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महावीर की साधना का रहस्य
संचय को खाली करना है तो साथ में निग्रह-शक्ति का भी विकास करना होगा। यह क्यों जरूरी है-इसके पीछे भी एक सिद्धांत है । वह यह कि व्यक्ति स्वतन्त्र है, वह दूसरों पर निर्भर नहीं है। आत्म-कर्तृत्व का सिद्धांत, आत्म-स्वतन्त्रता का सिद्धांत ही निग्रह का सिद्धांत है। इसे सूक्ष्मता से समझना है । हम क्रोध के, वासना के हारमोन्स को इंजेक्शन के द्वारा बदल सकते हैं। किन्तु इसमें हमारा क्या ? यह तो एक यन्त्र के द्वारा हुआ है। क्या आत्मा का इतना भी कर्तृत्व नहीं है ? क्या आत्मा इतनी स्वतन्त्र नहीं है ? क्या आत्मा इतना अधीन और इतना निर्भर है कि यांत्रिक क्रिया की भांति सब कुछ हो जाए। हो तो सकता है, पर वह चारित्र नहीं है । चारित्र दो बातों पर निर्भर है—पहली बात है आत्मा की स्वतन्त्रता और दूसरी बात है आत्मा का पुरुषार्थ । पुरुषार्थ का अर्थ है संयम में वीर्य—'संजमम्मि य वीरियं' । यदि इन्जेक्शन के द्वारा हारमोन्स की रासायनिक क्रियाओं को बदलकर संयम किया जा सकता है तब संयम में पुरुषार्थ करने की आवश्यकता ही क्या है ? यह तो सबसे सीधा तरीका है, मार्ग है । न शिविर लगाने की आवश्यकता है
और न शास्त्रों के अध्ययन-अध्यापन की आवश्यकता है। डॉक्टर की शरण में जाओ, इन्जेक्शन लगवा लो, साधु बन जाओगे, भले आदमी बन जाओगे, बुरे नहीं रहोगे । किन्तु इससे हम अच्छे नहीं बनेंगे, यन्त्र बन जायेंगे और आत्मा के अस्तित्व से हट जायेंगे। उसे हम अस्वीकार कर देंगे । उसका कोई अस्तित्व नहीं रहेगा, कर्तृत्व नहीं रहेगा। आत्मा का कर्तृत्व तब है कि वह स्वतन्त्र है । वह निमित्तों से प्रभावित होती है, पर उसमें निमित्तों को हतप्रभ करने की शक्ति भी है। वह उन्हें बदल भी सकती है। निर्वीर्य बना सकती है । वह निमित्तों के वश में नहीं है। निमित्त उस पर हावी होने का प्रयत्न करते हैं, उसे परास्त और पराजित करने का प्रयत्न करते हैं, पर आत्मा में इतनी क्षमता है, इतना वीर्य है कि वह निमित्तों को पछाड़ सकती है । वहां हमारा संयम का सिद्धांत पुरुषार्थ और आत्मा के स्वतन्त्र कर्त्तत्व पर विकसित होता है । यह चरित्र का सिद्धांत आत्मा की स्वतन्त्रता का और पुरुषार्थ का सिद्धांत है।
हम जानते हैं कि कर्म के बन्धन हमारे साथ हैं। वे प्रकट होकर हमें प्रभावित करते हैं । हमारे शरीर में जितने कर्मस्थान हैं, जितनी ग्रन्थियां हैं,. वे सब हमारे चैतन्य को, हमारे आनन्द को, हमारी शक्ति को क्षत-विक्षत, आवृत और विकृत करने का प्रयत्न करती है। पर हम उनके सामने मोर्चा