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महावीर की साधना का रहस्य
है तो संघ है। उसके बिना संघ नहीं चल सकता। श्रुत-सम्पन्न मुनियों के अभाव में संघ कैसे चल सकता है ? जो थोड़े-बहुत श्रुत-सम्पन्न मुनि बचे थे, उनसे विशाल श्रु तराशि को ग्रहण करना और उस परम्परा को पूर्ववत्समृद्धिशाली बनाना आवश्यक हो गया। इस आवश्यकता को ध्यान में रखकर विशाल श्र तराशि को अव्यवच्छिन्न रखने के लिए अनेक नियम बनाने पड़े जो आज भी छेद सूत्रों तथा समाचारी प्रकरण में देखे जा सकते हैं। उत्तराध्ययन के सामाचारी अध्ययन में वह व्यवस्था है कि श्रमण प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे प्रहर में ध्यान (सूत्रार्थ चिन्तन), तीसरे प्रहर में आहार
और चौथे प्रहर में फिर स्वाध्याय करे । इसी प्रकार रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में नींद और चौथे प्रहर में फिर स्वाध्याय करे । दिन-रात के आठ प्रहरों में स्वाध्याय के लिए चार प्रहर निश्चित थे । ध्यान के लिए केवल दो प्रहर निश्चित थे और ध्यान का स्वरूप भी मुख्यतः उस श्रु त के अर्थ का चिन्तन करना था। श्रुत का विच्छेद न हो, इस दृष्टि से की गई इस व्यवस्था में ध्यान को गौणता मिली और स्वाध्याय को प्राथमिकता । वैसे ध्यान और स्वाध्याय-दोनों साधना के मुख्य अंग हैं। फिर भी ध्यान की अपेक्षा स्वाध्याय को अधिक महत्त्व मिला । इसने ध्यान के प्रति होने वाले आकर्षण में कमी ला दी। अन्य धर्म-संघ अपने-अपने धर्म-संघ के विस्तार के लिए दूसरे धर्म-संघों पर प्रहार करने लगे। जैन संघ पर बौद्ध आदि श्रमण-संघों तथा वैदिक धर्मों के तीव्र प्रहार होने लगे। इन आन्तरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना करने के लिए उसे अपनी दिशा बदलनी पड़ी।
इन तीनों कारणों का दीर्घ-कालीन परिणाम यह हुआ कि जैन संघ, जो ध्यान-प्रधान था। वह स्वाध्याय-प्रधान हो गया । जो अध्यात्मवादी था वह संघ-प्रधान हो गया । वीर निर्वाण की चौथी-पांचवी शताब्दी में महर्षि गौतम का न्याय-दर्शन और महर्षि कणाद का वैशेषिक दर्शन स्थापित हुआ। इन दर्शनों की स्थापना ने भारतीय चिन्तन के क्षितिज में नई क्रान्ति पैदा की। उनका विरोध भी हुआ । स्वयं वैदिकों ने उसका विरोध किया। 'ये नए ग्रन्थ या नए सूत्र बनाने वाले कौन होते हैं ?'-इस प्रकार अनेक प्रश्न खड़े किए गए । यह सब कुछ होने पर भी उनका प्रभाव कम नहीं हुआ और 'दर्शन युग' या 'सूत्र युग' का प्रारम्भ हो गया। उसे 'चर्चा युग' का प्रारम्भ कहा जा सकता है । बाद और विवाद को मान्यता प्राप्त हो गई। एक दार्शनिक