Book Title: Mahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Author(s): Mahapragya Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 302
________________ जैन परम्परा में ध्यान : एक ऐतिहासिक विश्लेषण २८९ आचार्य सोमदेव के अनुसार धर्म्य और शुल्क ध्यान लोकोत्तर ध्यान हैं । उन्होंने 'अहम्' के जप का भी लोकोत्तर साधना में उल्लेख किया है । लौकिक ध्यान में हठयोग की पद्धति का निरूपण है । आश्चर्य है कि कुछ जैन लेखकों के सामने यह विभाग स्पष्ट नहीं रहा। उन्होंने पिंडस्थ आदि ध्यानों का महावीर के द्वारा प्रतिपादित होने का उल्लेख कर दिया। इस उल्लेख के पीछे नई स्वीकृति को पुष्ट करने या ध्यान की विकासशील परम्परा का परिचय न होने का कारण ही प्रतीत होता है । आचार्य शुभचन्द्र और हेमचन्द्र-दोनों आचार्यों ने प्राणायाम, कालज्ञान और परकाय-प्रवेश का विस्तार से वर्णन किया है । यह सब उत्तरकालीन समावेश है। पिंडस्थ ध्यान संस्थान-विचय ध्यान का एक प्रकार हो सकता है। इसलिए पिंडस्थ ध्यान को प्राचीन परम्परा में संस्थान-विचय के रूप में खोजा जा सकता है। किंतु पिंडस्थ आदि ध्यान-चतुष्टय का वर्गीकरण जैन परम्परा में नहीं मिलता। उसका मूल स्रोत संभवतः तंत्र-शास्त्र है। 'गुरु गीता', 'महेश्वर तंत्र' आदि अनेक ग्रन्थों में पिंडस्थ आदि ध्यान-चतुष्टय का वर्णन मिलता है। तंत्रशास्त्र में बतलाया गया है कि जो पिंडस्थ आदि ध्यानों को नहीं जानता वह वास्तव में गुरु ही नहीं होता। गुरु को शक्तिशाली होना चाहिए । शक्ति के लिए सिद्धि प्राप्त करना जरूरी है और सिद्धि-प्राप्ति के लिए पदस्थ ध्यान जरूरी है। इस जरूरत ने पदस्थ ध्यान को सर्वाधिक महत्त्व प्राप्त कराया। जैन संघ का मध्यवर्ती एक हजार वर्ष का इतिहास मंत्र-सिद्ध आचार्यों का इतिहास है । इस अवधि में विशुद्ध अध्यात्म योगी मुनियों को खोजना पड़ेगा और मंत्रयोगी मुनि बड़ी सुलभता से प्राप्त होंगे। हरिभद्र सूरी से लेकर जिनविजय सूरी तक के प्रभावक आचार्यों का वर्णन करने वाला 'प्रभावक चरित्र' इस बात का साक्ष्य है। प्राणायाम योगदर्शन से, पिंडस्थ आदि ध्यान-चतुष्टय तंत्र-शास्त्र से तथा पार्थिव आदि धारणा-चतुष्टय और चक्रों पर ध्यान करना आदि हठयोग से जैन साधना-पद्धति में लिए गए । इस प्रकार विक्रम की आठवीं शताब्दी मे जैन साधना-पद्धति में अन्य साधना-पद्धतियों के तत्त्वों का समावेश प्रारम्भ हुआ और क्रमशः वह बढ़ता चला गया । इसीलिए आज यह प्रश्न पूछा जा रहा है कि जैन परम्परा की मौलिक ध्यान-पद्धति क्या है ? और इसीलिए इस प्रश्न का उत्तर देना आज सरल नहीं है । बर्मा में ध्यान की एक पद्धति

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