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ज्ञान समाधि
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ठीक से नहीं समझते हैं तो कभी हम ज्ञान को कोसते हैं, कभी शास्त्रों को कोसते हैं, कभी पुस्तकों को कोसते हैं, गालियां देते हैं, उनके लिए ऊटपटांग बातें करते हैं। यह दोष उन शास्त्रों का नहीं, उन ग्रंथों का नहीं, उन पुस्तकों का नहीं, पुस्तक लिखने वाले ज्ञानी पुरुषों का नहीं, यह हमारा ही दोष है। हम संवेदन की धारा में जाकर ज्ञान पर तीव्र प्रहार करने लग जाते हैं । यह बहुत बड़ी आत्म-भ्रांति है। यह नहीं होना चाहिए। ज्ञान होना चाहिए। वह ज्ञान चाहे अन्तर् आत्मा से प्रकट हो और चाहे बाहर से स्वीकृत या गृहीत हो, वह अन्तर्मुखता का कारण बनता है । जब कोरा ज्ञान है तो हमारी कोई कठिनाई नहीं है । हमारी सावधानी सिर्फ उस ओर होनी चाहिए कि यमुना के स्वच्छ पानी में दिल्ली का गंदा नाला न पड़ जाए । इतनी-सी सावधानी बरतनी चाहिए । यदि गंदा नाला पड़ता है तो ज्ञान स्वच्छ नहीं रहा, ज्ञान ही नहीं रहा, पानी स्वच्छ नहीं रहा, यमुना का पानी ही नहीं रहा । वह तो दिल्ली का पानी हो गया, यमुना का पानी जहां यमुना का पानी है, गंगा का पानी जहां गंगा का पानी है, वहां कोई कठिनाई नहीं है। जब गंदा नाला इसमें पड़ता है तब गंदगी आ जाती है। यह गंदगी है संवेदन की। संवेदन की गंदगी को साफ पानी से अलग करते रहें तो ज्ञान की कोई कठिनाई नहीं रहती। ज्ञान समाधि वास्तव में समाधि का सबसे बड़ा सूत्र है । आदमी को यदि समाधि मिल सकती है तो ज्ञान के द्वारा ही उच्चकोटि की समाधि प्राप्त हो सकती है । और-और क्षेत्रों में बहुत खतरा है। प्राणायाम से लाभ है तो खतरा भी बहुत है । आसन करने में लाभ है तो खतरे भी हैं । थोड़ी-सी भूल बड़ा खतरा पैदा कर देती है । एकाग्रता करने में भी खतरा है। यदि इसमें अधिक तनाव आ गया, ऊष्मा अधिक बढ़ गयी तो दिमाग पागल जैसा बन जाता है। आदमी पागल हो जाता है। रोने-चिल्लाने लग जाता है । ऐसा लगने लगता है कि मानो उसे भूत लग गया हो । इस प्रकार हर बात में कठिनाई है। सबसे निरपवाद और निर्विघ्न कोई समाधि है तो वह है ज्ञान समाधि । मैंने पहले ही कहा था कि यह जितनी निर्विघ्न है उतनी ही कठिनतम । इतना जागरूक रहना और राग-द्वेष की धारा को ज्ञान के साथ न जोड़ना, बहुत ही कठिन साधना है । इस साधना के लिए, ज्ञान की समाधि के लिए, हमें द्रष्टाभाव का अभ्यास करना होता है । वेदान्त की भाषा में कहूं तो द्रष्टाभाव और जैन परिभाषा में कहूं तो शुद्ध उपयोग अवस्था । हमारी चेतना का उपयोग बिलकुल शुद्ध रहे। उसमें कोई भी अशुद्धता न