Book Title: Mahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Author(s): Mahapragya Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 274
________________ चारित्र समाधि २६१ दुनिया में कभी - कभी ऐसे प्रसंग घटित होते हैं और किसी-किसी व्यक्ति के साथ । महावीर की साधना पद्धति ठीक वैसी ही है जैसी कि राणा प्रताप की स्वतंत्रता की लड़ाई थी । महाराणा प्रवाप के पास न हथियार थे, न सैनिक थे, न खाने को रोटी थी, न रहने को मकान था, फिर भी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते रहे, झुके नहीं । इसी प्रकार की लड़ाई महावीर ने लड़ी, केवल आत्मा के सहारे । उन्होंने न हारमोन्स की रासायनिक प्रक्रिया को बदलने का प्रयत्न किया और न शरीर के चक्रों का या प्राणायाम का सहारा लिया । उन्होंने केवल आत्मा के विवेक के सहारे, प्रज्वलित पराक्रम के सहारे बंधनों को तोड़ने का प्रयत्न किया, गांठ को खोलने का प्रयत्न किया । इस संदर्भ में देखें तो यह गर्वोक्ति नहीं, बहुत यथार्थ है कि जहेत्थ मए संधि भोसिए, एवमन्नत्य दुज्झोसिए । इस प्रकार चारित्र की समाधि में खाली करने की बात और निग्रह की बात दोनों बातें आती हैं । इस चारित्र की उपासना के द्वारा सारी असमाधियां समाप्त होती हैं। बड़ी असमाधि है मौत का भय, वह समाप्त होता है । बड़ी असमाधि है जीवन की विषमता, वह समाप्त होती है । संयम की शक्ति बढ़ती है और बहुत सारी समस्याएं सुलझ जाती हैं। हमारी चर्या सम्यक् होती है, हम अपने आप में लीन हो जाते हैं । बाहर से आने वाली असमाधियां समाप्त हो जाती हैं । इस चारित्र की उपासना करने वाला असमाधियों के चक्र को मूल से उखाड़कर इतनी गहरी समाधि में प्रतिष्ठित हो जाता है कि उसके लिए दुनिया में असमाधि जैसा कुछ भी नहीं रहता । • महावीर ने कोई पराक्रम किया होगा और उसी से वे महावीर बने होंगे । किन्तु उनके पश्चात् चारित्र की जो व्यवस्था परम्परा से प्राप्त हुई या साधक ने अपनी सुरक्षा के लिए व्यवस्थाएं सोचीं और हर वस्तु को व्यवस्था के नाम से, अभय के नाम से, समता के नाम से या समाधि के नाम से स्वीकार किया, क्या इस मार्ग से चारित्र की समाधि प्राप्त हो सकती है ? काल का प्रवाह ऐसा होता है कि वह जो बहुत कुछ आवश्यक होता है उसे धो डालता है और नयी चीजों को अपने साथ लेकर बहता रहता है । हर नदी की धारा के साथ ऐसा होता ही है । यह ठीक है कि यदि पराक्रम की वह बात आज होती तो साधना अधिक तेजस्वी होती। जो भी तेजस्विता में

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