Book Title: Mahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Author(s): Mahapragya Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 296
________________ जैन परम्परा में ध्यान : एक ऐतिहासिक विश्लेषण २८३ विक्रम की आठवीं शताब्दी में हरिभद्र सूरी हुए। वे बहुत बड़े ज्ञानी और बहुत बड़े योगी थे । उन्होंने योग पर अनेक ग्रन्थ लिखे, जैसे – योगबिन्दु, योगदृष्टि समुच्चय, योगविशिका, योगदर्शन, षोडशक आदि । उनके योगग्रंथों ने जैन परम्परा में योग की नई धारा प्रवाहित की । ध्यान-पद्धति के सूत्र बचे थे । उनके रहस्य विस्मृत हो गए थे । महर्षि पतंजलि के योग-दर्शन की पद्धति प्रसार पा रही थी। उसकी अपनी कुछ विशेषताएं हैं १. वह बहुत व्यवस्थित ग्रन्थ है । २. बहुत स्पष्ट और सरल । ३. निष्पक्ष भाव से लिखा हुआ और प्रारम्भ से अंत तक की साधना का एक साथ संकलन । इन कुछ विशेषताओं के कारण वह लोकप्रिय होता चला गया । उसकी पद्धतियां साधकों को आकर्षित करती गईं । यह सांख्य दर्शन की साधना पद्धति STI प्रतिनिधि ग्रन्थ है । प्राचीन काल में सांख्य दर्शन श्रमण परम्परा का एक अंग था । श्रमकों के पांच मुख्य दर्शन थे— जैन, बौद्ध, आजीवक, परिव्राजक, और तापस 'परिव्राजक' सांख्य दर्शन का सूचक है । हरिभद्र सूरी का दृष्टिकोण अनेकान्त-प्रधान था । उन्होंने अपने 'शास्त्रवार्ता समुच्चय' में विभिन्न दर्शनों का समन्वय किया । वैसे ही अपने योगग्रन्थों में विभिन्न साधना पद्धतियों का समन्वय किया । इस समन्वय में उन्होंने जैन साधना पद्धति के सूत्रों (चौदह गुणस्थानों) का महर्षि पंतजलि तथा अन्य यौगिक पद्धतियों का तुलनात्मक स्वरूप प्रस्तुत किया और अपने सर्वग्राही दृष्टिकोण से उन्हें स्वीकृत कर जैन साधना पद्धति का नया रूप दिया । पंतजलि ने अष्टांग योग की पद्धति बतलाई । आचार्य हरिभद्र ने 'योगदृष्टि समुच्चय' में आठ दृष्टियों का निरूपण किया । और उनकी अष्टांग योग से तुलना की । पतंजलि के योगदर्शन में समाधि के दो प्रकार निरूपित हैंसम्प्रज्ञात समाधि और असम्प्रज्ञात समाधि । हरिभद्र ने योग के पांच प्रकार बतलाए - अध्यात्म, भावना, ध्यान, समता और वृत्तिसंक्षय । प्रथम चार प्रकारों की तुलना संप्रज्ञात समाधि से और अंतिम प्रकार की तुलना असंप्रज्ञात समाधि से की । इस प्रकार उन्होंने पतंजलि के योगदर्शन की परिभाषाओं का जैनीकरण किया । दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिए कि उन्होंने यह बतलाने का प्रयत्न किया कि साधना पद्धतियों में केवल परिभाषाओं का अन्तर है । तत्त्वतः कोई अन्तर नहीं है । जैन साधना पद्धति और पतंजलि की साधनापद्धति के तत्त्वों में कोई अन्तर नहीं है, केवल परिभाषाओं का अन्तर है ।

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