण अवश्य ही किया है । अथवा यह भी हो सकता है कि श्रमणों की सामान्य साधना-पद्धति के जो सूत्र थे उनका बौद्ध ने पालि में और पतंजलि ने संस्कृत में संकलन किया । हरिभद्र सूरी ने पतंजलि का शब्दशः अनुसरण नहीं किया किन्तु तात्त्विक एकता का प्रतिपादन किया । हरिभद्र सूरी से पहले वीर निर्माण तेरहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक ध्यान की वही मौलिक पद्धति प्रतिपादित होती रही जो महावीर के युग में प्रचलित थी। उसके रहस्य विस्मृत हो गए थे और विस्तार कम हो गया था । पर जो चल रहा था, उसका नया संस्करण नहीं हुआ था। हरिभद्र सूरी ने जैन साधना-पद्धति का नया संस्करण कर दिया । यह साधना पद्धति के संक्रमण का प्रथम बिदु है। • जैन साधना-पद्धति की सौलिक धारा और आचार्य हरिभद्र सूरी द्वारा प्रस्तुत नयी धारा में अन्तर क्या है ? ___ इस नयी धारा के समागम से कायोत्सर्ग और विपश्यना की मूलधारा गौण हो गई। निर्जरा का लक्ष्य पहले ही कम हो चुका था, विद्या और मंत्र की साधना के कारण वह और भी कम पड़ गया । हरिभद्र सूरी ने लिखा कि धर्म का समूचा व्यापार योग है । इस परिभाषा के अनुसार प्रतिक्रमण करना भी योग है, स्वाध्याय करना भी योग है और आहार करना भी योग है। यह बात ठीक है, किन्तु लम्बे समय तक ध्यान की सूक्ष्मताओं में जीने की जो बात थी उसका आकर्षण कम हो गया। सब प्रवृत्तियों में योग की भावना आ जाने के कारण यह माना जाने लगा कि साधु अप्रमत्त भाव से जो भी प्रवृत्ति करता है वह सब योग है । इसे प्रथम भूमिका का ध्यान माना जा सकता है किन्तु ध्यान की अग्रिम भूमिकाओं का स्पर्श करने के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है। हरिभद्र सूरी की उक्त परिभाषा आपत्तिजनक नहीं है, फिर भी उससे एक परिवर्तन जरूर आया कि ध्यान की सघनता योग की व्यापकता में विरल हो गई।

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