Book Title: Mahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Author(s): Mahapragya Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 312
________________ २६६ जैन परम्परा में ध्यान : एक ऐतिहासिक विश्लेषण • क्या आज ध्यान की आवश्यकता पहले से अधिक है ? निश्चयनय (वास्तविकता) की दृष्टि से ध्यान की आवश्यकता जितनी पहले थी उतनी ही आज है । व्यवहार की दृष्टि से आज ध्यान की आवश्यकता पहले से अधिक है । जब प्रवृत्ति की बहुलता होती है तब निवृत्ति की अधिकता होती है । आज का युग प्रवृत्ति-बहुल युग है। इसलिए संतुलन की दृष्टि से निवृत्ति की अपेक्षा अधिक अनुभव हो रही है। यह निवृत्ति अकर्मण्यता नहीं है किन्तु एक विशेष प्रकार की कर्मण्यता है, जो मानवीय मन की अनेक समस्याओं का समाधान दे सकती है। मानसिक समस्याओं के समाधान के लिए ध्यान की अपेक्षा है । इस अपेक्षा की पूर्ति में जैन परम्परा का महत्त्वपूर्ण योगदान हो, यह मेरी अपेक्षा है ।

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