Book Title: Mahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Author(s): Mahapragya Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Tulsi Adhyatma Nidam Prakashan

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Page 276
________________ चारित्र समाधि २६३ अनाशंसा जीवन में आ जाए, जीवन की एषणा मिट जाए तो भय मिट सकता है, साधना में तेज आ सकता है । महावीर अकेले चले थे । न उन्हें कल का पता था, न उनका कोई सहयोगी था। वे अत्राण, असहाय और अशरण होकर चल पड़े साधना के पथ पर, आत्मोपलब्धि के मार्ग पर । जो व्यक्ति इस प्रकार जीवन की आशंसा को छोड़कर चल पड़ता है, साधना के मार्ग पर उसके लिए किसी भी प्रकार का भय शेष नहीं रहता । वह अभय हो जाता है। यह आशंसा छोड़ने की साधना ही तेजस्विता का आदि-बिन्दु है । हमारा पराक्रम तभी प्रज्वलित होगा जब हम आशंसा को छोड़कर अनाशंसा के राजमार्ग पर चल पड़ेंगे । जब आशंसा का व्यूह पहले से ही बना होता है कि यह बनना है, वह बनना है, यह होना है, वह होना है, फिर हम तेजस्विता की बात करें, अभय की बात करें सम्भव नहीं है इन्हें पाना। • साधारण व्यक्ति के लिए कौन-सा मार्ग है ? साधारण आदमी साधना को थोड़ा-थोड़ा करे। यह सम्भव नहीं कि प्रारम्भ से ही वह महावीर जैसा पराक्रम फोड़ दें। साधारण साधक चलने का प्रारम्भ कर दे । साधना के आस-पास घूमे, उसे देखे । बगीचे के भीतर न जा सके तो बाहर में जो ऑक्सीजन प्राप्त हो उसे ले और इतना करतेकरते ताकत आ जायेगी। एक दिन वह देखेगा कि वह उस विशाल बगीचे में स्वतंत्रता से घूम रहा है, जहां प्राणवायु की प्रचुरता है।

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