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प्राणायाम : एक ऐतिहासिक विश्लेषण
महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में अष्टांग योग का व्यवस्थित निरूपण है । अष्टांगयोग में चौथा अंग प्राणायाम है। जैन आगमों में योग के सात अंग नाम-भेद से प्राप्त हैं । जैसे
पातंजल योगसूत्र-१. यम, २. नियम, ३. आसन, ४. प्रत्याहार, ५. धारणा, ६. ध्यान, ७. समाधि ।
जैन आगम-१. महाव्रत, २. नियम, ३. स्थानयोग (कायक्लेश), ४. प्रतिसंलीनता, ५. भावना, ६. धर्मध्यान, ७. शुक्लध्यान ।
यहां एक विमर्श होता है कि जब योग के सातों अंग प्राप्त होते हैं तो केवल एक अंग अप्राप्त क्यों ? प्राणायाम से वायु के जीवों की हिंसा की संभावना है, इस दृष्टि से उसे अस्वीकार किया गया या कोई दूसरा कारण हो सकता है ? प्राणायाम का अर्थ तीव्रता से वायु का रेचन करना ही नहीं है । तीव्र प्राणायाम का निषेध जीव-हिंसा की दृष्टि से किया गया है, किन्तु सूक्ष्म प्राणायाम का निषेध नहीं है । आवश्यक नियुक्ति (विक्रम की ५-६ शती) में उच्छ्वास के निरोध का निषेध किया गया है। उसके आधार पर आचार्य हेमचंद्र और उपाध्याय यशोविजयजी ने प्राणायाम को वर्जित माना है । आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार प्राणायाम से मन शान्त नहीं होता, किन्तु विलुप्त होता
१. योग सूत्र २।२६ : __ यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोष्टावङ्गानि । २. आवश्यक नियुक्ति; आवश्यक चूणि १५२४ :
ततश्च सूक्ष्मोच्छ्वासमेव यतनया मुंचति, नोल्वणं मा भूत सत्वघातः । ३. आवश्यक नियुक्ति, आवश्यकनियुक्ति अवणि, गा० १५२४ । ४. योगशास्त्र (क) ६।४ : (क) तन्नाप्नोति मनः स्वास्थ्य, प्राणायामः कथितम् ।
प्राणस्यायमने पीडा, तस्यां स्याच्चित्तविप्लवः ।। (ख) वही, ५॥५:
पूरणे कुम्भने चैव, रेचने च परिश्रमः । चित्त संक्लेशकरणात्, मुक्तेः प्रत्यूहकारणम् ॥