Book Title: Mahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Author(s): Mahapragya Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 273
________________ २६० महावीर की साधना का रहस्य क्रम से इस गांठ को खोला है, ऐसा अन्यत्र दुर्लभ है । यह सुनने में गर्वोक्तिसी लगती है, पर है यह सच । जिस पराक्रम के साथ, जिस पुरुषार्थ के साथ भगवान् महावीर ने चारित्र का दीप प्रज्वलित किया, शायद ऐसा अन्यत्र दुर्लभ ही मिलेगा । उन्होंने सारे जीवन की संघर्ष भूमि में पराक्रम और पुरुपार्थ को बहुत महत्त्व दिया । कोई भी साधक इस साधना के समरांगण में, संघर्ष - भूमि में, इतने पराक्रम का प्रयोग नहीं करता तो न वह महावीर बन सकता है और न महावीर की भूमिका तक पहुंच सकता है और न उस समाधि के बिंदु तक पहुंच सकता है जो कि चारित्र की समाधि का बिंदु है । इसमें महावीर का मार्ग सबसे कठोर मार्ग है । इसे कहा गया है— 'दुरनुचरे मग्गे' - ' – इस पर चल पाना बड़ा कठिन है । क्यों कठिन है ? 'दुरनुचर' का तात्पर्य दूसरा है, इसे हम समझें । न हठयोग के अनुसार प्राण की साधना करने वाला साधक मूलाधार से चलता है और एक-एक चक्र की साधना करता हुआ, सहस्रार चक्र तक पहुंचने का प्रयास करता है, उसकी साधना करता है । यह कठोर मार्ग है । राजयोग की साधना करने वाला आज्ञाचक्र से साधना प्रारम्भ करता है और आगे चला जाता है । यह भी कठोर मार्ग है । किन्तु अध्यात्म योग की साधना करना सबसे अधिक कठोर मार्ग है । इसका साधक किसी बाहरी चीज का सहारा नहीं लेता । वह न तो किसी आसन को मुख्यतः देता है, न प्राणायाम को, मूलाधार चक्र से प्रारम्भ कर सहस्रार चक्र तक पहुंचने का प्रयत्न करता है, न आज्ञा चक्र से चलकर सहस्रार चक्र तक पहुंचने का प्रयास करता है । वह केवल चैतन्य के अनुभव के सहारे आगे बढ़ता है । केवल आत्मा की शक्ति के सहारे, बिना बाह्य वस्तुओं का आलम्बन लिए, आत्मा को शक्तिशाली बनाकर उसको उस साधना में झोंक देना, सबसे कठिन साधना पद्धति है । महावीर ने इसका आलम्बन लिया, इसलिए इसका मार्ग दुरनुचर है । चारित्र का मार्ग कठोरतम मार्ग है और इसलिए इसमें पराक्रम को अधिक प्रज्वलित करना पड़ता है, चैतन्य को अधिक प्रज्वलित करना होता है, दस-पांच का सहारा मिल जाए तो व्यक्ति सोचता है, चलो वह भी सहारा देने वाला है; यह भी सहारा देने वाला है । चारों तरफ सहारे सहारे हैं, तब खुद को उतना खपना नहीं पड़ता । किन्तु राणा प्रताप जैसी स्थिति आ जाए, जंगल में रहना और स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ना - यह बहुत कठिन कर्म है। बच्चों को खाने के लिए घास-पात की रोटी मिले और स्वतंत्रता की लड़ाई चले,

Loading...

Page Navigation
1 ... 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322